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<p id="1"> (1) मन्त्र-परिष्कृत एक विद्या । यह घरणेन्द्र से नमि और विनमि को मिली थी । इस विद्या को रावण ने भी सिद्ध किया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 7.330-332, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 22. 70 </span></p> | |||
<p id="2">(2) समवसरण की चार वापियों में तीसरी वापी । इनमें स्नान करने वाले जीव अपना पूर्वभव जान जाते हैं । ये वापियाँ सदैव जल से भरी रहती है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 57.73-74 </span></p> | |||
<p id="3">(3) भरतक्षेत्र में पृथिवीपुर नगर के राजा यशोधर की रानी । यह जयकीर्तन की जननी थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.138 </span></p> | |||
<p id="4">(4) चम्पापुरी के राजा वसुपूज्य की रानी । यह तीर्थंकर वासुपूज्य की जननी थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20. 48 </span>इसका दूसरा नाम जयावती था । <span class="GRef"> महापुराण 58.17-20 </span></p> | |||
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Revision as of 21:41, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- अरहनाथ भगवान् की शासक यक्षिणी–देखें तीर्थंकर - 5.3
- एक विद्याधर विद्या व एक मन्त्र विद्या–देखें विद्या ।
- वाचना या व्याख्या का एक भेद–देखें वाचना ।
पुराणकोष से
(1) मन्त्र-परिष्कृत एक विद्या । यह घरणेन्द्र से नमि और विनमि को मिली थी । इस विद्या को रावण ने भी सिद्ध किया था । पद्मपुराण 7.330-332, हरिवंशपुराण 22. 70
(2) समवसरण की चार वापियों में तीसरी वापी । इनमें स्नान करने वाले जीव अपना पूर्वभव जान जाते हैं । ये वापियाँ सदैव जल से भरी रहती है । हरिवंशपुराण 57.73-74
(3) भरतक्षेत्र में पृथिवीपुर नगर के राजा यशोधर की रानी । यह जयकीर्तन की जननी थी । पद्मपुराण 5.138
(4) चम्पापुरी के राजा वसुपूज्य की रानी । यह तीर्थंकर वासुपूज्य की जननी थी । पद्मपुराण 20. 48 इसका दूसरा नाम जयावती था । महापुराण 58.17-20