चूलिका: Difference between revisions
From जैनकोष
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 2: | Line 2: | ||
== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
<ol> | <ol> | ||
<li> <span class="GRef"> धवला 7/2,11,1/575/7 </span><span class="PrakritText">ण च एसो णियमो सव्वाणिओगद्दारसूइदत्थाणं विसेसपरूविणा चूलिया णाम, किंतु एक्केण दोहि सव्वेहिं वा अणिओगद्दारेहिं सूइदत्थाणं विसेसपरूविणा चूलिया णाम</span>=<span class="HindiText">सर्व अनुयोग द्वारों से सूचित अर्थों की विशेष प्ररूपणा करने वाली ही चूलिका हो, यह कोई नियम नहीं है, किंतु एक, दो अथवा सब अनुयोगद्वारों से सूचित अर्थों की विशेष प्ररूपणा करना चूलिका है</span> | <li> <span class="GRef"> धवला 7/2,11,1/575/7 </span><span class="PrakritText">ण च एसो णियमो सव्वाणिओगद्दारसूइदत्थाणं विसेसपरूविणा चूलिया णाम, किंतु एक्केण दोहि सव्वेहिं वा अणिओगद्दारेहिं सूइदत्थाणं विसेसपरूविणा चूलिया णाम</span>=<span class="HindiText">सर्व अनुयोग द्वारों से सूचित अर्थों की विशेष प्ररूपणा करने वाली ही चूलिका हो, यह कोई नियम नहीं है, किंतु एक, दो अथवा सब अनुयोगद्वारों से सूचित अर्थों की विशेष प्ररूपणा करना चूलिका है</span> <span class="GRef">( धवला 11/4,2,6,36/140/11 )</span>। <br> | ||
<span class="GRef"> समयसार / तात्पर्यवृत्ति/321 </span><span class="SanskritText">विशेषव्याख्यानं उक्तानुक्तव्याख्यानं, उक्तानुक्तसंकीर्णव्याख्यानं चेति त्रिधा चूलिकाशब्दस्यार्थो ज्ञातव्य:</span>=<span class="HindiText">विशेष व्याख्यान, उक्त या अनुक्त व्याख्या अथवा उक्तानुक्त अर्थ का संक्षिप्त व्याख्यान (Summary), ऐसे तीन प्रकार चूलिका शब्द का अर्थ जानना चाहिए। | <span class="GRef"> समयसार / तात्पर्यवृत्ति/321 </span><span class="SanskritText">विशेषव्याख्यानं उक्तानुक्तव्याख्यानं, उक्तानुक्तसंकीर्णव्याख्यानं चेति त्रिधा चूलिकाशब्दस्यार्थो ज्ञातव्य:</span>=<span class="HindiText">विशेष व्याख्यान, उक्त या अनुक्त व्याख्या अथवा उक्तानुक्त अर्थ का संक्षिप्त व्याख्यान (Summary), ऐसे तीन प्रकार चूलिका शब्द का अर्थ जानना चाहिए। <span class="GRef">( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/398/563/7 )</span>; <span class="GRef">( द्रव्यसंग्रह टीका/ अधिकार 2 की चूलिका पृष्ठ 80/3)</span>। </span></li> | ||
<li class="HindiText"> पर्वत के ऊपर क्षुद्र पर्वत सरीखी चोटी; Top | <li class="HindiText"> पर्वत के ऊपर क्षुद्र पर्वत सरीखी चोटी; Top <span class="GRef">( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ प्रस्तावना 106)</span>; </li> | ||
<li class="HindiText"> दृष्टिप्रवाद अंग का 5वाँ भेद–देखें [[ श्रुतज्ञान#III | श्रुतज्ञान - III]]। </li> | <li class="HindiText"> दृष्टिप्रवाद अंग का 5वाँ भेद–देखें [[ श्रुतज्ञान#III | श्रुतज्ञान - III]]। </li> | ||
</ol> | </ol> |
Revision as of 22:20, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
- धवला 7/2,11,1/575/7 ण च एसो णियमो सव्वाणिओगद्दारसूइदत्थाणं विसेसपरूविणा चूलिया णाम, किंतु एक्केण दोहि सव्वेहिं वा अणिओगद्दारेहिं सूइदत्थाणं विसेसपरूविणा चूलिया णाम=सर्व अनुयोग द्वारों से सूचित अर्थों की विशेष प्ररूपणा करने वाली ही चूलिका हो, यह कोई नियम नहीं है, किंतु एक, दो अथवा सब अनुयोगद्वारों से सूचित अर्थों की विशेष प्ररूपणा करना चूलिका है ( धवला 11/4,2,6,36/140/11 )।
समयसार / तात्पर्यवृत्ति/321 विशेषव्याख्यानं उक्तानुक्तव्याख्यानं, उक्तानुक्तसंकीर्णव्याख्यानं चेति त्रिधा चूलिकाशब्दस्यार्थो ज्ञातव्य:=विशेष व्याख्यान, उक्त या अनुक्त व्याख्या अथवा उक्तानुक्त अर्थ का संक्षिप्त व्याख्यान (Summary), ऐसे तीन प्रकार चूलिका शब्द का अर्थ जानना चाहिए। ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/398/563/7 ); ( द्रव्यसंग्रह टीका/ अधिकार 2 की चूलिका पृष्ठ 80/3)। - पर्वत के ऊपर क्षुद्र पर्वत सरीखी चोटी; Top ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ प्रस्तावना 106);
- दृष्टिप्रवाद अंग का 5वाँ भेद–देखें श्रुतज्ञान - III।
पुराणकोष से
(1) एक नगरी । यह कीचक आदि सौ पुत्रों के पिता राजा चूलिक की राजधानी थी । हरिवंशपुराण 46. 26-24, पांडवपुराण 17.245-246
(2) अंगप्रविष्ट श्रुत के भेदों में दृष्टिवाद अंग के परिकर्म आदि पांच भेदों में पाँचवाँ भेद । यह जलगता, स्थलगता, आकाशगता, रूपगता तथा मायागता के भेद से पाँच प्रकार की होती है । इनमें प्रत्येक भेद के दो करोड़ नौ लाख नवासी हजार दो सौ पाँच पद होते हैं । महापुराण 6.148, हरिवंशपुराण 2.100, 10.61, 123-124