चलितरस: Difference between revisions
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<span class="HindiText"><strong name> चलित रस पदार्थ अभक्ष्य है</strong> </span> | <span class="HindiText"><strong name> चलित रस पदार्थ अभक्ष्य है</strong> </span><br> | ||
<span class="GRef"> भगवती आराधना / विजयोदया टीका/1206/1204/20 </span><span class="SanskritText"> विपंनरूपीरसगंधानि, कुथितानि पुष्पितानि, पुराणानि जंतुसंस्पृष्टानि च न दद्यान्न खादेत् न स्पृशेच्च। </span>= <span class="HindiText">जिनका रूप, रस व गंध तथा स्पर्श चलित हुआ है, जो कुथित हुआ है अर्थात् फूई लगा हुआ है, जिसको जंतुओं ने स्पर्श किया है ऐसा अन्न न देना चाहिए, न खाना चाहिए और न स्पर्श करना चाहिए।</span><br /> | <span class="GRef"> भगवती आराधना / विजयोदया टीका/1206/1204/20 </span><span class="SanskritText"> विपंनरूपीरसगंधानि, कुथितानि पुष्पितानि, पुराणानि जंतुसंस्पृष्टानि च न दद्यान्न खादेत् न स्पृशेच्च। </span>= <span class="HindiText">जिनका रूप, रस व गंध तथा स्पर्श चलित हुआ है, जो कुथित हुआ है अर्थात् फूई लगा हुआ है, जिसको जंतुओं ने स्पर्श किया है ऐसा अन्न न देना चाहिए, न खाना चाहिए और न स्पर्श करना चाहिए।</span><br /> | ||
<span class="GRef"> अमितगति श्रावकाचार/6/85 </span><span class="SanskritGatha">आहारो निःशेषो निजस्वभावादन्यभावमुपयातः। योऽनंतकायिकोऽसौ परिहर्त्तव्यो दयालीढैः।85।</span> = <span class="HindiText">जो समस्त आहार अपने स्वभावतैं अन्यभाव को प्राप्त भया, चलितरस भया, बहुरि जो अनंतकाय सहित है सो वह दया सहित पुरुषों के द्वारा त्याज्य है।</span><br /> | <span class="GRef"> अमितगति श्रावकाचार/6/85 </span><span class="SanskritGatha">आहारो निःशेषो निजस्वभावादन्यभावमुपयातः। योऽनंतकायिकोऽसौ परिहर्त्तव्यो दयालीढैः।85।</span> = <span class="HindiText">जो समस्त आहार अपने स्वभावतैं अन्यभाव को प्राप्त भया, चलितरस भया, बहुरि जो अनंतकाय सहित है सो वह दया सहित पुरुषों के द्वारा त्याज्य है।</span><br /> |
Latest revision as of 16:36, 12 May 2023
चलित रस पदार्थ अभक्ष्य है
भगवती आराधना / विजयोदया टीका/1206/1204/20 विपंनरूपीरसगंधानि, कुथितानि पुष्पितानि, पुराणानि जंतुसंस्पृष्टानि च न दद्यान्न खादेत् न स्पृशेच्च। = जिनका रूप, रस व गंध तथा स्पर्श चलित हुआ है, जो कुथित हुआ है अर्थात् फूई लगा हुआ है, जिसको जंतुओं ने स्पर्श किया है ऐसा अन्न न देना चाहिए, न खाना चाहिए और न स्पर्श करना चाहिए।
अमितगति श्रावकाचार/6/85 आहारो निःशेषो निजस्वभावादन्यभावमुपयातः। योऽनंतकायिकोऽसौ परिहर्त्तव्यो दयालीढैः।85। = जो समस्त आहार अपने स्वभावतैं अन्यभाव को प्राप्त भया, चलितरस भया, बहुरि जो अनंतकाय सहित है सो वह दया सहित पुरुषों के द्वारा त्याज्य है।
चारित्तपाहुड़/ टीका/21/43/16 सुललितपुष्पितस्वादचलितमन्नं त्यजेत्। = अंकुरित हुआ अर्थात् जड़ा हुआ, फुई लगा हुआ या स्वाद चलित अन्न अभक्ष्य है।
लाटी संहिता/2/56 रूपगंधरसस्पर्शाच्चलितं नैव भक्षयेत्। अवश्यं त्रसजीवानां निकोतानां समाश्रयात्।56। = जो पदार्थ रूप गंध रस और स्पर्श से चलायमान हो गये हैं, जिनका रूपादि बिगड़ गया है, ऐसे पदार्थों को भी कभी नहीं खाना चाहिए। क्योंकि ऐसे पदार्थों में अनेक त्रस जीवों की, और निगोद राशि की उत्पत्ति अवश्य हो जाती है।
देखें भक्ष्याभक्ष्य - 2।