धृतिषेण: Difference between revisions
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श्रुतावतार की पट्टावली के अनुसार आप भद्रबाहु प्रथम (श्रुतकेवली) के पश्चात् सातवें 11 अंग 10 पूर्वधारी थे। समय‒वी.नि.264-282; (ई.पू.263-245)‒देखें [[ इतिहास#4.4 | इतिहास - 4.4]]। | |||
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<p id="1"> (1) तीर्थंकर महावीर के निर्वाण के पश्चात् एक सौ बासठ वर्ष बाद एक सौ तिरासी वर्ष के काल में हुए दश पूर्व और ग्यारह अंग के धारी ग्यारह आचार्यों में सातवें आचार्य । <span class="GRef"> महापुराण 2.143, 76.521-524, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1.62-63 </span></p> | |||
<p id="2">(2) एक चारण ऋणद्धिधारी मुनि । भरतक्षेत्र के नन्दनपुर नगर के राजा अमितविक्रम की धनश्री और अनन्तश्री पुत्रियों को इन्होंने बताया था कि उनकी मुक्ति भावी चौथे जन्म में हो जायेगी । <span class="GRef"> महापुराण 63. 12-22, </span>घातकीखण्ड में ऐरावत क्षेत्र के शंखपुर नगर के राजा राजगुप्त न इन्हें आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । <span class="GRef"> महापुराण 63.246-248 </span></p> | |||
<p id="3">(3) सिंहपुर के राजा आर्यवर्मा का पुत्र । <span class="GRef"> महापुराण 75.281 </span></p> | |||
<p id="4">(4) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में वत्सकावती देश की पृथिवी नगरी के राजा जयसेन और रानी जयसेना का पुत्र । यह रतिषेण का सहोदर था । <span class="GRef"> महापुराण 48.58-59 </span></p> | |||
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Revision as of 21:42, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से == श्रुतावतार की पट्टावली के अनुसार आप भद्रबाहु प्रथम (श्रुतकेवली) के पश्चात् सातवें 11 अंग 10 पूर्वधारी थे। समय‒वी.नि.264-282; (ई.पू.263-245)‒देखें इतिहास - 4.4।
पुराणकोष से
(1) तीर्थंकर महावीर के निर्वाण के पश्चात् एक सौ बासठ वर्ष बाद एक सौ तिरासी वर्ष के काल में हुए दश पूर्व और ग्यारह अंग के धारी ग्यारह आचार्यों में सातवें आचार्य । महापुराण 2.143, 76.521-524, हरिवंशपुराण 1.62-63
(2) एक चारण ऋणद्धिधारी मुनि । भरतक्षेत्र के नन्दनपुर नगर के राजा अमितविक्रम की धनश्री और अनन्तश्री पुत्रियों को इन्होंने बताया था कि उनकी मुक्ति भावी चौथे जन्म में हो जायेगी । महापुराण 63. 12-22, घातकीखण्ड में ऐरावत क्षेत्र के शंखपुर नगर के राजा राजगुप्त न इन्हें आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । महापुराण 63.246-248
(3) सिंहपुर के राजा आर्यवर्मा का पुत्र । महापुराण 75.281
(4) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में वत्सकावती देश की पृथिवी नगरी के राजा जयसेन और रानी जयसेना का पुत्र । यह रतिषेण का सहोदर था । महापुराण 48.58-59