सिंहोदर: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> उज्जयिनी का राजा । दशांगपुर का राजा वज्रकर्ण जिनेंद्र और निर्ग्रंथ मुनि को ही नमस्कार करने की प्रतिज्ञा लेने के कारण इसे नमन नहीं करना चाहता था । अत: उसने तीर्थंकर मुनिसुव्रत की चित्र जड़ित अंगूठी अपने अंगूठे में पहिन रखी थी । इसे नमस्कार करते समय वह अंगूठी सामने रखता और तीर्थंकर मुनिसुव्रत को नमन करके अपने नियम की रक्षा कर लेता था । किसी वैरी ने इसका यह रहस्य राजा को बता दिया । इससे यह राजा वज्रकर्ण से कुपित हो गया । इसने वज्रकर्ण पर आक्रमण किया । वज्रकर्ण ने अपनी प्रतिज्ञा के निर्वाह हेतु इसे सब कुछ देने के लिए कहा किंतु इसने क्रोधांध होकर नगर में आग लगा दी । अंत में यह युद्ध में लक्ष्मण द्वारा बान्ध लिया गया था लक्ष्मण ने इसकी और वज्रकर्ण की अंत में मित्रता करा दी थी तथा वज्रकर्ण के कहने पर इसे मुक्त भी कर दिया था । इसने भी उज्जयिनी का आधा भाग तथा बार किया गया वह देश वज्रकर्ण को दे दिया था । राम ने इसे अपना सामंत बनाया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 33. 74-75, 117-118, 131-134, 174-177, 262-263, 303-308, 120.146-147 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> उज्जयिनी का राजा । दशांगपुर का राजा वज्रकर्ण जिनेंद्र और निर्ग्रंथ मुनि को ही नमस्कार करने की प्रतिज्ञा लेने के कारण इसे नमन नहीं करना चाहता था । अत: उसने तीर्थंकर मुनिसुव्रत की चित्र जड़ित अंगूठी अपने अंगूठे में पहिन रखी थी । इसे नमस्कार करते समय वह अंगूठी सामने रखता और तीर्थंकर मुनिसुव्रत को नमन करके अपने नियम की रक्षा कर लेता था । किसी वैरी ने इसका यह रहस्य राजा को बता दिया । इससे यह राजा वज्रकर्ण से कुपित हो गया । इसने वज्रकर्ण पर आक्रमण किया । वज्रकर्ण ने अपनी प्रतिज्ञा के निर्वाह हेतु इसे सब कुछ देने के लिए कहा किंतु इसने क्रोधांध होकर नगर में आग लगा दी । अंत में यह युद्ध में लक्ष्मण द्वारा बान्ध लिया गया था लक्ष्मण ने इसकी और वज्रकर्ण की अंत में मित्रता करा दी थी तथा वज्रकर्ण के कहने पर इसे मुक्त भी कर दिया था । इसने भी उज्जयिनी का आधा भाग तथा बार किया गया वह देश वज्रकर्ण को दे दिया था । राम ने इसे अपना सामंत बनाया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_33#74|पद्मपुराण - 33.74-75]], 117-118, 131-134, 174-177, 262-263, 303-308, 120.146-147 </span></p> | ||
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Revision as of 22:36, 17 November 2023
उज्जयिनी का राजा । दशांगपुर का राजा वज्रकर्ण जिनेंद्र और निर्ग्रंथ मुनि को ही नमस्कार करने की प्रतिज्ञा लेने के कारण इसे नमन नहीं करना चाहता था । अत: उसने तीर्थंकर मुनिसुव्रत की चित्र जड़ित अंगूठी अपने अंगूठे में पहिन रखी थी । इसे नमस्कार करते समय वह अंगूठी सामने रखता और तीर्थंकर मुनिसुव्रत को नमन करके अपने नियम की रक्षा कर लेता था । किसी वैरी ने इसका यह रहस्य राजा को बता दिया । इससे यह राजा वज्रकर्ण से कुपित हो गया । इसने वज्रकर्ण पर आक्रमण किया । वज्रकर्ण ने अपनी प्रतिज्ञा के निर्वाह हेतु इसे सब कुछ देने के लिए कहा किंतु इसने क्रोधांध होकर नगर में आग लगा दी । अंत में यह युद्ध में लक्ष्मण द्वारा बान्ध लिया गया था लक्ष्मण ने इसकी और वज्रकर्ण की अंत में मित्रता करा दी थी तथा वज्रकर्ण के कहने पर इसे मुक्त भी कर दिया था । इसने भी उज्जयिनी का आधा भाग तथा बार किया गया वह देश वज्रकर्ण को दे दिया था । राम ने इसे अपना सामंत बनाया था । पद्मपुराण - 33.74-75, 117-118, 131-134, 174-177, 262-263, 303-308, 120.146-147