सहस्ररश्मि: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) रथनूपुर के राजा विद्याधर अमिततेज के पाँच सौ पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र । अमिततेज इसे साथ लेकर महाज्वाला विद्या सिद्ध करने के लिए ह्रीमंत पर्वत पर श्रीसंजयंत मुनि की प्रतिमा के पास गया था । <span class="GRef"> महापुराण 62.273-274 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) रथनूपुर के राजा विद्याधर अमिततेज के पाँच सौ पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र । अमिततेज इसे साथ लेकर महाज्वाला विद्या सिद्ध करने के लिए ह्रीमंत पर्वत पर श्रीसंजयंत मुनि की प्रतिमा के पास गया था । <span class="GRef"> महापुराण 62.273-274 </span></p> | ||
<p id="2">(2) माहिष्मती नगरी का राजा । इसने नर्मदा के किनारे रावण की पूजा में विघ्न किया । इस विघ्न के फलस्वरूप रावण और इसका युद्ध हुआ, जिसमें यह जीवित पकड़ा गया था । इसके पिता शतबाहु मुनि के कहने से रावण ने इसे छोड़ दिया था और इसे अपना चौथा भाई मान लिया था । रावण ने मंदोदरी की छोटी बहिन स्वयप्रभा भी देने का प्रस्ताव रखा था किंतु उसे अस्वीकृत कर इसने पुत्र को राज्य सौंपकर दशानन से क्षमा याचना करते हुए पिता शतबाहु के पास दीक्षा ले ली थी । पूर्व निश्चयानुसार जैसे ही अनरण्य के पास इसकी दीक्षा का समाचार गया कि अनरण्य भी पुत्र को राज्य देकर मुनि हो गया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 10. 65, 86-92, 130-131, 147, 160-176 </span></p> | <p id="2">(2) माहिष्मती नगरी का राजा । इसने नर्मदा के किनारे रावण की पूजा में विघ्न किया । इस विघ्न के फलस्वरूप रावण और इसका युद्ध हुआ, जिसमें यह जीवित पकड़ा गया था । इसके पिता शतबाहु मुनि के कहने से रावण ने इसे छोड़ दिया था और इसे अपना चौथा भाई मान लिया था । रावण ने मंदोदरी की छोटी बहिन स्वयप्रभा भी देने का प्रस्ताव रखा था किंतु उसे अस्वीकृत कर इसने पुत्र को राज्य सौंपकर दशानन से क्षमा याचना करते हुए पिता शतबाहु के पास दीक्षा ले ली थी । पूर्व निश्चयानुसार जैसे ही अनरण्य के पास इसकी दीक्षा का समाचार गया कि अनरण्य भी पुत्र को राज्य देकर मुनि हो गया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_10#65|पद्मपुराण - 10.65]], 86-92, 130-131, 147, 160-176 </span></p> | ||
<p id="3">(3) जरासंध का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 52.40 </span></p> | <p id="3">(3) जरासंध का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 52.40 </span></p> | ||
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Revision as of 22:36, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
पद्मपुराण/10/ श्लोक
-माहिष्मती नगरी का राजा था।67। रावण की पूजा में बाधा डालने के कारण।91। युद्ध में।114। रावण द्वारा पकड़ा गया।131। अंत में पिता शतबाहु की प्रार्थना पर छोड़ा जाकर दीक्षा धारण कर ली।147,168।
पुराणकोष से
(1) रथनूपुर के राजा विद्याधर अमिततेज के पाँच सौ पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र । अमिततेज इसे साथ लेकर महाज्वाला विद्या सिद्ध करने के लिए ह्रीमंत पर्वत पर श्रीसंजयंत मुनि की प्रतिमा के पास गया था । महापुराण 62.273-274
(2) माहिष्मती नगरी का राजा । इसने नर्मदा के किनारे रावण की पूजा में विघ्न किया । इस विघ्न के फलस्वरूप रावण और इसका युद्ध हुआ, जिसमें यह जीवित पकड़ा गया था । इसके पिता शतबाहु मुनि के कहने से रावण ने इसे छोड़ दिया था और इसे अपना चौथा भाई मान लिया था । रावण ने मंदोदरी की छोटी बहिन स्वयप्रभा भी देने का प्रस्ताव रखा था किंतु उसे अस्वीकृत कर इसने पुत्र को राज्य सौंपकर दशानन से क्षमा याचना करते हुए पिता शतबाहु के पास दीक्षा ले ली थी । पूर्व निश्चयानुसार जैसे ही अनरण्य के पास इसकी दीक्षा का समाचार गया कि अनरण्य भी पुत्र को राज्य देकर मुनि हो गया था । पद्मपुराण - 10.65, 86-92, 130-131, 147, 160-176
(3) जरासंध का पुत्र । हरिवंशपुराण 52.40