विपुलाचल: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> राजगृह नगर की पाँच पहाड़ियों में तीसरी पहाड़ी । यह राजगृह नगर के दक्षिण-पश्चिम दिशा के मध्य में त्रिकोण आकृति से स्थित है । इंद्र ने तीर्थंकर महावीर के प्रथम धर्मोपदेश के लिए यहाँ समवसरण रचा था । तीर्थंकर महावीर विहार करते हुए संघ सहित यहाँ आये थे । गौतम गणधर का तपोवन इसी पर्वत के चारों ओर था । जीवंधर-स्वामी इसी पर्वत से कर्मों का नाश करके मोक्ष गये । इसका अपर नाम विपुलाद्रि है । <span class="GRef"> महापुराण 1.196, 2.17, 74.385, 75.687, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_2#102|पद्मपुराण - 2.102-109]], </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3.54-59, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 19.84 </span>देखें [[ राजगृह ]]</p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> राजगृह नगर की पाँच पहाड़ियों में तीसरी पहाड़ी । यह राजगृह नगर के दक्षिण-पश्चिम दिशा के मध्य में त्रिकोण आकृति से स्थित है । इंद्र ने तीर्थंकर महावीर के प्रथम धर्मोपदेश के लिए यहाँ समवसरण रचा था । तीर्थंकर महावीर विहार करते हुए संघ सहित यहाँ आये थे । गौतम गणधर का तपोवन इसी पर्वत के चारों ओर था । जीवंधर-स्वामी इसी पर्वत से कर्मों का नाश करके मोक्ष गये । इसका अपर नाम विपुलाद्रि है । <span class="GRef"> महापुराण 1.196, 2.17, 74.385, 75.687, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_2#102|पद्मपुराण - 2.102-109]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_3#54|हरिवंशपुराण - 3.54-59]], </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 19.84 </span>देखें [[ राजगृह ]]</p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
राजगृह नगर की पाँच पहाड़ियों में तीसरी पहाड़ी । यह राजगृह नगर के दक्षिण-पश्चिम दिशा के मध्य में त्रिकोण आकृति से स्थित है । इंद्र ने तीर्थंकर महावीर के प्रथम धर्मोपदेश के लिए यहाँ समवसरण रचा था । तीर्थंकर महावीर विहार करते हुए संघ सहित यहाँ आये थे । गौतम गणधर का तपोवन इसी पर्वत के चारों ओर था । जीवंधर-स्वामी इसी पर्वत से कर्मों का नाश करके मोक्ष गये । इसका अपर नाम विपुलाद्रि है । महापुराण 1.196, 2.17, 74.385, 75.687, पद्मपुराण - 2.102-109, हरिवंशपुराण - 3.54-59, वीरवर्द्धमान चरित्र 19.84 देखें राजगृह