आतपयोग,आतापनयोग: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की ताप से उत्पन्न असह्य दुःखों को सहना, पर्वत के अग्रभाग की तप्त शिखाओं पर दोनों पैर रखकर तथा दोनों भुजाएँ लटका कर खड़े होना, उग्रतर तीव्र ग्रीष्म का ताप सहन करना । तीर्थंकर महावीर इस योग में स्थिर हुए थे तथा इसी योग में उन्हें केवलज्ञान हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 34.151-154, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_9#128|पद्मपुराण -9. 128]], </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 258-59, 33.76 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की ताप से उत्पन्न असह्य दुःखों को सहना, पर्वत के अग्रभाग की तप्त शिखाओं पर दोनों पैर रखकर तथा दोनों भुजाएँ लटका कर खड़े होना, उग्रतर तीव्र ग्रीष्म का ताप सहन करना । तीर्थंकर महावीर इस योग में स्थिर हुए थे तथा इसी योग में उन्हें केवलज्ञान हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 34.151-154, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_9#128|पद्मपुराण -9. 128]], </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 258-59, 33.76 </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की ताप से उत्पन्न असह्य दुःखों को सहना, पर्वत के अग्रभाग की तप्त शिखाओं पर दोनों पैर रखकर तथा दोनों भुजाएँ लटका कर खड़े होना, उग्रतर तीव्र ग्रीष्म का ताप सहन करना । तीर्थंकर महावीर इस योग में स्थिर हुए थे तथा इसी योग में उन्हें केवलज्ञान हुआ था । महापुराण 34.151-154, पद्मपुराण -9. 128, हरिवंशपुराण 258-59, 33.76