नाम: Difference between revisions
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<li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> नाम के भेद</strong></span><br> | <li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> नाम के भेद</strong></span><br> | ||
<span class="GRef"> धवला 1/1,1,1/17/5 </span><span class="PrakritText">तत्थ णिमित्तं चउव्विहं, जाइ-दव्व–गुण-किरिया चेदि। ...दव्वं दुविहं, संयोगदव्वं समवायदव्वं चेदि। ...ण च ...अण्ण णिमित्तंतरमत्थि।</span> =<span class="HindiText">नाम या संज्ञा के चार निमित्त होते हैं–जाति, द्रव्य, गुण और क्रिया। (उसमें भी) द्रव्य निमित्त के दो भेद हैं–संयोग द्रव्य और समवाय द्रव्य। (अर्थात् नाम या शब्द चार प्रकार के हैं–जातिवाचक, द्रव्यवाचक, गुणवाचक और क्रियावाचक) इन चार के अतिरिक्त अन्य कोई निमित्त नहीं है। | <span class="GRef"> धवला 1/1,1,1/17/5 </span><span class="PrakritText">तत्थ णिमित्तं चउव्विहं, जाइ-दव्व–गुण-किरिया चेदि। ...दव्वं दुविहं, संयोगदव्वं समवायदव्वं चेदि। ...ण च ...अण्ण णिमित्तंतरमत्थि।</span> =<span class="HindiText">नाम या संज्ञा के चार निमित्त होते हैं–जाति, द्रव्य, गुण और क्रिया। (उसमें भी) द्रव्य निमित्त के दो भेद हैं–संयोग द्रव्य और समवाय द्रव्य। (अर्थात् नाम या शब्द चार प्रकार के हैं–जातिवाचक, द्रव्यवाचक, गुणवाचक और क्रियावाचक) इन चार के अतिरिक्त अन्य कोई निमित्त नहीं है। <span class="GRef">( श्लोकवार्तिक 2/1/5/ श्लोक 2-10/169)</span><br> <span class="GRef"> धवला 15/2/3 </span><p class="PrakritText">तं च णाम णिबंधणमत्थाहिंहाणपच्चयभेएण तिविहं। </p> <p class="HindiText">=वह नाम निबंधन अर्थ, अभिधान और प्रत्यय के भेद से तीन प्रकार का है। </p> </li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="3" id="3"> नाम के भेदों के लक्षण</strong> <br>देखें [[ जाति ]](सामान्य) (गौ मनुष्य आदि जाति वाचक नाम हैं)।<br> | <li><span class="HindiText"><strong name="3" id="3"> नाम के भेदों के लक्षण</strong> <br>देखें [[ जाति ]](सामान्य) (गौ मनुष्य आदि जाति वाचक नाम हैं)।<br> | ||
देखें [[ द्रव्य#1.10 | द्रव्य - 1.10 ]](दंडी छत्री आदि संयोग द्रव्य निमित्तक नाम हैं और गलगंड काना आदि समवाय द्रव्य निमित्तक नाम हैं।)</span> <br> | देखें [[ द्रव्य#1.10 | द्रव्य - 1.10 ]](दंडी छत्री आदि संयोग द्रव्य निमित्तक नाम हैं और गलगंड काना आदि समवाय द्रव्य निमित्तक नाम हैं।)</span> <br> |
Revision as of 22:21, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
- नाम का लक्षण
राजवार्तिक/1/5/ –/28/8 नीयते गम्यतेऽनेनार्थ: नमति वार्थमभिमुखीकरोतीति नाम। =जिसके द्वारा अर्थ जाना जाये अथवा अर्थ को अभिमुख करे वह नाम कहलाता है।
धवला 15/2/2 जस्स णामस्स वाचगभावेण पवुत्तीए जो अत्थो आलंवणं होदि सो णामणिबंधणं णाम, तेण विणा णामपवुत्तीए अभावादो। =जिस नाम की वाचकरूप से प्रवृत्ति में जो अर्थ अवलंबन होता है वह नाम निबंधन है; क्योंकि, उसके बिना नाम की प्रवृत्ति संभव नहीं है।
धवला 9/41/54/2 नाना मिनोतीति नाम। =नानारूप से जो जानता है, उसे नाम कहते हैं।
तत्त्वानुशासन/100 वाच्यवाचकं नाम। =वाच्य के वाचक शब्द को नाम कहते हैं–देखें आगम - 4। - नाम के भेद
धवला 1/1,1,1/17/5 तत्थ णिमित्तं चउव्विहं, जाइ-दव्व–गुण-किरिया चेदि। ...दव्वं दुविहं, संयोगदव्वं समवायदव्वं चेदि। ...ण च ...अण्ण णिमित्तंतरमत्थि। =नाम या संज्ञा के चार निमित्त होते हैं–जाति, द्रव्य, गुण और क्रिया। (उसमें भी) द्रव्य निमित्त के दो भेद हैं–संयोग द्रव्य और समवाय द्रव्य। (अर्थात् नाम या शब्द चार प्रकार के हैं–जातिवाचक, द्रव्यवाचक, गुणवाचक और क्रियावाचक) इन चार के अतिरिक्त अन्य कोई निमित्त नहीं है। ( श्लोकवार्तिक 2/1/5/ श्लोक 2-10/169)
धवला 15/2/3तं च णाम णिबंधणमत्थाहिंहाणपच्चयभेएण तिविहं।
=वह नाम निबंधन अर्थ, अभिधान और प्रत्यय के भेद से तीन प्रकार का है।
- नाम के भेदों के लक्षण
देखें जाति (सामान्य) (गौ मनुष्य आदि जाति वाचक नाम हैं)।
देखें द्रव्य - 1.10 (दंडी छत्री आदि संयोग द्रव्य निमित्तक नाम हैं और गलगंड काना आदि समवाय द्रव्य निमित्तक नाम हैं।)
धवला 1/1,1,1/18/2,5 गुणो णाम पज्जायादिपरोप्परविरुद्धो अविरुद्धो वा। किरिया णाम परिप्फंदणरूवा। तत्थ ...गुणणिमित्तं णाम किण्हो रुहिरो इच्चेवमाइ। किरियाणिमित्तं णाम गायणो णच्चणो इच्चेवमाइ। =जो पर्याय आदिक से परस्पर विरुद्ध हो अथवा अविरुद्ध हो उसे गुण कहते हैं। परिस्पंदन अर्थात् हलनचलन रूप अवस्था को क्रिया कहते हैं। तहाँ कृष्ण, रुधिर इत्यादि गुणनिमित्तक नाम हैं, क्योंकि, कृष्ण आदि गुणों के निमित्त से उन गुण वाले द्रव्यों में ये नाम व्यवहार में आते हैं। गायक, नर्तक आदि क्रिया निमित्तक नाम है; क्योंकि, गाना नाचना आदि क्रियाओं के निमित्त से वे नाम व्यवहार में आते हैं।
धवला 15/2/4 तत्थ अत्थो अट्ठविहो एगबहुजीवाजीवजणिदपादेक्कसंजोगभंगभेएण। एदेसु अट्ठसु अत्थेसुप्पण्णणाणं पच्चणिबंधणं। जो णामसद्दो पवुत्तो संतो अप्पाणं चेव जाणावेदि तमभिहाणणामणिबंधणं णाम। =एक व बहुत जीव तथा अजीव से उत्पन्न प्रत्येक व संयोगी भंगों के भेद से अर्थ निबंधन नाम आठ प्रकार का है (विशेष देखो आगे नाम निक्षेप) इन आठ अर्थों में उत्पन्न हुआ ज्ञान प्रत्यय निबंधन नाम कहलाता है। जो संज्ञा शब्द प्रवृत्त होकर अपने आपको जतलाता है, वह अभिधान निबंधन कहा जाता है। - सर्व शब्द वास्तव में क्रियावाची हैं
श्लोकवार्तिक/4/1/33/;9/267/6 न हि कश्चिदक्रियाशब्दोऽस्यास्ति गौरश्व इति जातिशब्दाभिमतानामपि क्रियाशब्दत्वात् आशुगाम्यश्व इति, शुक्लो नील इति गुणशब्दाभिमता अपि क्रियाशब्द एव। शुचिभवना च्छुक्ल: नीलान्नील इति। देवदत्त इति यदृच्छा शब्दाभिमता अपि क्रियाशब्दा एव देव एव (एनं) देयादिति देवदत्त: यज्ञदत्त इति। संयोगिद्रव्यशब्दा: समवायिद्रव्यशब्दाभिमता: क्रियाशब्द एव। दंडोऽस्यास्तीति दंडी विषाणमस्यास्तीति विषाणीत्यादि। पंचतयो तु शब्दानां प्रवृत्ति: व्यवहारमात्रान्न न निश्चयादित्ययं मनयेते। =जगत् में कोई भी शब्द ऐसा नहीं है जो कि क्रिया का वाचक न हो। जातिवाचक अश्वादि शब्द भी क्रियावाचक हैं; क्योंकि, आशु अर्थात् शीघ्र गमन करने वाला अश्व कहा जाता है। गुणवाचक शुक्ल नील आदि शब्द भी क्रियावाचक हैं; क्योंकि, शुचि अर्थात् पवित्र होना रूप क्रिया से शुक्ल तथा नील रंगने रूप क्रिया से नील कहा जाता है। देवदत्त आदि यदृच्छा शब्द भी क्रियावाची हैं; क्योंकि, देव ही जिस पुरुष को देवे; ऐसे क्रियारूप अर्थ को धारता हुआ देवदत्त है। इसी प्रकार यज्ञदत्त भी क्रियावाची है। दंडी विषाणी आदि संयोगद्रव्यवाची या समवायद्रव्यवाची शब्द भी क्रियावाची ही है, क्योंकि, दंड जिसके पास वर्त रहा है वह दंडी और सींग जिसके वर्त रहे हैं वह विषाणी कहा जाता है। जातिशब्द आदि रूप पाँच प्रकार के शब्दों की प्रवृत्ति तो व्यवहार मात्र से होती है। निश्चय से नहीं है। ऐसा एवंभूत नय मानता है।
- गौण्यपद आदि नाम―देखें पद ।
- भगवान् के 10008 नाम―दे. महापुराण 25/100-217 ।
- नाम निक्षेप―देखें आगे पृथक् शब्द ।
पुराणकोष से
(1) जीवादि तत्त्वों के निरूपण के लिए अभिहित नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव रूप चतुर्विध निक्षेपों में प्रथम निक्षेप । हरिवंशपुराण 2. 108, 17.135
(2) पदगत गांधर्व की एक विधि । हरिवंशपुराण 19.5149