द्रोण: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) द्रोणाचार्य । यह ऋषि भार्गव की वंश-परम्परा में हुए विद्रावण का पुत्र था । अश्विनी इसकी स्त्री और इससे उत्पन्न अश्वत्थामा इसका पुत्र था । इसने पाण्डवों और कौरवों को धनुर्विद्या सिखायी थी । कौरवों द्वारा पाण्डवों का लाक्षागृह में जलाया जाना सुनकर यह बहुत दुःखी हुआ था । इसने कौरवों से कहा था कि इस प्रकार कुल-परम्परा का विनाश करना उचित नहीं है । एक भील ने इसे गुरु बनाकर शब्दवेधिनी दिया प्राप्त की थी । अर्जुन के कहने पर प्राणियों के वध से रोकने के लिए इसने भील से उसके दाहिने हाथ का अंगूठा माँगा था । भील ने अपना अंगूठा तत्काल ही सहर्ष दे दिया था । कृष्ण-जरासन्ध युद्ध में अर्जुन को इससे युद्ध करना पड़ा था । अर्जुन इसे ब्राह्मण और गुरु समझकर छोड़ता रहा । एक बार अर्जुन ने इसे ब्रह्मास्त्र से बाँध लिया और गुरु समझकर मुक्त भी कर दिया । इसी समय मालवदेश के राजा का अश्वत्थामा नामक हाथी युद्ध में मारा गया । युधिष्ठिर के यह कहते ही कि अश्वत्थामा रण में मारा गया इसने हथियार डाल दिये थे । यह रुदन करने लगा तो युधिष्ठिर ने कहा कि हाथी मरा है उसका पुत्र नहीं । इससे यह शान्त हुआ ही था कि धृष्टार्जुन ने असि-प्रहार से इसका मस्तक काट डाला । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 45.41-48, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 8.210-294, 10. 215-216, 262-267, 12. 197-199, 20. 187, 201-202, 222-233 </span></p> | |||
<p id="2">(2) नदी और समुद्र की मर्यादाओं से युक्त ग्राम । <span class="GRef"> पांडवपुराण 2.160 </span></p> | |||
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Revision as of 21:42, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से == तौल का एक प्रमाण।–देखें गणित - I.1.2।
पुराणकोष से
(1) द्रोणाचार्य । यह ऋषि भार्गव की वंश-परम्परा में हुए विद्रावण का पुत्र था । अश्विनी इसकी स्त्री और इससे उत्पन्न अश्वत्थामा इसका पुत्र था । इसने पाण्डवों और कौरवों को धनुर्विद्या सिखायी थी । कौरवों द्वारा पाण्डवों का लाक्षागृह में जलाया जाना सुनकर यह बहुत दुःखी हुआ था । इसने कौरवों से कहा था कि इस प्रकार कुल-परम्परा का विनाश करना उचित नहीं है । एक भील ने इसे गुरु बनाकर शब्दवेधिनी दिया प्राप्त की थी । अर्जुन के कहने पर प्राणियों के वध से रोकने के लिए इसने भील से उसके दाहिने हाथ का अंगूठा माँगा था । भील ने अपना अंगूठा तत्काल ही सहर्ष दे दिया था । कृष्ण-जरासन्ध युद्ध में अर्जुन को इससे युद्ध करना पड़ा था । अर्जुन इसे ब्राह्मण और गुरु समझकर छोड़ता रहा । एक बार अर्जुन ने इसे ब्रह्मास्त्र से बाँध लिया और गुरु समझकर मुक्त भी कर दिया । इसी समय मालवदेश के राजा का अश्वत्थामा नामक हाथी युद्ध में मारा गया । युधिष्ठिर के यह कहते ही कि अश्वत्थामा रण में मारा गया इसने हथियार डाल दिये थे । यह रुदन करने लगा तो युधिष्ठिर ने कहा कि हाथी मरा है उसका पुत्र नहीं । इससे यह शान्त हुआ ही था कि धृष्टार्जुन ने असि-प्रहार से इसका मस्तक काट डाला । हरिवंशपुराण 45.41-48, पांडवपुराण 8.210-294, 10. 215-216, 262-267, 12. 197-199, 20. 187, 201-202, 222-233
(2) नदी और समुद्र की मर्यादाओं से युक्त ग्राम । पांडवपुराण 2.160