अकलंक भट्ट: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> जैन न्याय के युग संस्थापक आचार्य । इन्होंने शास्त्रार्थ करके बौद्धों द्वारा घट में स्थापित माया देवी को परास्त किया था । आचार्य जिनसेन ने इनका नामोल्लेख आचार्य देवनंदी के पश्चात् तथा आचार्य शुभचंद्र ने आचार्य पूज्यपाद के पश्चात् किया है । <span class="GRef"> महापुराण 1.53, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 1.17 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> जैन न्याय के युग संस्थापक आचार्य । इन्होंने शास्त्रार्थ करके बौद्धों द्वारा घट में स्थापित माया देवी को परास्त किया था । आचार्य जिनसेन ने इनका नामोल्लेख आचार्य देवनंदी के पश्चात् तथा आचार्य शुभचंद्र ने आचार्य पूज्यपाद के पश्चात् किया है । <span class="GRef"> महापुराण 1.53, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 1.17 </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:39, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
( सिद्धिविनिश्चय प्रस्तावना 5/पं.महेंद्रकुमार) - लघुहव्व नृपति के ज्येष्ठ पुत्र प्रसिद्ध आचार्य। आपने राजा हिम-शीतल की सभा में एक बौद्ध साधु को परास्त किया था, जिसकी ओर से तारा देवी शास्त्रार्थ किया करती थी। अकलंक देव आपका नाम था और भट्ट आपका पद था। आपके शिष्य का नाम महीदेव भट्टारक था। आपने निम्नग्रंथ रचे हैं : -
- तत्त्वार्थ राजवार्तिक सभाष्य;
- अष्टशती;
- लघीयस्त्रय सविवृत्ति;
- तन्यायविनिश्चय सविवृत्ति;
- सिद्धिविनिश्चय,
- प्रमाणसंग्रह;
- स्वरूप संबोधन;
- बृहत्त्रयम्;
- न्याय चूलिका;
- अकलंक स्तोत्र।
आपके काल के संबंध में चार धारणाएँ हैं : -
1. अकलंक चारित्र में "विक्रमार्कशकाब्दीयशतसप्तप्रमाजुषि। कालेऽकलंकयतिनो बौद्धैर्वादो महानभूत्"॥ = विक्रम संवत् 700 (ई. 643) में बौद्धों के साथ श्री अकलंक भट्ट का महान् शास्त्रार्थ हुआ।
2. वि.श. 6 (सभाष्य तत्त्वार्थाधिगम/प्र.2/टिप्पणी में श्री नाथूराम प्रेमी)।
3. ई.620-680 (नरसिंहाचार्य, प्रो.एस.श्रीकंठ शास्त्री, पं.जुगलकिशोर, डॉ.ए.एन.उपाध्ये, पं.कैलाशचंद्रजी शास्त्री, ज्योतिप्रसादजी)।
4. ई.स.720-780 (डॉ.के.बी.पाठक, डॉ.सतीशचंद्र विद्याभूषण, डॉ.आर.जी.भंडारकर, पिटर्सन, लुइस राइस, डॉ.विंटरनिट्ज, डॉ.एफ.डब्ल्यू, थामस, डॉ.ए.बी.कीथ, डॉ.ए.एस. आल्तेकर, श्री नाथूराम प्रेमी, पं.सुखलाल, डॉ.बी.एन. सालेतोर, महामहोपाध्याय पं. गोपीनाथ कविराज, पं. महेंद्रकुमार)
उपरोक्त चार धारणाओं में से नं. 1 वाली धारणा अधिक प्रामाणिक होने के कारण आपका समय ई. 620-680 के लगभग आता है।
• शब्दानुशासन के कर्ता (देखें भट्टाकलंक ) ।
• जैन साधु संघ में आपका स्थान – (देखें इतिहास - 7.1)।
पुराणकोष से
जैन न्याय के युग संस्थापक आचार्य । इन्होंने शास्त्रार्थ करके बौद्धों द्वारा घट में स्थापित माया देवी को परास्त किया था । आचार्य जिनसेन ने इनका नामोल्लेख आचार्य देवनंदी के पश्चात् तथा आचार्य शुभचंद्र ने आचार्य पूज्यपाद के पश्चात् किया है । महापुराण 1.53, पांडवपुराण 1.17