उपायविचय: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> | <div class="HindiText"> <p> धर्मध्यान का दूसरा भेद । योग की पुण्यरूप प्रवृत्तियों को अपने अधीन करना उपाय है । इस उपाय का संकल्पन और चिंतन उपाय-विचय है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 56.41 </span></p> | ||
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Revision as of 21:56, 4 September 2023
सिद्धांतकोष से
हरिवंशपुराण/56/39-41 संसारहेतव: प्रायस्त्रियोगानां प्रवृत्तय:। अपायो वर्जनं तासां स मे स्यात्कथमित्यलम् ।39। चिंताप्रबंधसंबंध: शुभलेश्यानुरंजित:। अपायविचयाख्यं तत्प्रथमं धर्म्यमभीप्सितम् ।40। उपायविचयं तासां पुण्यानामात्मसात्क्रिया। उपाय: स कथं मे स्यादिति संकल्पसंतति:।41। =मन, वचन और काय इन तीन योगों की प्रवृत्ति ही, प्राय: संसार का कारण है सो इन प्रवृत्तियों का मेरे अपाय अर्थात् त्याग किस प्रकार हो सकता है, इस प्रकार शुभलेश्या से अनुरंजित जो चिंता का प्रबंध है वह अपायविचय नाम का प्रथम धर्म्यध्यान माना गया है।39-40। पुण्य रूप योगप्रवृत्तियों को अपने आधीन करना उपाय कहलाता है, वह उपाय मेरे किस प्रकार हो सकता है, इस प्रकार के संकल्पों की जो संतति है वह उपाय विचय नाम का दूसरा धर्म्यध्यान है।41। ।
धर्मध्यानका एक भेद-देखें धर्मध्यान - 1
पुराणकोष से
धर्मध्यान का दूसरा भेद । योग की पुण्यरूप प्रवृत्तियों को अपने अधीन करना उपाय है । इस उपाय का संकल्पन और चिंतन उपाय-विचय है । हरिवंशपुराण 56.41