आचारांग: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> द्वादशांगरूप श्रुतस्कंध का प्रथम अंग । इसमें अठारह हजार पद है जिनमें मुनियों के आचार का वर्णन किया गया है । <span class="GRef"> महापुराण 34. 133-135, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.92, 10.27 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> द्वादशांगरूप श्रुतस्कंध का प्रथम अंग । इसमें अठारह हजार पद है जिनमें मुनियों के आचार का वर्णन किया गया है । <span class="GRef"> महापुराण 34. 133-135, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#92|हरिवंशपुराण - 2.92]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#10|हरिवंशपुराण - 2.10]].27 </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
राजवार्तिक/1/20/12/-72/28 आचारे चर्याविधानं शुद्धयष्टकपंचसमितित्रिगुप्तिविकल्पं कथ्यते। =आचारांग में चर्या का विधान आठ शुद्धि, पाँच समिति, तीन गुप्ति आदि रूप से वर्णित है।
अन्य अंगों को जानने हेतु देखें शब्द लिंगज श्रुतज्ञान विशेष
श्रुतज्ञान के सम्बन्ध में विस्तार से जानने हेतु - देखें श्रुतज्ञान - III।
पुराणकोष से
द्वादशांगरूप श्रुतस्कंध का प्रथम अंग । इसमें अठारह हजार पद है जिनमें मुनियों के आचार का वर्णन किया गया है । महापुराण 34. 133-135, हरिवंशपुराण - 2.92,हरिवंशपुराण - 2.10.27