चिंता: Difference between revisions
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स.सि./१/१३/१०६/५ <span class="SanskritText">चिन्तनं चिन्ता</span> = <span class="HindiText">चिन्तन करना चिन्ता है। (ध.१३/१,१,४१/२४४/३)।</span> स.सि./९/२७/४४४/७ <span class="SanskritText">नानार्थावलम्बनेन चिन्ता परिस्पन्दवती। </span>=<span class="HindiText">नाना पदार्थों का अवलम्बन लेने से चिन्ता परिस्पन्दवती होती है।</span><br> | स.सि./१/१३/१०६/५ <span class="SanskritText">चिन्तनं चिन्ता</span> = <span class="HindiText">चिन्तन करना चिन्ता है। (ध.१३/१,१,४१/२४४/३)।</span> स.सि./९/२७/४४४/७ <span class="SanskritText">नानार्थावलम्बनेन चिन्ता परिस्पन्दवती। </span>=<span class="HindiText">नाना पदार्थों का अवलम्बन लेने से चिन्ता परिस्पन्दवती होती है।</span><br> | ||
रा.वा./९/२७/४/६२५/२५ <span class="SanskritText">अन्त:करणस्य वृत्तिरर्थेषु चिन्तेत्युच्यते।</span> =<span class="HindiText">अन्त:करण की वृत्ति का पदार्थों में व्यापार करना चिन्ता कहलाती है।</span> ध.१३/५,५,६३/३३३/९ <span class="PrakritText">वट्टमाणत्थविसयमदिणाणेण विसेसिदजीवो चिंता णाम।</span> =<span class="HindiText">वर्तमान अर्थ को विषय करने वाले मतिज्ञान से विशेषित जीव की चिन्ता संज्ञा है।<br> | रा.वा./९/२७/४/६२५/२५ <span class="SanskritText">अन्त:करणस्य वृत्तिरर्थेषु चिन्तेत्युच्यते।</span> =<span class="HindiText">अन्त:करण की वृत्ति का पदार्थों में व्यापार करना चिन्ता कहलाती है।</span> ध.१३/५,५,६३/३३३/९ <span class="PrakritText">वट्टमाणत्थविसयमदिणाणेण विसेसिदजीवो चिंता णाम।</span> =<span class="HindiText">वर्तमान अर्थ को विषय करने वाले मतिज्ञान से विशेषित जीव की चिन्ता संज्ञा है।<br> | ||
स.सि./पं.जयचन्द/१/१३/३५४ किसी चिह्न को देखकर | स.सि./पं.जयचन्द/१/१३/३५४ किसी चिह्न को देखकर वहाँ वह चिह्न वाला अवश्य होगा ऐसा ज्ञान, तर्क, व्याप्ति वा ऊह ज्ञान चिन्ता है। </span></li> | ||
<li class="HindiText"> स्मृति चिन्ता आदि ज्ञानों की उत्पत्ति का क्रम व इनकी एकार्थता– देखें - [[ मतिज्ञान#3 | मतिज्ञान / ३ ]]।</li> | <li class="HindiText"> स्मृति चिन्ता आदि ज्ञानों की उत्पत्ति का क्रम व इनकी एकार्थता– देखें - [[ मतिज्ञान#3 | मतिज्ञान / ३ ]]।</li> | ||
<li class="HindiText"> चिन्ता व ध्यान में अन्तर– देखें - [[ धर्मध्यान#3 | धर्मध्यान / ३ ]]। </li> | <li class="HindiText"> चिन्ता व ध्यान में अन्तर– देखें - [[ धर्मध्यान#3 | धर्मध्यान / ३ ]]। </li> |
Revision as of 20:20, 28 February 2015
- लक्षण त.सू./१/१३ मति: स्मृति: संज्ञा चिन्ताभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम् । =मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता और अभिनिबोध ये पर्यायवाची नाम हैं। (ष.खं.१३/५०५/सू.४१/२४४)।
स.सि./१/१३/१०६/५ चिन्तनं चिन्ता = चिन्तन करना चिन्ता है। (ध.१३/१,१,४१/२४४/३)। स.सि./९/२७/४४४/७ नानार्थावलम्बनेन चिन्ता परिस्पन्दवती। =नाना पदार्थों का अवलम्बन लेने से चिन्ता परिस्पन्दवती होती है।
रा.वा./९/२७/४/६२५/२५ अन्त:करणस्य वृत्तिरर्थेषु चिन्तेत्युच्यते। =अन्त:करण की वृत्ति का पदार्थों में व्यापार करना चिन्ता कहलाती है। ध.१३/५,५,६३/३३३/९ वट्टमाणत्थविसयमदिणाणेण विसेसिदजीवो चिंता णाम। =वर्तमान अर्थ को विषय करने वाले मतिज्ञान से विशेषित जीव की चिन्ता संज्ञा है।
स.सि./पं.जयचन्द/१/१३/३५४ किसी चिह्न को देखकर वहाँ वह चिह्न वाला अवश्य होगा ऐसा ज्ञान, तर्क, व्याप्ति वा ऊह ज्ञान चिन्ता है। - स्मृति चिन्ता आदि ज्ञानों की उत्पत्ति का क्रम व इनकी एकार्थता– देखें - मतिज्ञान / ३ ।
- चिन्ता व ध्यान में अन्तर– देखें - धर्मध्यान / ३ ।