जंघाचरण: Difference between revisions
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Revision as of 09:21, 17 July 2023
तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या १०३७
चउरंगुलमेत्तमहिं छंडिय गयणम्मि कुडिलजाणु व्रिणा। जं बहुजोयणगमणं सा जंघाचारणा रिद्धी ।१०३७।
= चार अंगुल प्रमाण पृथिवी को छोड़कर आकाश में घुटनों को मोड़े बिना (या जल्दी जल्दी जंघाओं को उत्क्षेप निक्षेप करते हुए- राजवार्तिक अध्याय संख्या ) जो बहुत योजनों तक गमन करना है, वह जंघाचारण ऋद्धि है। ( राजवार्तिक अध्याय संख्या ३/३६/३/२०२/२९); (चारित्रसार पृष्ठ संख्या २१८/३)
धवला पुस्तक संख्या ९/४,१,१७/७९/७; ८१/४
भूमीए पुढविकाइयजीवाणं बाहमकाऊण अणेगजोयणसयगामिणो जंघाचारणा णाम ।७९-७।....चिक्खल्लछारगोवर-भूसादिचारणाणं जंघाचारणेसु अंतब्भावो, भूमीदो चिक्खलादीणं कधंचि भेदाभावादो ।८१-४।
= भूमि में पृथिवीकायिक जीवों को बाधा न करके अनेक सौ योजन गमन करने वाले जंघाचारण कहलाते हैं।....कीचड़ भस्म, गोबर और भूसे आदि पर से गमन करनेवालों का जंघाचारणों में अन्तर्भाव होता है, क्योंकि भूमि से कीचड़ आदि में कथंचित् अभेद है।
अधिक जानकारी के लिये देखें ऋद्धि - 4.5