श्रुतज्ञानावरण: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> ज्ञानावरणकर्म का एक भेद । ज्ञान-मद के कारण जो पुरुष अध्ययन-अध्यापन नहीं करते हैं, यथार्थता को जानकर भी दूसरों के दुराचारों का उद्भावन करते हैं, हितैषी जिनागम का अध्ययन न कर कुशास्त्र पढ़ते हैं, आगमनिंदित और परपीडाकारी असत्य बोलते हैं । वे इस कर्म के उदय से ऐसा करते हैं । जिनागम के पढ़ने-पढ़ाने, व्याख्यान करने, हितमित प्रिय वचन बोलने से इस कर्म का क्षयोपशम होता है । जीव इस कर्म के क्षयोपशम से ही विद्वान् और जगत् पूज्य होते हैं । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 17.133-138 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> ज्ञानावरणकर्म का एक भेद । ज्ञान-मद के कारण जो पुरुष अध्ययन-अध्यापन नहीं करते हैं, यथार्थता को जानकर भी दूसरों के दुराचारों का उद्भावन करते हैं, हितैषी जिनागम का अध्ययन न कर कुशास्त्र पढ़ते हैं, आगमनिंदित और परपीडाकारी असत्य बोलते हैं । वे इस कर्म के उदय से ऐसा करते हैं । जिनागम के पढ़ने-पढ़ाने, व्याख्यान करने, हितमित प्रिय वचन बोलने से इस कर्म का क्षयोपशम होता है । जीव इस कर्म के क्षयोपशम से ही विद्वान् और जगत् पूज्य होते हैं । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 17.133-138 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
ज्ञानावरणकर्म का एक भेद । ज्ञान-मद के कारण जो पुरुष अध्ययन-अध्यापन नहीं करते हैं, यथार्थता को जानकर भी दूसरों के दुराचारों का उद्भावन करते हैं, हितैषी जिनागम का अध्ययन न कर कुशास्त्र पढ़ते हैं, आगमनिंदित और परपीडाकारी असत्य बोलते हैं । वे इस कर्म के उदय से ऐसा करते हैं । जिनागम के पढ़ने-पढ़ाने, व्याख्यान करने, हितमित प्रिय वचन बोलने से इस कर्म का क्षयोपशम होता है । जीव इस कर्म के क्षयोपशम से ही विद्वान् और जगत् पूज्य होते हैं । वीरवर्द्धमान चरित्र 17.133-138