शक्तिषेण: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) पुष्कलावती देश में शोभानगर के राजा प्रजापाल का सामंत । अटवीश्री इसकी स्त्री तथा सत्यदेव इसका पुत्र था । इसने मद्य-मास का त्याग कर पर्व के दिनों में उपवास करने का नियम लिया था । अणुव्रत धारण किये थे और मुनि की आहार-वेला के पश्चात् भोजन करने का नियम लिया था । इसने दो चारण मुनियों को आहार देकर पंचाश्चर्य भी प्राप्त किये थे । इसका पुत्र हीनांग था । अपनी मौसी के कुपित होने पर वह घर से भाग गया था । पुत्र के मिलने पर इसने उसे अपने साथ लाना चाहा किंतु पुत्र के न आने पर इसने दु:खी होकर अगले भव में अपने पुत्र का स्नेह-भाजन होने का निदान किया और द्रव्य-संयमी हो गया । अंत में यह पुत्र-प्रेम से मोहित होकर मरा और लोकपाल हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 46-94-98, 111, 117-122, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 3.196-200 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) पुष्कलावती देश में शोभानगर के राजा प्रजापाल का सामंत । अटवीश्री इसकी स्त्री तथा सत्यदेव इसका पुत्र था । इसने मद्य-मास का त्याग कर पर्व के दिनों में उपवास करने का नियम लिया था । अणुव्रत धारण किये थे और मुनि की आहार-वेला के पश्चात् भोजन करने का नियम लिया था । इसने दो चारण मुनियों को आहार देकर पंचाश्चर्य भी प्राप्त किये थे । इसका पुत्र हीनांग था । अपनी मौसी के कुपित होने पर वह घर से भाग गया था । पुत्र के मिलने पर इसने उसे अपने साथ लाना चाहा किंतु पुत्र के न आने पर इसने दु:खी होकर अगले भव में अपने पुत्र का स्नेह-भाजन होने का निदान किया और द्रव्य-संयमी हो गया । अंत में यह पुत्र-प्रेम से मोहित होकर मरा और लोकपाल हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 46-94-98, 111, 117-122, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 3.196-200 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
(1) पुष्कलावती देश में शोभानगर के राजा प्रजापाल का सामंत । अटवीश्री इसकी स्त्री तथा सत्यदेव इसका पुत्र था । इसने मद्य-मास का त्याग कर पर्व के दिनों में उपवास करने का नियम लिया था । अणुव्रत धारण किये थे और मुनि की आहार-वेला के पश्चात् भोजन करने का नियम लिया था । इसने दो चारण मुनियों को आहार देकर पंचाश्चर्य भी प्राप्त किये थे । इसका पुत्र हीनांग था । अपनी मौसी के कुपित होने पर वह घर से भाग गया था । पुत्र के मिलने पर इसने उसे अपने साथ लाना चाहा किंतु पुत्र के न आने पर इसने दु:खी होकर अगले भव में अपने पुत्र का स्नेह-भाजन होने का निदान किया और द्रव्य-संयमी हो गया । अंत में यह पुत्र-प्रेम से मोहित होकर मरा और लोकपाल हुआ । महापुराण 46-94-98, 111, 117-122, पांडवपुराण 3.196-200