नय: Difference between revisions
From जैनकोष
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पदार्थ तीन कोटियों में विभाजित हैं‒या तो वे अर्थात्मक अर्थात् वस्तुरूप हैं, या शब्दात्मक अर्थात् वाचकरूप हैं और या ज्ञानात्मक अर्थात् प्रतिभास रूप हैं। अत: उन-उनको विषय करने के कारण नय ज्ञान व नय वाक्य भी तीन प्रकार के हैं‒अर्थनय, शब्दनय व ज्ञाननय। मुख्य गौण विवक्षा के कारण वक्ता के अभिप्राय भी अनेक प्रकार के होते हैं, जिससे नय भी अनेक प्रकार के हैं। वस्तु के सामान्यांश अर्थात् द्रव्य को विषय करने वाला नय द्रव्यार्थिक और उसके विशेषांश अर्थात् पर्याय को विषय करने वाला नय पर्यायार्थिक होता है। इन दो मूल भेदों के भी आगे अनेकों उत्तरभेद हो जाते हैं। इसी प्रकार वस्तु के अन्तरंगरूप या स्वभाव को विषय करने वाला निश्चय और उसके बाह्य या संयोगी रूप को विषय करने वाला नय व्यवहार कहलाता है अथवा गुण-गुणी में अभेद को विषय करने वाला निश्चय और उनमें कथंचित् भेद को विषय करने वाला व्यवहार कहलाता है। तथा इसी प्रकार अन्य भेद-प्रभेदों का यह नयचक्र उतना ही जटिल है जितनी कि उसकी विषयभूत वस्तु। उस सबका परिचय इस अधिकार में दिया जायेगा।<br /> | पदार्थ तीन कोटियों में विभाजित हैं‒या तो वे अर्थात्मक अर्थात् वस्तुरूप हैं, या शब्दात्मक अर्थात् वाचकरूप हैं और या ज्ञानात्मक अर्थात् प्रतिभास रूप हैं। अत: उन-उनको विषय करने के कारण नय ज्ञान व नय वाक्य भी तीन प्रकार के हैं‒अर्थनय, शब्दनय व ज्ञाननय। मुख्य गौण विवक्षा के कारण वक्ता के अभिप्राय भी अनेक प्रकार के होते हैं, जिससे नय भी अनेक प्रकार के हैं। वस्तु के सामान्यांश अर्थात् द्रव्य को विषय करने वाला नय द्रव्यार्थिक और उसके विशेषांश अर्थात् पर्याय को विषय करने वाला नय पर्यायार्थिक होता है। इन दो मूल भेदों के भी आगे अनेकों उत्तरभेद हो जाते हैं। इसी प्रकार वस्तु के अन्तरंगरूप या स्वभाव को विषय करने वाला निश्चय और उसके बाह्य या संयोगी रूप को विषय करने वाला नय व्यवहार कहलाता है अथवा गुण-गुणी में अभेद को विषय करने वाला निश्चय और उनमें कथंचित् भेद को विषय करने वाला व्यवहार कहलाता है। तथा इसी प्रकार अन्य भेद-प्रभेदों का यह नयचक्र उतना ही जटिल है जितनी कि उसकी विषयभूत वस्तु। उस सबका परिचय इस अधिकार में दिया जायेगा।<br /> | ||
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<li | <li><strong> [[नय सामान्य]]</strong><br /> | ||
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<li | <li id="I.1"><strong> [[नय सामान्य#I.1 | नय सामान्य निर्देश]]</strong><br /> | ||
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<li | <li id="I.1.1"> [[नय सामान्य#I.1.1 | नय सामान्य का लक्षण]]<br /> | ||
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<li | <li id="I.1.1.1"> [[नय सामान्य#I.1.1.1 | निरुक्त्यर्थ।]]<br /> | ||
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<li | <li id="I.1.1.2"> [[नय सामान्य#I.1.1.2 | वक्ता का अभिप्राय।]]<br /> | ||
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<li | <li id="I.1.1.3"> [[नय सामान्य#I.1.1.3 | एकदेश वस्तुग्राही।]]<br /> | ||
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<li | <li id="I.1.1.4"> [[नय सामान्य#I.1.1.4 | प्रमाणगृहीत वस्त्वंशग्राही।]]<br /> | ||
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<li | <li id="I.1.1.5"> [[नय सामान्य#I.1.1.5 | श्रुतज्ञान का विकल्प।]]<br /> | ||
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<li | <li id="I.1.2"> [[नय सामान्य#I.1.2 | उपरोक्त लक्षणों का समीकरण।]]<br /> | ||
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<li | <li> नय व निक्षेप में अन्तर।‒ देखें - [[ निक्षेप#1 | निक्षेप / १ ]]।]]<br /> | ||
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<li | <li> नयों व निक्षेपों का परस्पर अन्तर्भाव।‒ देखें - [[ निक्षेप#2 | निक्षेप / २ ]],३।]]<br /> | ||
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<li | <li> नयाभास निर्देश।‒ देखें - [[ नय#II | नय / II ]]।<br /> | ||
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<li | <li id="I.1.3"> [[नय सामान्य#I.1.3 | नय के मूल भेदों के नाम निर्देश।]]</li> | ||
<li | <li id="I.1.4"> [[नय सामान्य#I.1.4 | नय के भेद-प्रभेदों की सूची।]]<br /> | ||
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<li | <li id="I.1.5"> [[नय सामान्य#I.1.5 | द्रव्यार्थिक, पर्यायार्थिक अथवा निश्चय व्यवहार, ये ही मूल भेद हैं।]]<br /> | ||
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<li | <li id="I.1.6"> [[नय सामान्य#I.1.6 | गुणार्थिक नय का निर्देश क्यों नहीं ? ]]<br /> | ||
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<li | <li> आगम व अध्यात्म पद्धति।‒देखें - [[ पद्धति | पद्धति। ]]<br /> | ||
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<li | <li id="I.2"><strong>[[नय सामान्य#I.2 | नय-प्रमाण सम्बन्ध]]</strong><br /> | ||
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<li | <li id="I.2.1"> [[नय सामान्य#I.2.1 | नय व प्रमाण में कथंचित् अभेद।]] <br /> | ||
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<li | <li id="I.2.2"> [[नय सामान्य#I.2.2 | नय व प्रमाण में कथंचित् भेद।]] <br /> | ||
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<li | <li id="I.2.3"> [[नय सामान्य#I.2.3 | श्रुतज्ञान में ही नय होती है, अन्य ज्ञानों में नहीं।]] <br /> | ||
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<li | <li id="I.2.4"> [[नय सामान्य#I.2.4 | प्रमाण व नय में कथंचित् प्रधान व अप्रधानपना।]] <br /> | ||
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<li | <li id="I.2.5"> [[नय सामान्य#I.2.5 | प्रमाण का विषय सामान्य विशेष दोनों है।]] <br /> | ||
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<li | <li id="I.2.6"> [[नय सामान्य#I.2.6 | प्रमाण अनेकान्तग्राही है और नय एकान्तग्राही।]] <br /> | ||
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<li | <li id="I.2.7"> [[नय सामान्य#I.2.7 | प्रमाण सकलादेशी है और नय विकलादेशी।]] <br /> | ||
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<li | <li> नय भी कथंचित् सकलादेशी है।‒ देखें - [[ सप्तभंगी#2 | सप्तभंगी / २ ]]।<br /> | ||
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<li | <li id="I.2.8"> [[नय सामान्य#I.2.8 | प्रमाण सकलवस्तुग्राहक है और नय तदंशग्राहक।]]<br /> | ||
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<li | <li id="I.2.9"> [[नय सामान्य#I.2.9 | प्रमाण सब धर्मों को युगपत् ग्रहण करता है तथा नय क्रम से एक एक को।]]<br /> | ||
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<li | <li> सकल नयों का युगपत् ग्रहण ही सकलवस्तु ग्रहण है।‒ देखें - [[ अनेकान्त#2 | अनेकान्त / २ ]]।<br /> | ||
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<li | <li> प्रमाण सापेक्ष ही नय सम्यक् है।‒ देखें - [[ नय#II.10 | नय / II / १० ]]।<br /> | ||
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<li id="I.2.10"> [[नय सामान्य#I.2.10 |प्रमाण स्यात् पदयुक्त होने से सर्वनयात्मक होता है।]]<br /> | |||
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<li | <li> प्रमाण व नय सप्तभंगी‒ देखें - [[ सप्तभंगी#2 | सप्तभंगी / २ ]]।<br /> | ||
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<li | <li id="I.2.11"> [[नय सामान्य#I.2.11 |प्रमाण व नय के उदाहरण।]]<br /> | ||
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<li | <li id="I.2.12"> [[नय सामान्य#I.2.12 |नय के एकान्तग्राही होने में शंका।]]<br /> | ||
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<li | <li id="I.3"><strong>[[नय सामान्य#I.3 | नय की कथंचित् हेयोपादेयता]]</strong><br /> | ||
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<li | <li id="I.3.1">[[नय सामान्य#I.3.1 | तत्त्व नयपक्षों से अतीत है।]] <br /> | ||
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<li | <li id="I.3.2">[[नय सामान्य#I.3.2 | नयपक्ष कथंचित् हेय है।]] <br /> | ||
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<li | <li id="I.3.3">[[नय सामान्य#I.3.3 | नय केवल ज्ञेय है पर उपादेय नहीं।]] <br /> | ||
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<li | <li id="I.3.4">[[नय सामान्य#I.3.4 | नयपक्ष को हेय कहने का कारण प्रयोजन।]] <br /> | ||
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<li | <li id="I.3.5">[[नय सामान्य#I.3.5 | परमार्थत: निश्चय व व्यवहार दोनों का पक्ष विकल्परूप होने से हेय है।]] <br /> | ||
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<li | <li id="I.3.6">[[नय सामान्य#I.3.6 | प्रत्यक्षानुभूति के समय निश्चय व्यवहार के विकल्प नहीं रहते।]] <br /> | ||
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<li | <li id="I.3.7">[[नय सामान्य#I.3.7 | परन्तु तत्त्वनिर्णयार्थ नय कार्यकारी है।]] <br /> | ||
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<ul> | <ul> | ||
<li | <li> आगम का अर्थ करने में नय का स्थान।‒ देखें - [[ आगम#3.3 | आगम / ३ / ३ ]]।<br /> | ||
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<li | <li id="I.3.8">[[नय सामान्य#I.3.8 | सम्यक् नय ही कार्यकारी है मिथ्या नय नहीं।]] <br /> | ||
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<li | <li id="I.3.9">[[नय सामान्य#I.3.9 | निरपेक्ष नय भी कथंचित् कार्यकारी है।]] <br /> | ||
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<li | <li id="I.3.10">[[नय सामान्य#I.3.10 | नयपक्ष की हेयोपादेयता का समन्वय।]] <br /> | ||
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<li | <li id="I.4"><strong>[[नय सामान्य#I.4 | शब्द, अर्थ व ज्ञाननय निर्देश]]</strong><br /> | ||
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<li | <li id="I.4.1">[[नय सामान्य#I.4.1 | शब्द अर्थ ज्ञानरूप तीन प्रकार के पदार्थ हैं।]]<br /> | ||
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<li | <li id="I.4.2">[[नय सामान्य#I.4.2 | शब्दादि नयनिर्देश व लक्षण।]]<br /> | ||
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<li | <li id="I.4.3">[[नय सामान्य#I.4.3 | वास्तव में नय ज्ञानात्मक ही है शब्दादिक को नय कहना उपचार है।]]<br /> | ||
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<li> शब्द में प्रमाण व नयपना।‒ देखें - [[ आगम#4.6 | आगम / ४ / ६ ]]।<br /> | |||
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<li | <li id="I.4.4">[[नय सामान्य#I.4.4 | तीनों नयों में परस्पर सम्बन्ध।]]<br /> | ||
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<ul> | <ul> | ||
<li | <li> शब्द में अर्थ प्रतिपादन की योग्यता।‒ देखें - [[ आगम#4.1 | आगम / ४ / १ ]]।<br /> | ||
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<li | <li id="I.4.5">[[नय सामान्य#I.4.5 | शब्दनय का विषय।]]‒देखें - [[ नय | नय ]]III/१/९।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
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<ul> | <ul> | ||
<li | <li> शब्दनय की विशेषताएँ‒देखें - [[ नय | नय ]]III/६-८।<br /> | ||
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<li | <li id="I.4.6">[[नय सामान्य#I.4.6 | शब्दादि नयों के उदाहरण।]]<br /> | ||
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<ul> | <ul> | ||
<li | <li> नय प्रयोग शब्द में नहीं भाव में होता है‒ देखें - [[ स्याद्वाद#4 | स्याद्वाद / ४ ]]।<br /> | ||
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<ol start="7"> | <ol start="7"> | ||
<li | <li id="I.4.7">[[नय सामान्य#I.4.7| द्रव्यनय व भावनय निर्देश।]]<br /> | ||
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<li | <li id="I.5"><strong>[[नय सामान्य#I.5 | अन्य अनेकों नयों का निर्देश]]</strong><br /> | ||
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<li | <li id="I.5.1"> [[नय सामान्य#I.5.1 | भूत भावि आदि प्रज्ञापन नय निर्देश।]] <br /> | ||
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<li | <li id="I.5.2"> [[नय सामान्य#I.5.2 | अस्तित्वादि सप्तभंगी नयों का निर्देश।]] <br /> | ||
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<li | <li id="I.5.3"> [[नय सामान्य#I.5.3 | नामादि निक्षेपरूप नयों का निर्देश।]] <br /> | ||
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<li | <li id="I.5.4"> [[नय सामान्य#I.5.4 | सामान्य-विशेष आदि धर्मोंरूप ४७ नयों का निर्देश।]] <br /> | ||
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<li | <li id="I.5.5"> [[नय सामान्य#I.5.5 | अनन्त नय होने सम्भव हैं।]] <br /> | ||
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<ul> | <ul> | ||
<li | <li> उपचरित नय‒देखें - [[ उपचार | उपचार। ]]<br /> | ||
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<li | <li> उपनय‒ देखें - [[ नय#V.4.8 | नय / V / ४ / ८ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li> काल अकाल नय का समन्वय‒ देखें - [[ नियति#2 | नियति / २ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li> ज्ञान व क्रियानय का समन्वय‒ देखें - [[ चेतना#3.8 | चेतना / ३ / ८ ]]।<br /> | ||
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<li | <li><strong> सम्यक् व मिथ्यानय </strong> <br /> | ||
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<li | <li id="II.1">[[सम्यक् व मिथ्या नय#II.1 | नय सम्यक् भी होती है और मिथ्या भी।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="II.2">[[सम्यक् व मिथ्या नय#II.2 | सम्यक् व मिथ्या नयों के लक्षण।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="II.3"> [[सम्यक् व मिथ्या नय#II.3 |अन्य पक्ष का निषेध न करे तो कोई भी नय मिथ्या नहीं होती।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="II.4"> [[सम्यक् व मिथ्या नय#II.4 |अन्य पक्ष का निषेध करने से ही मिथ्या है।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="II.5"> [[सम्यक् व मिथ्या नय#II.5 |अन्य पक्ष का संग्रह करने पर वह नय सम्यक् है।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
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<ul> | <ul> | ||
<li | <li> सर्व एकान्त मत किसी न किसी नय में गर्भित हैं। और सर्व नय अनेकान्त के गर्भ में समाविष्ट है।‒ देखें - [[ अनेकान्त#2 | अनेकान्त / २ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="6"> | <ol start="6"> | ||
<li | <li id="II.6">[[सम्यक् व मिथ्या नय#II.6 | जो नय सर्वथा के कारण मिथ्या है वही कथंचित् के कारण सम्यक् है।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="II.7"> [[सम्यक् व मिथ्या नय#II.7 |सापेक्षनय सम्यक् और निरपेक्षनय मिथ्या है।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
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<ul> | <ul> | ||
<li | <li> नयों के विरोध में अविरोध।‒ देखें - [[ अनेकान्त#5 | अनेकान्त / ५ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li> नयों में परस्पर विधि निषेध।‒ देखें - [[ सप्तभंगी#5 | सप्तभंगी / ५ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li> सापेक्षता व मुख्यगौण व्यवस्था।‒ देखें - [[ स्याद्वाद#3 | स्याद्वाद / ३ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="8"> | <ol start="8"> | ||
<li | <li id="II.8">[[सम्यक् व मिथ्या नय#II.8 | मिथ्यानय निर्देश का कारण व प्रयोजन।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="II.9">[[सम्यक् व मिथ्या नय#II.9 | सम्यग्दृष्टि की नय सम्यक् तथा मिथ्यादृष्टि की मिथ्या है।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="II.10"> [[सम्यक् व मिथ्या नय#II.10 |प्रमाणज्ञान होने के पश्चात् ही नय प्रवृत्ति सम्यक् होती है, उसके बिना नहीं।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III"><strong>[[नैगम आदि का सामान्य निर्देश#III | नैगम आदि सात नय निर्देश]]</strong> <br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="III.1"><strong>[[नैगम आदि का सामान्य निर्देश#III.1 | सातों नयों का समुदित सामान्य निर्देश]]</strong><br /> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li>नय के सात भेदों का नाम निर्देश।‒ देखें - [[ नय#I.1.3 | नय / I / १ / ३ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="III.1.1">[[नैगम आदि का सामान्य निर्देश#III.1.1 | सातों में द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक विभाग।]] <br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.1.2"> [[नैगम आदि का सामान्य निर्देश#III.1.2 |इनमें द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक विभाग का कारण।]] <br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.1.3"> [[नैगम आदि का सामान्य निर्देश#III.1.3 |सातों में अर्थ, शब्द व ज्ञान नय विभाग।]] <br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.1.4"> [[नैगम आदि का सामान्य निर्देश#III.1.4 |इनमें अर्थ, शब्दनय विभाग का कारण।]] <br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.1.5"> [[नैगम आदि का सामान्य निर्देश#III.1.5 |नौ भेद कहना भी विरुद्ध नहीं है।]] <br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.1.6"> [[नैगम आदि का सामान्य निर्देश#III.1.6 |पूर्व पूर्व का नय अगले अगले नय का कारण है।]] <br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.1.7"> [[नैगम आदि का सामान्य निर्देश#III.1.7 |सातों में उत्तरोत्तर सूक्ष्मता।]] <br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.1.8"> [[नैगम आदि का सामान्य निर्देश#III.1.8 |सातों की उत्तरोत्तर सूक्ष्मता का उदाहरण।]] <br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.1.9"> [[नैगम आदि का सामान्य निर्देश#III.1.9 |शब्दादि तीन नयों में परस्पर अन्तर।]] <br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.2"><strong> [[नैगमनय के भेद#III.2 | नैगमनय के भेद व लक्षण]]</strong><br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li id="III.2.1"> [[नैगमनय के भेद#III.2.1 | नैगम सामान्य का लक्षण‒(१. संकल्पग्राही तथा द्वैतग्राही)]]<br /> | |||
</li> | |||
<li id="III.2.2"> [[नैगमनय के भेद#III.2.2 | संकल्पग्राही लक्षण विषयक उदाहरण।]]<br /> | |||
</li> | |||
<li id="III.2.3"> [[नैगमनय के भेद#III.2.3 | द्वैतग्राही लक्षण विषयक उदाहरण।]]<br /> | |||
</li> | |||
<li id="III.2.4"> [[नैगमनय के भेद#III.2.4 | नैगमनय के भेद।]]<br /> | |||
</li> | |||
<li id="III.2.5"> [[नैगमनय के भेद#III.2.5 | भूत भावी व वर्तमान नैगमनय के लक्षण।]]<br /> | |||
</li> | </li> | ||
<li id="III.2.6"> [[नैगमनय के भेद#III.2.6 | भूत भावी वर्तमान नैगमनय के उदाहरण।]]<br /> | |||
<li | |||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.2.7"> [[नैगमनय के भेद#III.2.7 | पर्याय द्रव्य व उभयरूप नैगमसामान्य का लक्षण।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.2.8"> [[नैगमनय के भेद#III.2.8 | द्रव्य पर्याय आदि नैगमनय के भेदों के लक्षण व उदाहरण‒ ]]<br /> | ||
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<li id="III.2.8.1"> [[नैगमनय के भेद#III.2.8.1 | अर्थ व्यंजन व तदुभय पर्यायनैगम।]] <br /> | |||
</li> | |||
<li id="III.2.8.2">[[नैगमनय के भेद#III.2.8.2 | शुद्ध व अशुद्ध द्रव्य नैगम।]] <br /> | |||
</li> | |||
<li id="III.2.8.3">[[नैगमनय के भेद#III.2.8.3 | शुद्ध व अशुद्ध द्रव्यपर्यायनैगम।]] <br /> | |||
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</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.2.9"> [[नैगमनय के भेद#III.2.9 | नैगमाभास सामान्य का लक्षण व उदाहरण।]] <br /> | ||
</li> | </li> | ||
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<ul> | <ul> | ||
<li | <li> न्याय वैशेषिक नैगमाभासी हैं।‒ देखें - [[ अनेकान्त#2.9 | अनेकान्त / २ / ९ ]]।]] <br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
</li> | </li> | ||
<li>< | <ol start="10"> | ||
</ | <li id="III.2.10">[[नैगमनय के भेद#III.2.10 | नैगमाभास विशेषों के लक्षण व उदाहरण।]] <br /> | ||
</li> | |||
</ol> | |||
<li id="III.3"><strong> [[नैगमनय निर्देश#III.3 | नैगमनय निर्देश]]</strong> <br /> | |||
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<li> नैगमनय अर्थनय व ज्ञाननय है।‒देखें - [[ नय | नय ]]III/१।<br /> | |||
</li> | |||
</ul> | |||
<ol> | |||
<li id="III.3.1"> [[नैगमनय निर्देश#III.3.1 | नैगमनय अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय है।]] <br /> | |||
</li> | |||
<li id="III.3.2"> [[नैगमनय निर्देश#III.3.2 |शुद्ध व अशुद्ध सभी नय नैगमनय के पेट में समा जाती है।]] <br /> | |||
</li> | |||
<li id="III.3.3"> [[नैगमनय निर्देश#III.3.3 | नैगम तथा संग्रह व व्यवहारनय में अन्तर।]] <br /> | |||
</li> | |||
<li id="III.3.4"> [[नैगमनय निर्देश#III.3.4 | नैगमनय व प्रमाण में अन्तर।]] <br /> | |||
</li> | |||
</ol> | |||
<ul> | |||
<li> इसमें यथा सम्भव निक्षेपों का अन्तर्भाव‒ देखें - [[ निक्षेप#3 | निक्षेप / ३ ]]। <br /> | |||
</li> | |||
</ul> | |||
<ol start="5"> | |||
<li id="III.3.5"> [[नैगमनय निर्देश#III.3.5 | भावी नैगमनय निश्चित अर्थ में लागू होता है।]] <br /> | |||
</li> | |||
<li id="III.3.6"> [[नैगमनय निर्देश#III.3.6 |कल्पनामात्र होते हुए भी भावी नैगमनय व्यर्थ नहीं है।]] <br /> | |||
</li> | |||
</ol> | |||
<li id="III.4"><strong>[[संग्रहनय निर्देश#III.4 | संग्रहनय निर्देश</strong>]]<br /> | |||
<ol start="1"> | <ol start="1"> | ||
<li | <li id="III.4.1">[[संग्रहनय निर्देश#III.4.1 | संग्रहनय का लक्षण।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.4.2">[[संग्रहनय निर्देश#III.4.2 | संग्रहनय के उदाहरण।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> संग्रहनय अर्थनय है।‒ देखें - [[ #III.1 | / III / १ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li> इसमें यथासम्भव निक्षेपों का अन्तर्भाव।‒ देखें - [[ निक्षेप#3 | निक्षेप / ३ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="3"> | <ol start="3"> | ||
<li | <li id="III.4.3">[[संग्रहनय निर्देश#III.4.3 | संग्रहनय के भेद।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.4.4"> [[संग्रहनय निर्देश#III.4.4 | पर, अपर तथा सामान्य विशेषरूप भेदों के लक्षण व उदाहरण।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> इस नय के विषय की अद्वैतता।‒ देखें - [[ नय#IV.2.3 | नय / IV / २ / ३ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li> दर्शनोपयोग व संग्रहनय में अन्तर।‒ देखें - [[ दर्शन#2.10 | दर्शन / २ / १० ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="5"> | <ol start="5"> | ||
<li | <li id="III.4.5">[[संग्रहनय निर्देश#III.4.5 | संग्रहाभास के लक्षण व उदाहरण।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> वेदान्ती व सांख्यमती संग्रहनयाभासी हैं।‒ देखें - [[ अनेकान्त#2.9 | अनेकान्त / २ / ९ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="6"> | <ol start="6"> | ||
<li | <li id="III.4.6"> [[संग्रहनय निर्देश#III.4.6 | संग्रहनय शुद्ध द्रव्यार्थिकनय है।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> व्यवहारनय निर्देश‒ देखें - [[ नय#V.4 | नय / V / ४ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<li | <li id="III.5"><strong>[[ऋजुसूत्रनय निर्देश#III.5 | ऋजुसूत्रनय निर्देश</strong>]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ol> | <ol start="6"> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="III.5.1"> [[ऋजुसूत्रनय निर्देश#III.5.1 | ऋजुसूत्र नय का लक्षण।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.5.2">[[ऋजुसूत्रनय निर्देश#III.5.2 | ऋजुसूत्रनय के भेद।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.5.3">[[ऋजुसूत्रनय निर्देश#III.5.3 | सूक्ष्म व स्थूल ऋजुसूत्र के लक्षण।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> इस नय के विषय की एकत्वता।‒ देखें - [[ नय#IV.3 | नय / IV / ३ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="4"> | <ol start="4"> | ||
<li | <li id="III.5.4">[[ऋजुसूत्रनय निर्देश#III.5.4 | ऋजुसूत्राभास का लक्षण।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> बौद्धमत ऋजुसूत्राभासी है।‒ देखें - [[ अनेकान्त#2.9 | अनेकान्त / २ / ९ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li> ऋजुसूत्रनय अर्थनय है।‒ देखें - [[ नय#III.1 | नय / III / १ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="5"> | <ol start="5"> | ||
<li | <li id="III.5.5">[[ऋजुसूत्रनय निर्देश#III.5.5 | ऋजुसूत्रनय शुद्धपर्यायार्थिक है।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.5.6">[[ऋजुसूत्रनय निर्देश#III.5.6 | इसे कथंचित् द्रव्यार्थिक कहने का विधि निषेध।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.5.7">[[ऋजुसूत्रनय निर्देश#III.5.7 | सूक्ष्म व स्थूल ऋजुसूत्र की अपेक्षा वर्तमानकाल का प्रमाण।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> व्यवहारनय व ऋजुसूत्र में अन्तर।‒ देखें - [[ नय#V.4.3 | नय / V / ४ / ३ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li> इसमें यथासम्भव निक्षपों का अन्तर्भाव।‒ देखें - [[ निक्षेप#3 | निक्षेप / ३ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<li | <li id="III.6"><strong> [[शब्दनय निर्देश#III.6 | शब्दनय निर्देश</strong>]]<br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="III.6.1"> [[शब्दनय निर्देश#III.6.1 | शब्दनय का सामान्य लक्षण।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> शब्दनय के विषय की एकत्वता।‒ देखें - [[ नय#IV.3 | नय / IV / ३ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li> शब्द प्रयोग की भेद व अभेदरूप दो अपेक्षाएँ।‒ देखें - [[ नय#III.1.9 | नय / III / १ / ९ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="2"> | <ol start="2"> | ||
<li | <li id="III.6.2">[[शब्दनय निर्देश#III.6.2 | अनेक शब्दों का एक वाच्य मानता है।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.6.3">[[शब्दनय निर्देश#III.6.3 | पर्यायवाची शब्दों के अर्थ में अभेद मानता है।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.6.4"> [[शब्दनय निर्देश#III.6.4 | पर्यायवाची शब्दों के प्रयोग में लिंगादि का व्यभिचार स्वीकार नहीं करता।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> ऋजुसूत्र व शब्दनय में अन्तर।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li> यह पर्यायार्थिक तथा व्यंजननय है।‒ देखें - [[ नय#III.1 | नय / III / १ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li> इसमें यथासम्भव निक्षेपों का अन्तर्भाव।‒ देखें - [[ निक्षेप#3 | निक्षेप / ३ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="5"> | <ol start="5"> | ||
<li | <li id="III.6.5">[[शब्दनय निर्देश#III.6.5 | शब्द नयाभास का लक्षण।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> वैयाकरणी शब्द नयाभासी है।‒ देखें - [[ अनेकान्त#2.9 | अनेकान्त / २ / ९ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="6"> | <ol start="6"> | ||
<li | <li id="III.6.6">[[शब्दनय निर्देश#III.6.6 | लिंगादि के व्यभिचार का तात्पर्य।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.6.7">[[शब्दनय निर्देश#III.6.7 | उक्त व्यभिचारों में दोष प्रदर्शन।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> शब्द में अर्थ प्रतिपादन की योग्यता।‒ देखें - [[ आगम#4.1 | आगम / ४ / १ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="8"> | <ol start="8"> | ||
<li | <li id="III.6.8">[[शब्दनय निर्देश#III.6.8 | सर्व प्रयोगों को दूषित बताने से व्याकरण शास्त्र के साथ विरोध आता है?।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.7"><strong> [[समभिरूढनय निर्देश#III.7 | समभिरूढनय निर्देश</strong>]]<br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="III.7.1">[[समभिरूढनय निर्देश#III.7.1 | समभिरूढनय के लक्षण]]‒ | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="III.7.1.1">[[समभिरूढनय निर्देश#III.7.1.1 | अर्थ भेद से शब्द भेद (रूढशब्द का प्रयोग) ]] </li> | ||
<li | <li id="III.7.1.2">[[समभिरूढनय निर्देश#III.7.1.2 | शब्दभेद से अर्थभेद। ]] </li> | ||
<li | <li id="III.7.1.3"> [[समभिरूढनय निर्देश#III.7.1.3 | वस्तु का निजस्वरूप में रूढ करना। ]] </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> इस नय के विषय की एकत्वता।‒ देखें - [[ नय#IV.3 | नय / IV / ३ ]]। </li> | ||
<li | <li> शब्दप्रयोग की भेद-अभेद रूप दो अपेक्षाएँ।‒ देखें - [[ #III.1.9 | / III / १ / ९ ]]। २</li> | ||
</ul> | </ul> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="III.7.2">[[समभिरूढनय निर्देश#III.7.2 | यद्यपि रूढ़िगत अनेक शब्द एकार्थवाची हो जाते हैं।]]</li> | ||
<li | <li id="III.7.3">[[समभिरूढनय निर्देश#III.7.3 | परन्तु यहाँ पर्यायवाची शब्द नहीं होते।]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> शब्द वस्तु का धर्म नहीं है, तब उसके भेद से अर्थभेद कैसे हो सकता है? ‒ देखें - [[ आगम#4.4 | आगम / ४ / ४ ]]। </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="4"> | <ol start="4"> | ||
<li | <li id="III.7.4">[[समभिरूढनय निर्देश#III.7.4 | शब्द व समभिरूढ़नय में अन्तर।]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> यह पर्यायार्थिक शब्दनय है।‒ देखें - [[ नय#III.1 | नय / III / १ ]]। </li> | ||
<li | <li> इसमें यथासम्भव निक्षेपों का अन्तर्भाव।‒ देखें - [[ निक्षेप#3 | निक्षेप / ३ ]]। </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="5"> | <ol start="5"> | ||
<li | <li id="III.7.5">[[समभिरूढनय निर्देश#III.7.5 | समभिरूढ़ नयाभास का लक्षण। ]] </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> वैयाकरणी समभिरूढ़ नयाभासी हैं।‒ देखें - [[ अनेकान्त#2.9 | अनेकान्त / २ / ९ ]]। </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<li | <li id="III.8"><strong>[[एवंभूतनय निर्देश #III.8 | एवंभूत नय निर्देश</strong> | ||
</li> | ]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ol> | <ol> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="III.8.1">[[एवंभूतनय निर्देश #III.8.1 | तत्क्रिया परिणत द्रव्य ही शब्द का वाच्य है। ]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> सभी शब्द क्रियावाची हैं।‒देखें - [[ नाम | नाम। ]]</li> | ||
<li | <li> शब्द प्रयोग की भेद-अभेद रूप दो अपेक्षाएँ।‒ देखें - [[ नय#III.1.9 | नय / III / १ / ९ ]]। २.</li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="2"> | <ol start="2"> | ||
<li | <li id="III.8.2">[[एवंभूतनय निर्देश #III.8.2 | तज्ज्ञान परिणत आत्मा उस शब्द का वाच्य है। ]]</li> | ||
<li | <li id="III.8.3">[[एवंभूतनय निर्देश #III.8.3 | अर्थभेद से शब्दभेद और शब्दभेद से अर्थभेद। ]]</li> | ||
<li | <li id="III.8.4">[[एवंभूतनय निर्देश #III.8.4 | इस नय की दृष्टि में वाक्य सम्भव नहीं। ]]</li> | ||
<li | <li id="III.8.5">[[एवंभूतनय निर्देश #III.8.5 | इस नय में पदसमास सम्भव नहीं। ]]</li> | ||
<li | <li id="III.8.6">[[एवंभूतनय निर्देश #III.8.6 | इस नय में वर्णसमास तक भी सम्भव नहीं। ]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> वाच्यवाचक भाव का समन्वय।‒ देखें - [[ आगम#4.4 | आगम / ४ / ४ ]]। </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="7 | <ol start="7 | ||
"> | "> | ||
<li | <li id="III.8.7">[[एवंभूतनय निर्देश #III.8.7 | समभिरूढ़ व एवंभूत में अन्तर। ]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> यह पर्यायार्थिक शब्दनय है।‒ देखें - [[ नय#III.1 | नय / III / १ ]]। </li> | ||
<li | <li> इसमें यथासम्भव निक्षेपों का अन्तर्भाव।‒ देखें - [[ निक्षेप#3 | निक्षेप / ३ ]]। </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="8"> | <ol start="8"> | ||
<li | <li id="III.8.9">[[एवंभूतनय निर्देश #III.8.9 | एवंभूत नयाभास का लक्षण। ]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> वैयाकरणी एवंभूत नयाभासी हैं।‒ देखें - [[ अनेकान्त#2.9 | अनेकान्त / २ / ९ ]]। </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li><strong> द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक नय</strong> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="IV.1"><strong> [[द्रव्यार्थिक नय निर्देश#IV.1 | द्रव्यार्थिक नय सामान्य निर्देश ]]</strong> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="IV.1.1"> [[द्रव्यार्थिक नय निर्देश#IV.1.1 | द्रव्यार्थिकनय का लक्षण। ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.1.2"> [[द्रव्यार्थिक नय निर्देश#IV.1.2 | यह वस्तु के सामान्यांश को अद्वैतरूप विषय करता है।]]</li> | ||
<li | <li id="IV.1.3">[[द्रव्यार्थिक नय निर्देश#IV.1.3 | 3-6 द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की अपेक्षा विषय की अद्वैतता। ]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ol start="7"> | <ol start="7"> | ||
<li | <li id="IV.1.7"> [[द्रव्यार्थिक नय निर्देश#IV.1.7 | इसी से यह नय एक अवक्तव्य व निर्विकल्प है।]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> द्रव्यार्थिक व प्रमाण में अन्तर।‒ देखें - [[ नय#III.3.4 | नय / III / ३ / ४ ]]। </li> | ||
<li | <li> द्रव्यार्थिक के तीन भेद नैगमादि।‒ देखें - [[ नय#II | नय / II ]]I।</li> | ||
<li | <li> द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक में अन्तर।‒ देखें - [[ नय#V.4.3 | नय / V / ४ / ३ ]]। </li> | ||
<li | <li> इसमें यथासम्भव निक्षेपों का अन्तर्भाव।‒ देखें - [[ निक्षेप#2 | निक्षेप / २ ]]।</li> | ||
</ul> | </ul> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="IV.2"><strong> [[द्रव्यार्थिक नय निर्देश#IV.2 | शुद्ध व अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय निर्देश</strong> | ||
]] | |||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="IV.2.1">[[द्रव्यार्थिक नय निर्देश#IV.2.1 | द्रव्यार्थिकनय के दो भेद‒शुद्ध व अशुद्ध।]]</li> | ||
<li | <li id="IV.2.2">[[द्रव्यार्थिक नय निर्देश#IV.2.2 | शुद्ध द्रव्यार्थिकनय का लक्षण। ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.2.3">[[द्रव्यार्थिक नय निर्देश#IV.2.3 | द्रव्य क्षेत्रादि की अपेक्षा इस नय के विषय की अद्वैतता।]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> शुद्ध द्रव्यार्थिकनय की प्रधानता।‒ देखें - [[ नय#V.3.4 | नय / V / ३ / ४ ]]। </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="4"> | <ol start="4"> | ||
<li | <li id="IV.2.4">[[द्रव्यार्थिक नय निर्देश#IV.2.4 | अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय का लक्षण।]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> अशुद्ध द्रव्यार्थिक व्यवहारनय है।‒ देखें - [[ नय#V.4 | नय / V / ४ ]]। </li> | ||
<li | <li> अशुद्ध व शुद्ध द्रव्यार्थिक में हेयोपादेयता।‒ देखें - [[ नय#V.8 | नय / V / ८ ]]। </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="5"> | <ol start="5"> | ||
<li | <li id="IV.2.5">[[द्रव्यार्थिक नय निर्देश#IV.2.5 | द्रव्यार्थिक के दश भेदों का निर्देश। ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.2.6">[[द्रव्यार्थिक नय निर्देश#IV.2.6 | द्रव्यार्थिकनय दशक के लक्षण। | ||
]] | |||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="IV.2.6.1">[[द्रव्यार्थिक नय निर्देश#IV.2.6.1 | कर्मोपाधि निरपेक्ष, ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.2.6.2">[[द्रव्यार्थिक नय निर्देश#IV.2.6.2 | सत्ता ग्राहक, ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.2.6.3">[[द्रव्यार्थिक नय निर्देश#IV.2.6.3 | भेद निरपेक्ष। ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.2.6.4">[[द्रव्यार्थिक नय निर्देश#IV.2.6.4 | कर्मोपाधि सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक, ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.2.6.5"> [[द्रव्यार्थिक नय निर्देश#IV.2.6.5 | उत्पादव्यय सापेक्ष, ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.2.6.6"> [[द्रव्यार्थिक नय निर्देश#IV.2.6.6 | भेद कल्पना सापेक्ष, ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.2.6.7"> [[द्रव्यार्थिक नय निर्देश#IV.2.6.7 | अन्वय द्रव्यार्थिक,]]</li> | ||
<li | <li id="IV.2.6.8">[[द्रव्यार्थिक नय निर्देश#IV.2.6.8 | 8-9 स्व व पर चतुष्टय ग्राहक, ]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ol start="10"> | <ol start="10"> | ||
<li | <li id="IV.2.6.10">[[द्रव्यार्थिक नय निर्देश#IV.2.6.10 | परमभावग्राही शुद्ध द्रव्यार्थिक।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 607: | Line 607: | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="IV.3"><strong>[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3 | पर्यायार्थिकनय सामान्य निर्देश</strong>]]<br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="IV.3.1"> [[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.1 | पर्यायार्थिकनय का लक्षण।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="IV.3.2">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.2 | यह वस्तु के विशेषांश को एकत्वरूप से ग्रहण करता है।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="IV.3.3">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.3 | द्रव्य की अपेक्षा विषय की एकत्वता]]‒<br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="IV.3.3.1">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.3.1 | पर्याय से पृथक् द्रव्य कुछ नहीं।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="IV.3.3.2"> [[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.3.2 | गुण गुणी में सामान्याधिकरण्य नहीं है।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="IV.3.3.3">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.3.3 | काक कृष्ण नहीं हो सकता।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="IV.3.3.4">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.3.4 | सभी पदार्थ एक संख्यात से युक्त हैं।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="IV.3.4">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.4 | क्षेत्र की अपेक्षा विषय की एकत्वता]]‒<br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="IV.3.4.1">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.4.1 | प्रत्येक पदार्थ का अवस्थान अपने में ही है।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="IV.3.4.2"> [[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.4.2 | वस्तु अखण्ड व निरवयव होती है।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="IV.3.4.3"> [[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.4.3 | पलालदाह सम्भव नहीं।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="IV.3.4.4"> [[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.4.4 | कुम्भकार संज्ञा नहीं हो सकती।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="IV.3.5">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.5 | काल की अपेक्षा विषय की एकत्वता]]‒<br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="IV.3.5.1">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.5.1 | केवल वर्तमान क्षणमात्र ही वस्तु है।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> वर्तमान काल का स्पष्टीकरण।‒ देखें - [[ नय#III.5.7 | नय / III / ५ / ७ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="2"> | <ol start="2"> | ||
<li | <li id="IV.3.5.2">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.5.2 | क्षण स्थायी अर्थ ही उत्पन्न होकर नष्ट हो जाता है।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li> | <li> [[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.6| काल की अपेक्षा एकत्व विषयक उदाहरण]]<br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="IV.3.6.1"> [[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.6.1 | कषायो भैषज्यम्; ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.3.6.2">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.6.2 | धान्य मापते समय ही प्रस्थ संज्ञा; ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.3.6.3">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.6.3 | कहीं से भी नहीं आ रहा हूँ।]]</li> | ||
<li | <li id="IV.3.6.4">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.6.4 | श्वेत कृष्ण नहीं किया जा सकता। ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.3.6.5"> [[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.6.5 | क्रोध का उदय ही क्रोध कषाय है। ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.3.6.6">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.6.6 | पलाल दाह सम्भव नहीं; ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.3.6.7">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.6.7 | पच्यमान पक्व।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="IV.3.7">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.7 | भाव की अपेक्षा विषय की एकत्वता।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="IV.3.8">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.8 | किसी भी प्रकार का सम्बन्ध सम्भव नहीं।]]<br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="IV.3.8.1">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.8.1 | विशेष्य-विशेषण सम्बन्ध; ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.3.8.2">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.8.2 | संयोग व समवाय;]]</li> | ||
<li | <li id="IV.3.8.3">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.8.3 | कोई किसी के समान नहीं; ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.3.8.4">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.8.4 | ग्राह्यग्राहक सम्बन्ध; ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.3.8.5">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.8.5 | वाच्य वाचक सम्बन्ध सम्भव नहीं;]] </li> | ||
<li | <li id="IV.3.8.6">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.8.6 | बन्ध्यबन्धक आदि अन्य कोई भी सम्बन्ध नहीं।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="IV.3.9">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.9 | कारण कार्य भाव सम्भव नहीं‒]]<br /> | ||
<ol start="1"> | <ol start="1"> | ||
<li | <li id="IV.3.9.1">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.9.1 | कारण के बिना ही कार्य की उत्पत्ति होती है।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="IV.3.9.2">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.9.2 | 2-3 विनाश व उत्पाद निर्हेतुक है।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="IV.3.10">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.3.10 | यह नय सकल व्यवहार का उच्छेद करता है।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> पर्यायार्थिक का कथंचित् द्रव्यार्थिकपना।‒ देखें - [[ नय#III.5 | नय / III / ५ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li> पर्यायार्थिक के चार भेद ऋजुसूत्रादि।‒ देखें - [[ नय#II | नय / II ]]I।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li> इसमें यथासम्भव निक्षेपों का अन्तर्भाव।‒ देखें - [[ निक्षेप#2 | निक्षेप / २ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="IV.4"><strong> [[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.4 | शुद्ध व अशुद्ध पर्यायार्थिक निर्देश</strong>]]<br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="IV.4.1"> [[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.4.1 | शुद्ध व अशुद्ध पर्यायार्थिक के लक्षण।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="IV.4.2">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.4.2 | 2-3 पर्यायार्थिकनय के छह भेदों का निर्देश व लक्षण]]<br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="IV.4.2.1">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.4.2.1 | अनादिनित्य, ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.4.2.2">[[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.4.2.2 | सादिनित्य, ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.4.2.3"> [[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.4.2.3 | सत्तागौण अनित्य, ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.4.2.4"> [[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.4.2.4 | सत्ता सापेक्ष नित्य, ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.4.2.5"> [[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.4.2.5 | कर्मोपाधि निरपेक्ष अनित्य, ]]</li> | ||
<li | <li id="IV.4.2.6"> [[पर्यायार्थिक नय निर्देश#IV.4.2.6 | कर्मोपाधिसापेक्ष।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 722: | Line 722: | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> अशुद्ध पर्यायार्थिकनय व्यवहारनय है।‒ देखें - [[ नय#V.4 | नय / V / ४ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
Line 728: | Line 728: | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li><strong> निश्चय व्यवहारनय</strong><br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="V.1"><strong> [[निश्चयनय निर्देश#V.1 | निश्चयनय निर्देश</strong>]]<br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="V.1.1">[[निश्चयनय निर्देश#V.1.1 | निश्चयनय का लक्षण निश्चित व सत्यार्थ ग्रहण।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
<li>< | <li id="V.1.2">[[निश्चयनय निर्देश#V.1.2 | निश्चयनय का लक्षण अभेद व अनुपचार ग्रहण।]] </li> | ||
<li id="V.1.3">[[निश्चयनय निर्देश#V.1.3 | निश्चयनय का लक्षण स्वाश्रय कथन]] </li> | |||
<li id="V.1.4">[[निश्चयनय निर्देश#V.1.4 | निश्चयनय के भेद‒शुद्ध व अशुद्ध]] </li> | |||
<li id="V.1.5">[[निश्चयनय निर्देश#V.1.5 | शुद्ध निश्चय के लक्षण व उदाहरण‒]]<br /> | |||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="V.1.5.1">[[निश्चयनय निर्देश#V.1.5.1 | परमभावग्राही की अपेक्षा।]] </li> | ||
<li id="V.1.5.2">[[निश्चयनय निर्देश#V.1.5.2 | क्षायिकभावग्राह की अपेक्षा।]] </li> | |||
<li | |||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="V.1.6">[[निश्चयनय निर्देश#V.1.6 | एकदेश शुद्ध निश्चयनय का लक्षण।]] </li> | ||
<li id="V.1.7">[[निश्चयनय निर्देश#V.1.7 | शुद्ध, एकदेश शुद्ध व निश्चयसामान्य में अन्तर व इनकी प्रयोग विधि।]]<br /> | |||
<li | |||
</li> | </li> | ||
<li id="V.1.8">[[निश्चयनय निर्देश#V.1.8 | अशुद्ध निश्चयनय का लक्षण व उदाहरण।]]</li> | |||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="V.2"><strong>[[निश्चयनय निर्देश#V.2 | निश्चयनय की निर्विकल्पता</strong>]]<br /> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="V.2.1"> [[निश्चयनय निर्देश#V.2.1 |शुद्ध व अशुद्ध निश्चयनय द्रव्यार्थिक के भेद हैं।]] </li> | ||
<li id="V.2.2"> [[निश्चयनय निर्देश#V.2.2 |निश्चयनय एक निर्विकल्प व वचनातीत है।]] </li> | |||
<li | <li id="V.2.3"> [[निश्चयनय निर्देश#V.2.3 |निश्चयनय के भेद नहीं हो सकते।]] </li> | ||
</li> | <li id="V.2.4"> [[निश्चयनय निर्देश#V.2.4 |शुद्धनिश्चय ही वास्तव में निश्चयनय है; अशुद्ध निश्चयनय तो व्यवहार है।]]<br /> | ||
<li | |||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="V.2.5">[[निश्चयनय निर्देश#V.2.5 | उदाहरण सहित तथा सविकल्प सभी नये व्यवहार हैं।]]<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> व्यवहार का निषेध ही निश्चय का वाच्य है।‒ देखें - [[ नय#V.9.2 | नय / V / ९ / २ ]]।<br /> | ||
</li> | </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="6"> | <ol start="6"> | ||
<li | <li id="V.2.6">[[निश्चयनय निर्देश#V.2.6 | निविकल्प होने से निश्चयनय में नयपना कैसे सम्भव है ?]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="V.3"><strong> [[निश्चयनय निर्देश#V.3 |निश्चयनय की प्रधानता]]</strong> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="V.3.1">[[निश्चयनय निर्देश#V.3.1 |निश्चयनय ही सत्यार्थ है।]]</li> | ||
<li | <li id="V.3.2"> [[निश्चयनय निर्देश#V.3.2 |निश्चयनय साधकतम व नयाधिपति है। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.3.3"> [[निश्चयनय निर्देश#V.3.3 |निश्चयनय ही सम्यक्त्व का कारण है। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.3.4">[[निश्चयनय निर्देश#V.3.4 | निश्चयनय ही उपादेय है। ]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="V.4"><strong> [[व्यवहारनय निर्देश#V.4 | व्यवहारनय सामान्य निर्देश]]</strong> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="V.4.1">[[व्यवहारनय निर्देश#V.4.1 | व्यवहारनय सामान्य के लक्षण‒ ]] | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="V.4.1.1"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.4.1.1 |संग्रह गृहीत अर्थ में विधिपूर्वक भेद।]] </li> | ||
<li | <li id="V.4.1.2">[[व्यवहारनय निर्देश#V.4.1.2 | अभेद वस्तु में गुणगुणी आदिरूप भेद।]] </li> | ||
<li | <li id="V.4.1.3">[[व्यवहारनय निर्देश#V.4.1.3 | भिन्न पदार्थों में कारकादिरूप अभेदोपचार।]] </li> | ||
<li | <li id="V.4.1.4">[[व्यवहारनय निर्देश#V.4.1.4 | लोकव्यवहारगत वस्तु विषयक‒ ]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="V.4.2">[[व्यवहारनय निर्देश#V.4.2 | व्यवहारनय सामान्य के उदाहरण‒ | ||
]] | |||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="V.4.2.1">[[व्यवहारनय निर्देश#V.4.2.1 | संग्रहगृहीत अर्थ में भेद करने सम्बन्धी। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.4.2.2">[[व्यवहारनय निर्देश#V.4.2.2 | अभेद वस्तु में भेदोपचार सम्बन्धी। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.4.2.3">[[व्यवहारनय निर्देश#V.4.2.3 | भिन्न वस्तुओं में अभेदोपचार सम्बन्धी। ]] </li> | ||
<li | <li id="V.4.2.4"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.4.2.4 |लोकव्यवहारगत वस्तु सम्बन्धी।]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="V.4.3">[[व्यवहारनय निर्देश#V.4.3 | व्यवहारनय की भेद प्रवृत्ति की सीमा। ]] </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> व्यवहारनय सामान्य के कारण प्रयोजन।‒ देखें - [[ नय#V.7 | नय / V / ७ ]]।</li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start=" | <ol start="4"> | ||
<li | <li id="V.4.4">[[व्यवहारनय निर्देश#V.4.4 |व्यवहारनय के भेद व लक्षणादि‒ ]] | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="V.4.4.1"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.4.4.1 |पृथक्त्व व एकत्व व्यवहार। ]] </li> | ||
<li | <li id="V.4.4.2">[[व्यवहारनय निर्देश#V.4.4.2 | सद्भूत व असद्भूत व्यवहार। ]] </li> | ||
<li id="V.4.4.3">[[व्यवहारनय निर्देश#V.4.4.3 | सामान्य व विशेष संग्रहभेदक व्यवहार।]] </li> | |||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li id="V.4.5">[[व्यवहारनय निर्देश#V.4.5 | व्यवहार नयाभास का लक्षण। ]]</li> | |||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li>< | <ul> | ||
<li> चार्वाक मत व्यवहारनयाभासी है।‒ देखें - [[ अनेकान्त#2.9 | अनेकान्त / २ / ९ ]]।</li> | |||
<li> यह द्रव्यार्थिक व अर्थनय है।‒ देखें - [[ नय#III.1 | नय / III / १ ]]। </li> | |||
</ul> | |||
<ol start="6"> | |||
<li id="V.4.6">[[व्यवहारनय निर्देश#V.4.6 | व्यवहारनय अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय है।]]</li> | |||
<li>[[व्यवहारनय निर्देश#V.4.7| पर्यायार्थिकनय भी कथंचित् व्यवहार है। ]]</li> | |||
</ol> | |||
<ul> | |||
<li> इसमें यथासम्भव निक्षेपों का अन्तर्भाव।‒ देखें - [[ निक्षेप#2 | निक्षेप / २ ]]।</li> | |||
</ul> | |||
<ol start="8"> | |||
<li id="V.4.8">[[व्यवहारनय निर्देश#V.4.8 |उपनय निर्देश‒]] | |||
<ol> | |||
<li id="V.4.8.1">[[व्यवहारनय निर्देश#V.4.8.1 | उपनय का लक्षण व इसके भेद। ]] </li> | |||
<li id="V.4.8.2">[[व्यवहारनय निर्देश#V.4.8.2 | उपनय भी व्यवहारनय है। ]]</li> | |||
</ol> | |||
</li> | |||
</ol> | |||
<li id="V.5"><strong> [[व्यवहारनय निर्देश#V.5 |सद्भूत असद्भूत व्यवहार निर्देश</strong> | |||
]] | |||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="V.5.1"><strong>[[व्यवहारनय निर्देश#V.5.1 | सद्भूत व्यवहारनय सामान्य निर्देश‒</strong> ]] | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="V.5.1.1">[[व्यवहारनय निर्देश#V.5.1.1 | लक्षण व उदाहरण ]] </li> | ||
<li | <li id="V.5.1.2">[[व्यवहारनय निर्देश#V.5.1.2 | कारण व प्रयोजन ]] </li> | ||
<li | <li id="V.5.1.3">[[व्यवहारनय निर्देश#V.5.1.3 | व्यवहार सामान्य व सद्भूत व्यवहार में अन्तर। ]] </li> | ||
<li | <li id="V.5.1.4">[[व्यवहारनय निर्देश#V.5.1.4 | सद्भूत व्यवहारनय के भेद। ]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="V.4."><strong>[[व्यवहारनय निर्देश#V.4. | अनुपचरित या अशुद्ध सद्भूत व्यवहार निर्देश‒</strong> ]] | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="V.5.2.1">[[व्यवहारनय निर्देश#V.5.2.1 | क्षायिक शुद्ध की अपेक्षा लक्षण व उदाहरण।]] </li> | ||
<li | <li id="V.5.2.2">[[व्यवहारनय निर्देश#V.5.2.2 |पारिणामिक शुद्ध की अपेक्षा लक्षण व उदाहरण।]] </li> | ||
<li | <li id="V.5.2.3"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.5.2.3 |अनुपचरित व शुद्धसद्भूत की एकार्थता। ]] </li> | ||
<li | <li id="V.5.2.4"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.5.2.4 |इस नय के कारण व प्रयोजन।]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="V.5.3"><strong>[[व्यवहारनय निर्देश#V.5.3 | उपचरित या अशुद्ध सद्भूत निर्देश‒</strong> ]] | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="V.5.3.1">[[व्यवहारनय निर्देश#V.5.3.1 | क्षायोपशमिकभाव की अपेक्षा लक्षण व उदाहरण। ]] </li> | ||
<li | <li id="V.5.3.2"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.5.3.2 |पारिणामिकभाव में उपचार की अपेक्षा लक्षण व उदाहरण।]] </li> | ||
<li | <li id="V.5.3.3">[[व्यवहारनय निर्देश#V.5.3.3 | उपचरित व अशुद्ध सद्भूत की एकार्थता। ]] </li> | ||
<li | <li id="V.5.3.4">[[व्यवहारनय निर्देश#V.5.3.4 | इस नय के कारण व प्रयोजन। ]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="V.5.4"><strong>[[व्यवहारनय निर्देश#V.5.4 | असद्भूत व्यवहार सामान्य निर्देश‒</strong> ]] | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="V.5.4.1"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.5.4.1 |लक्षण व उदाहरण।]] </li> | ||
<li | <li id="V.5.4.2"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.5.4.2 |इस नय के कारण व प्रयोजन।]] </li> | ||
<li | <li id="V.5.4.3"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.5.4.3 |असद्भूत व्यवहारनय के भेद। ]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="V.5.5"><strong>[[व्यवहारनय निर्देश#V.5.5 | अनुपचरित असद्भूत व्यवहार निर्देश‒</strong>]] | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="V.5.5.1"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.5.5.1 | भिन्न द्रव्य में अभेद की अपेक्षा लक्षण व उदाहरण। ]] </li> | ||
<li | <li id="V.5.5.2"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.5.5.2 | विभाव भाव की अपेक्षा लक्षण व उदाहरण। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.5.5.3"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.5.5.3 | इस नय का कारण व प्रयोजन। ]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="V.5.6"><strong> [[व्यवहारनय निर्देश#V.5.6 |उपचरित असद्भूत व्यवहारनय निर्देश‒</strong> ]] | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="V.5.6.1"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.5.6.1 |भिन्न द्रव्यों में अभेद की अपेक्षा लक्षण व उदाहरण। ]] </li> | ||
<li | <li id="V.5.6.2"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.5.6.2 |विभाव भावों की अपेक्षा लक्षण व उदाहरण। ]] </li> | ||
<li | <li id="V.5.6.3"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.5.6.3 |इस नय के कारण व प्रयोजन। ]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> उपचार नय सम्बन्धी।‒देखें - [[ उपचार | उपचार। ]]</li> | ||
</ul> | </ul> | ||
</li> | </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="V.6"><strong>[[व्यवहारनय निर्देश#V.6 | व्यवहारनय की कथंचित् गौणता</strong> | ||
]] | |||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="V.6.1"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.6.1 |व्यवहारनय असत्यार्थ है, तथा उसका हेतु।]]</li> | ||
<li | <li id="V.6.2"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.6.2 |व्यवहारनय उपचारमात्र है। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.6.3"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.6.3 |व्यवहारनय व्यभिचारी है। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.6.4"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.6.4 |व्यवहारनय लौकिक रूढि है। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.6.5"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.6.5 |व्यवहारनय अध्यवसान है।]]</li> | ||
<li | <li id="V.6.6"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.6.6 |व्यवहारनय कथनमात्र है। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.6.7"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.6.7 |व्यवहारनय साधकतम नहीं है।]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> व्यवहारनय निश्चय द्वारा निषिद्ध है।‒ देखें - [[ नय#V.9.2 | नय / V / ९ / २ ]]। </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="8"> | <ol start="8"> | ||
<li | <li id="V.6.8"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.6.8 |व्यवहारनय सिद्धान्तविरुद्ध तथा नयाभास है।]]</li> | ||
<li | <li id="V.6.9"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.6.9 |व्यवहारनय का विषय सदा गौण होता है। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.6.10"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.6.10 |शुद्ध दृष्टि में व्यवहार को स्थान नहीं।]]</li> | ||
<li | <li id="V.6.11"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.6.11 |व्यवहारनय का विषय निष्फल है। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.6.12"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.6.12 |व्यवहारनय का आश्रय मिथ्यात्व है।]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li> तत्त्व निर्णय करने में लोकव्यवहार को विच्छेद होने का भय नहीं किया जाता।‒ देखें - [[ निक्षेप#3.3 | निक्षेप / ३ / ३ ]]तथा ‒ देखें - [[ नय#III.6.10 | नय / III / ६ / १० ]];IV/३/१०। </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="13"> | <ol start="13"> | ||
<li | <li id="V.6.13"> <strong>[[व्यवहारनय निर्देश#V.6.13 |</strong>व्यवहारनय हेय है।]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li | <li id="V.7"><strong> [[व्यवहारनय निर्देश#V.7 |व्यवहारनय की कथंचित् प्रधानता</strong> | ||
]] | |||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li id="V.7.1"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.7.1 |व्यवहारनय सर्वथा निषिद्ध नहीं है (व्यवहार दृष्टि से यह सत्यार्थ है)। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.7.2"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.7.2 |निचली भूमिका में व्यवहार प्रयोजनीय है। ]]</li> | ||
<li | <li>[[व्यवहारनय निर्देश#V.7.3| मन्दबुद्धियों के लिए व्यवहार उपकारी है। ]]</li> | ||
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<li | <li> व्यवहारनय निश्चयनय का साधक है।‒ देखें - [[ नय#V.9.2 | नय / V / ९ / २ ]]। </li> | ||
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<li | <li id="V.7.4"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.7.4 |व्यवहारपूर्वक ही निश्चय तत्त्व का ज्ञान होना सम्भव है। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.7.5"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.7.5 |व्यवहार के बिना निश्चय का प्रतिपादन शक्य नहीं। ]]</li> | ||
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<li | <li> तीर्थप्रवृत्ति की रक्षार्थ व्यवहारनय प्रयोजनीय है।‒ देखें - [[ नय#V.8.4 | नय / V / ८ / ४ ]]। </li> | ||
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<li | <li id="V.7.6"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.7.6 |वस्तु में आस्तिक्य बुद्धि के अर्थ प्रयोजनीय है। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.7.7"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.7.7 |वस्तु की निश्चित प्रतिपत्ति के अर्थ यही प्रधान है। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.7.8"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.7.8 |व्यवहारशून्य निश्चयनय कल्पनामात्र है। ]]</li> | ||
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<li | <li id="V.8"><strong>[[व्यवहारनय निर्देश#V.8 | व्यवहार व निश्चय की हेयोपादेयता का समन्वय</strong> | ||
]] | |||
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<li | <li id="V.8.1"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.8.1 |निश्चयनय की उपादेयता का कारण व प्रयोजन। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.8.2"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.8.2 |व्यवहारनय के निषेध का कारण। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.8.3"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.8.3 |व्यवहारनय के निषेध का प्रयोजन। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.8.4"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.8.4 |व्यवहारनय की उपादेयता का कारण व प्रयोजन। ]]</li> | ||
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<li | <li> परमार्थ से निश्चय व व्यवहार दोनों हेय हैं।‒ देखें - [[ नय#I.3 | नय / I / ३ ]]। </li> | ||
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<li | <li id="V.9"><strong> [[व्यवहारनय निर्देश#V.9 |निश्चय व्यवहार के विषयों का समन्वय</strong> | ||
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<li | <li id="V.9.1"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.9.1 |दोनों नयों में विषयविरोध निर्देश। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.9.2"> [[व्यवहारनय निर्देश#V.9.2 |दोनों नयों में स्वरूपविरोध निर्देश।]]</li> | ||
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<li | <li> निश्चय व्यवहार निषेध्यनिषेधक भाव का समन्वय।‒ देखें - [[ नय#V.9.2 | नय / V / ९ / २ ]]। </li> | ||
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<ol start="3"> | <ol start="3"> | ||
<li | <li id="V.9.3">[[व्यवहारनय निर्देश#V.9.3 | दोनों में मुख्य गौण व्यवस्था का प्रयोजन ]]</li> | ||
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<li | <li> नयों में परस्पर मुख्य गौण व्यवस्था।‒ देखें - [[ स्याद्वाद#3 | स्याद्वाद / ३ ]]। </li> | ||
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<li | <li id="V.9.4">[[व्यवहारनय निर्देश#V.9.4 | दोनों में साध्य साधनभाव का प्रयोजन दोनों की परस्पर सापेक्षता। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.9.5">[[व्यवहारनय निर्देश#V.9.5 | दोनों की सापेक्षता का कारण व प्रयोजन। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.9.6">[[व्यवहारनय निर्देश#V.9.6 | दोनों की सापेक्षता के उदाहरण। ]]</li> | ||
<li | <li id="V.9.7">[[व्यवहारनय निर्देश#V.9.7 | इसलिए दोनों ही नय उपादेय हैं।]]</li> | ||
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<li | <li> ज्ञान व क्रियानय का समन्वय।‒ देखें - [[ चेतना#3.8 | चेतना / ३ / ८ ]]।</li> | ||
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Revision as of 22:20, 1 March 2015
अनन्त धर्मात्मक होने के कारण वस्तु बड़ी जटिल है (देखें - अनेकान्त )। उसको जाना जा सकता है, पर कहा नहीं जा सकता। उसे कहने के लिए वस्तु का विश्लेषण करके एक-एक धर्म द्वारा क्रमपूर्वक उसका निरूपण करने के अतिरिक्त अन्य उपाय नहीं है। कौन धर्म को पहले और कौन को पीछे कहा जाये यह भी कोई नियम नहीं है। यथा अवसर ज्ञानी वक्ता स्वयं किसी एक धर्म को मुख्य करके उसका कथन करता है। उस समय उसकी दृष्टि में अन्य धर्म गौण होते हैं पर निषिद्ध नहीं। कोई एक निष्पक्ष श्रोता उस प्ररूपणा को क्रम-पूर्वक सुनता हुआ अन्त में वस्तु के यथार्थ अखण्ड व्यापकरूप को ग्रहण कर लेता है। अत: गुरु-शिष्य के मध्य यह न्याय अत्यन्त उपकारी है। अत: इस न्याय को सिद्धान्तरूप से अपनाया जाना न्याय संगत है। यह न्याय श्रोता को वस्तु के निकट ले जाने के कारण ‘नयतीति नय:’ के अनुसार नय कहलाता है। अथवा वक्ता के अभिप्राय को या वस्तु के एकांश ग्राही ज्ञान को नय कहते हैं। सम्पूर्ण वस्तु के ज्ञान को प्रमाण तथा उसके अंश को नय कहते हैं।
अनेक धर्मों को युगपत् ग्रहण करने के कारण प्रमाण अनेकान्तरूप व सकलादेशी है, तथा एक धर्म के ग्रहण करने के कारण नय एकान्तरूप व विकलादेशी है। प्रमाण ज्ञान की अर्थात् अन्य धर्मों की अपेक्षा को बुद्धि में सुरक्षित रखते हुए प्रयोग किया जाने वाला नय ज्ञान या नय वाक्य सम्यक् है और उनकी अपेक्षा को छोड़कर उतनी मात्र ही वस्तु को जानने वाला नय ज्ञान या नय वाक्य मिथ्या है। वक्ता या श्रोता को इस प्रकार की एकान्त हठ या पक्षपात करना योग्य नहीं, क्योंकि वस्तु उतनी मात्र है ही नहीं‒देखें - एकान्त।
यद्यपि वस्तु का व्यापक यथार्थ रूप नयज्ञान का विषय न होने के कारण नयज्ञान का ग्रहण ठीक नहीं, परन्तु प्रारम्भिक अवस्था में उसका आश्रय परमोपकारी होने कारण वह उपादेय है। फिर भी नय का पक्ष करके विवाद करना योग्य नहीं है। समन्वय की दृष्टि से काम लेना ही नयज्ञान की उपयोगिता है‒देखें - स्याद्वाद।
पदार्थ तीन कोटियों में विभाजित हैं‒या तो वे अर्थात्मक अर्थात् वस्तुरूप हैं, या शब्दात्मक अर्थात् वाचकरूप हैं और या ज्ञानात्मक अर्थात् प्रतिभास रूप हैं। अत: उन-उनको विषय करने के कारण नय ज्ञान व नय वाक्य भी तीन प्रकार के हैं‒अर्थनय, शब्दनय व ज्ञाननय। मुख्य गौण विवक्षा के कारण वक्ता के अभिप्राय भी अनेक प्रकार के होते हैं, जिससे नय भी अनेक प्रकार के हैं। वस्तु के सामान्यांश अर्थात् द्रव्य को विषय करने वाला नय द्रव्यार्थिक और उसके विशेषांश अर्थात् पर्याय को विषय करने वाला नय पर्यायार्थिक होता है। इन दो मूल भेदों के भी आगे अनेकों उत्तरभेद हो जाते हैं। इसी प्रकार वस्तु के अन्तरंगरूप या स्वभाव को विषय करने वाला निश्चय और उसके बाह्य या संयोगी रूप को विषय करने वाला नय व्यवहार कहलाता है अथवा गुण-गुणी में अभेद को विषय करने वाला निश्चय और उनमें कथंचित् भेद को विषय करने वाला व्यवहार कहलाता है। तथा इसी प्रकार अन्य भेद-प्रभेदों का यह नयचक्र उतना ही जटिल है जितनी कि उसकी विषयभूत वस्तु। उस सबका परिचय इस अधिकार में दिया जायेगा।
- नय सामान्य
- नय सामान्य निर्देश
- नय व निक्षेप में अन्तर।‒ देखें - निक्षेप / १ ।]]
- नयों व निक्षेपों का परस्पर अन्तर्भाव।‒ देखें - निक्षेप / २ ,३।]]
- नयाभास निर्देश।‒ देखें - नय / II ।
- नय व निक्षेप में अन्तर।‒ देखें - निक्षेप / १ ।]]
- आगम व अध्यात्म पद्धति।‒देखें - पद्धति।
- नय-प्रमाण सम्बन्ध
- नय व प्रमाण में कथंचित् अभेद।
- नय व प्रमाण में कथंचित् भेद।
- श्रुतज्ञान में ही नय होती है, अन्य ज्ञानों में नहीं।
- प्रमाण व नय में कथंचित् प्रधान व अप्रधानपना।
- प्रमाण का विषय सामान्य विशेष दोनों है।
- प्रमाण अनेकान्तग्राही है और नय एकान्तग्राही।
- प्रमाण सकलादेशी है और नय विकलादेशी।
- नय भी कथंचित् सकलादेशी है।‒ देखें - सप्तभंगी / २ ।
- प्रमाण सकलवस्तुग्राहक है और नय तदंशग्राहक।
- प्रमाण सब धर्मों को युगपत् ग्रहण करता है तथा नय क्रम से एक एक को।
- सकल नयों का युगपत् ग्रहण ही सकलवस्तु ग्रहण है।‒ देखें - अनेकान्त / २ ।
- प्रमाण सापेक्ष ही नय सम्यक् है।‒ देखें - नय / II / १० ।
- प्रमाण व नय सप्तभंगी‒ देखें - सप्तभंगी / २ ।
- नय की कथंचित् हेयोपादेयता
- तत्त्व नयपक्षों से अतीत है।
- नयपक्ष कथंचित् हेय है।
- नय केवल ज्ञेय है पर उपादेय नहीं।
- नयपक्ष को हेय कहने का कारण प्रयोजन।
- परमार्थत: निश्चय व व्यवहार दोनों का पक्ष विकल्परूप होने से हेय है।
- प्रत्यक्षानुभूति के समय निश्चय व्यवहार के विकल्प नहीं रहते।
- परन्तु तत्त्वनिर्णयार्थ नय कार्यकारी है।
- आगम का अर्थ करने में नय का स्थान।‒ देखें - आगम / ३ / ३ ।
- तत्त्व नयपक्षों से अतीत है।
- शब्द, अर्थ व ज्ञाननय निर्देश
- शब्द अर्थ ज्ञानरूप तीन प्रकार के पदार्थ हैं।
- शब्दादि नयनिर्देश व लक्षण।
- वास्तव में नय ज्ञानात्मक ही है शब्दादिक को नय कहना उपचार है।
- शब्द में प्रमाण व नयपना।‒ देखें - आगम / ४ / ६ ।
- शब्द में अर्थ प्रतिपादन की योग्यता।‒ देखें - आगम / ४ / १ ।
- शब्दनय का विषय।‒देखें - नय III/१/९।
- शब्दनय की विशेषताएँ‒देखें - नय III/६-८।
- नय प्रयोग शब्द में नहीं भाव में होता है‒ देखें - स्याद्वाद / ४ ।
- शब्द अर्थ ज्ञानरूप तीन प्रकार के पदार्थ हैं।
- अन्य अनेकों नयों का निर्देश
- भूत भावि आदि प्रज्ञापन नय निर्देश।
- अस्तित्वादि सप्तभंगी नयों का निर्देश।
- नामादि निक्षेपरूप नयों का निर्देश।
- सामान्य-विशेष आदि धर्मोंरूप ४७ नयों का निर्देश।
- अनन्त नय होने सम्भव हैं।
- उपचरित नय‒देखें - उपचार।
- उपनय‒ देखें - नय / V / ४ / ८ ।
- काल अकाल नय का समन्वय‒ देखें - नियति / २ ।
- ज्ञान व क्रियानय का समन्वय‒ देखें - चेतना / ३ / ८ ।
- भूत भावि आदि प्रज्ञापन नय निर्देश।
- नय सामान्य निर्देश
- सम्यक् व मिथ्यानय
- नय सम्यक् भी होती है और मिथ्या भी।
- सम्यक् व मिथ्या नयों के लक्षण।
- अन्य पक्ष का निषेध न करे तो कोई भी नय मिथ्या नहीं होती।
- अन्य पक्ष का निषेध करने से ही मिथ्या है।
- अन्य पक्ष का संग्रह करने पर वह नय सम्यक् है।
- सर्व एकान्त मत किसी न किसी नय में गर्भित हैं। और सर्व नय अनेकान्त के गर्भ में समाविष्ट है।‒ देखें - अनेकान्त / २ ।
- जो नय सर्वथा के कारण मिथ्या है वही कथंचित् के कारण सम्यक् है।
- सापेक्षनय सम्यक् और निरपेक्षनय मिथ्या है।
- नयों के विरोध में अविरोध।‒ देखें - अनेकान्त / ५ ।
- नयों में परस्पर विधि निषेध।‒ देखें - सप्तभंगी / ५ ।
- सापेक्षता व मुख्यगौण व्यवस्था।‒ देखें - स्याद्वाद / ३ ।
- नय सम्यक् भी होती है और मिथ्या भी।
- नैगम आदि सात नय निर्देश
- सातों नयों का समुदित सामान्य निर्देश
- नय के सात भेदों का नाम निर्देश।‒ देखें - नय / I / १ / ३ ।
- सातों में द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक विभाग।
- इनमें द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक विभाग का कारण।
- सातों में अर्थ, शब्द व ज्ञान नय विभाग।
- इनमें अर्थ, शब्दनय विभाग का कारण।
- नौ भेद कहना भी विरुद्ध नहीं है।
- पूर्व पूर्व का नय अगले अगले नय का कारण है।
- सातों में उत्तरोत्तर सूक्ष्मता।
- सातों की उत्तरोत्तर सूक्ष्मता का उदाहरण।
- शब्दादि तीन नयों में परस्पर अन्तर।
- नय के सात भेदों का नाम निर्देश।‒ देखें - नय / I / १ / ३ ।
- नैगमनय के भेद व लक्षण
- नैगम सामान्य का लक्षण‒(१. संकल्पग्राही तथा द्वैतग्राही)
- संकल्पग्राही लक्षण विषयक उदाहरण।
- द्वैतग्राही लक्षण विषयक उदाहरण।
- नैगमनय के भेद।
- भूत भावी व वर्तमान नैगमनय के लक्षण।
- भूत भावी वर्तमान नैगमनय के उदाहरण।
- पर्याय द्रव्य व उभयरूप नैगमसामान्य का लक्षण।
- द्रव्य पर्याय आदि नैगमनय के भेदों के लक्षण व उदाहरण‒
- नैगमाभास सामान्य का लक्षण व उदाहरण।
- न्याय वैशेषिक नैगमाभासी हैं।‒ देखें - अनेकान्त / २ / ९ ।]]
- नैगम सामान्य का लक्षण‒(१. संकल्पग्राही तथा द्वैतग्राही)
- नैगमनय निर्देश
- नैगमनय अर्थनय व ज्ञाननय है।‒देखें - नय III/१।
- नैगमनय अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय है।
- शुद्ध व अशुद्ध सभी नय नैगमनय के पेट में समा जाती है।
- नैगम तथा संग्रह व व्यवहारनय में अन्तर।
- नैगमनय व प्रमाण में अन्तर।
- इसमें यथा सम्भव निक्षेपों का अन्तर्भाव‒ देखें - निक्षेप / ३ ।
- संग्रहनय निर्देश
- संग्रहनय अर्थनय है।‒ देखें - / III / १ ।
- इसमें यथासम्भव निक्षेपों का अन्तर्भाव।‒ देखें - निक्षेप / ३ ।
- इस नय के विषय की अद्वैतता।‒ देखें - नय / IV / २ / ३ ।
- दर्शनोपयोग व संग्रहनय में अन्तर।‒ देखें - दर्शन / २ / १० ।
- वेदान्ती व सांख्यमती संग्रहनयाभासी हैं।‒ देखें - अनेकान्त / २ / ९ ।
- संग्रहनय अर्थनय है।‒ देखें - / III / १ ।
- व्यवहारनय निर्देश‒ देखें - नय / V / ४ ।
- ऋजुसूत्रनय निर्देश
- इस नय के विषय की एकत्वता।‒ देखें - नय / IV / ३ ।
- बौद्धमत ऋजुसूत्राभासी है।‒ देखें - अनेकान्त / २ / ९ ।
- ऋजुसूत्रनय अर्थनय है।‒ देखें - नय / III / १ ।
- ऋजुसूत्रनय शुद्धपर्यायार्थिक है।
- इसे कथंचित् द्रव्यार्थिक कहने का विधि निषेध।
- सूक्ष्म व स्थूल ऋजुसूत्र की अपेक्षा वर्तमानकाल का प्रमाण।
- व्यवहारनय व ऋजुसूत्र में अन्तर।‒ देखें - नय / V / ४ / ३ ।
- इसमें यथासम्भव निक्षपों का अन्तर्भाव।‒ देखें - निक्षेप / ३ ।
- शब्दनय निर्देश
- शब्दनय के विषय की एकत्वता।‒ देखें - नय / IV / ३ ।
- शब्द प्रयोग की भेद व अभेदरूप दो अपेक्षाएँ।‒ देखें - नय / III / १ / ९ ।
- अनेक शब्दों का एक वाच्य मानता है।
- पर्यायवाची शब्दों के अर्थ में अभेद मानता है।
- पर्यायवाची शब्दों के प्रयोग में लिंगादि का व्यभिचार स्वीकार नहीं करता।
- ऋजुसूत्र व शब्दनय में अन्तर।
- यह पर्यायार्थिक तथा व्यंजननय है।‒ देखें - नय / III / १ ।
- इसमें यथासम्भव निक्षेपों का अन्तर्भाव।‒ देखें - निक्षेप / ३ ।
- वैयाकरणी शब्द नयाभासी है।‒ देखें - अनेकान्त / २ / ९ ।
- शब्द में अर्थ प्रतिपादन की योग्यता।‒ देखें - आगम / ४ / १ ।
- शब्दनय के विषय की एकत्वता।‒ देखें - नय / IV / ३ ।
- समभिरूढनय निर्देश
- समभिरूढनय के लक्षण‒
- इस नय के विषय की एकत्वता।‒ देखें - नय / IV / ३ ।
- शब्दप्रयोग की भेद-अभेद रूप दो अपेक्षाएँ।‒ देखें - / III / १ / ९ । २
- यद्यपि रूढ़िगत अनेक शब्द एकार्थवाची हो जाते हैं।
- परन्तु यहाँ पर्यायवाची शब्द नहीं होते।
- शब्द वस्तु का धर्म नहीं है, तब उसके भेद से अर्थभेद कैसे हो सकता है? ‒ देखें - आगम / ४ / ४ ।
- यह पर्यायार्थिक शब्दनय है।‒ देखें - नय / III / १ ।
- इसमें यथासम्भव निक्षेपों का अन्तर्भाव।‒ देखें - निक्षेप / ३ ।
- समभिरूढनय के लक्षण‒
- वैयाकरणी समभिरूढ़ नयाभासी हैं।‒ देखें - अनेकान्त / २ / ९ ।
- एवंभूत नय निर्देश
- सभी शब्द क्रियावाची हैं।‒देखें - नाम।
- शब्द प्रयोग की भेद-अभेद रूप दो अपेक्षाएँ।‒ देखें - नय / III / १ / ९ । २.
- तज्ज्ञान परिणत आत्मा उस शब्द का वाच्य है।
- अर्थभेद से शब्दभेद और शब्दभेद से अर्थभेद।
- इस नय की दृष्टि में वाक्य सम्भव नहीं।
- इस नय में पदसमास सम्भव नहीं।
- इस नय में वर्णसमास तक भी सम्भव नहीं।
- वाच्यवाचक भाव का समन्वय।‒ देखें - आगम / ४ / ४ ।
- यह पर्यायार्थिक शब्दनय है।‒ देखें - नय / III / १ ।
- इसमें यथासम्भव निक्षेपों का अन्तर्भाव।‒ देखें - निक्षेप / ३ ।
- वैयाकरणी एवंभूत नयाभासी हैं।‒ देखें - अनेकान्त / २ / ९ ।
- सातों नयों का समुदित सामान्य निर्देश
- द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक नय
- द्रव्यार्थिक नय सामान्य निर्देश
- द्रव्यार्थिकनय का लक्षण।
- यह वस्तु के सामान्यांश को अद्वैतरूप विषय करता है।
- 3-6 द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की अपेक्षा विषय की अद्वैतता।
- द्रव्यार्थिक व प्रमाण में अन्तर।‒ देखें - नय / III / ३ / ४ ।
- द्रव्यार्थिक के तीन भेद नैगमादि।‒ देखें - नय / II I।
- द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक में अन्तर।‒ देखें - नय / V / ४ / ३ ।
- इसमें यथासम्भव निक्षेपों का अन्तर्भाव।‒ देखें - निक्षेप / २ ।
- शुद्ध व अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय निर्देश
- द्रव्यार्थिकनय के दो भेद‒शुद्ध व अशुद्ध।
- शुद्ध द्रव्यार्थिकनय का लक्षण।
- द्रव्य क्षेत्रादि की अपेक्षा इस नय के विषय की अद्वैतता।
- शुद्ध द्रव्यार्थिकनय की प्रधानता।‒ देखें - नय / V / ३ / ४ ।
- अशुद्ध द्रव्यार्थिक व्यवहारनय है।‒ देखें - नय / V / ४ ।
- अशुद्ध व शुद्ध द्रव्यार्थिक में हेयोपादेयता।‒ देखें - नय / V / ८ ।
- पर्यायार्थिकनय सामान्य निर्देश
- पर्यायार्थिकनय का लक्षण।
- यह वस्तु के विशेषांश को एकत्वरूप से ग्रहण करता है।
- द्रव्य की अपेक्षा विषय की एकत्वता‒
- क्षेत्र की अपेक्षा विषय की एकत्वता‒
- काल की अपेक्षा विषय की एकत्वता‒
- वर्तमान काल का स्पष्टीकरण।‒ देखें - नय / III / ५ / ७ ।
- वर्तमान काल का स्पष्टीकरण।‒ देखें - नय / III / ५ / ७ ।
- काल की अपेक्षा एकत्व विषयक उदाहरण
- भाव की अपेक्षा विषय की एकत्वता।
- किसी भी प्रकार का सम्बन्ध सम्भव नहीं।
- कारण कार्य भाव सम्भव नहीं‒
- यह नय सकल व्यवहार का उच्छेद करता है।
- पर्यायार्थिक का कथंचित् द्रव्यार्थिकपना।‒ देखें - नय / III / ५ ।
- पर्यायार्थिक के चार भेद ऋजुसूत्रादि।‒ देखें - नय / II I।
- इसमें यथासम्भव निक्षेपों का अन्तर्भाव।‒ देखें - निक्षेप / २ ।
- पर्यायार्थिकनय का लक्षण।
- शुद्ध व अशुद्ध पर्यायार्थिक निर्देश
- अशुद्ध पर्यायार्थिकनय व्यवहारनय है।‒ देखें - नय / V / ४ ।
- अशुद्ध पर्यायार्थिकनय व्यवहारनय है।‒ देखें - नय / V / ४ ।
- द्रव्यार्थिक नय सामान्य निर्देश
- निश्चय व्यवहारनय
- निश्चयनय निर्देश
- निश्चयनय का लक्षण निश्चित व सत्यार्थ ग्रहण।
- निश्चयनय का लक्षण अभेद व अनुपचार ग्रहण।
- निश्चयनय का लक्षण स्वाश्रय कथन
- निश्चयनय के भेद‒शुद्ध व अशुद्ध
- शुद्ध निश्चय के लक्षण व उदाहरण‒
- एकदेश शुद्ध निश्चयनय का लक्षण।
- शुद्ध, एकदेश शुद्ध व निश्चयसामान्य में अन्तर व इनकी प्रयोग विधि।
- अशुद्ध निश्चयनय का लक्षण व उदाहरण।
- निश्चयनय का लक्षण निश्चित व सत्यार्थ ग्रहण।
- निश्चयनय की निर्विकल्पता
- शुद्ध व अशुद्ध निश्चयनय द्रव्यार्थिक के भेद हैं।
- निश्चयनय एक निर्विकल्प व वचनातीत है।
- निश्चयनय के भेद नहीं हो सकते।
- शुद्धनिश्चय ही वास्तव में निश्चयनय है; अशुद्ध निश्चयनय तो व्यवहार है।
- उदाहरण सहित तथा सविकल्प सभी नये व्यवहार हैं।
- व्यवहार का निषेध ही निश्चय का वाच्य है।‒ देखें - नय / V / ९ / २ ।
- निश्चयनय की प्रधानता
- व्यवहारनय सामान्य निर्देश
- व्यवहारनय सामान्य के कारण प्रयोजन।‒ देखें - नय / V / ७ ।
- चार्वाक मत व्यवहारनयाभासी है।‒ देखें - अनेकान्त / २ / ९ ।
- यह द्रव्यार्थिक व अर्थनय है।‒ देखें - नय / III / १ ।
- इसमें यथासम्भव निक्षेपों का अन्तर्भाव।‒ देखें - निक्षेप / २ ।
- सद्भूत असद्भूत व्यवहार निर्देश
- सद्भूत व्यवहारनय सामान्य निर्देश‒
- अनुपचरित या अशुद्ध सद्भूत व्यवहार निर्देश‒
- उपचरित या अशुद्ध सद्भूत निर्देश‒
- असद्भूत व्यवहार सामान्य निर्देश‒
- अनुपचरित असद्भूत व्यवहार निर्देश‒
- उपचरित असद्भूत व्यवहारनय निर्देश‒
- भिन्न द्रव्यों में अभेद की अपेक्षा लक्षण व उदाहरण।
- विभाव भावों की अपेक्षा लक्षण व उदाहरण।
- इस नय के कारण व प्रयोजन।
- उपचार नय सम्बन्धी।‒देखें - उपचार।
- व्यवहारनय की कथंचित् गौणता
- व्यवहारनय असत्यार्थ है, तथा उसका हेतु।
- व्यवहारनय उपचारमात्र है।
- व्यवहारनय व्यभिचारी है।
- व्यवहारनय लौकिक रूढि है।
- व्यवहारनय अध्यवसान है।
- व्यवहारनय कथनमात्र है।
- व्यवहारनय साधकतम नहीं है।
- व्यवहारनय निश्चय द्वारा निषिद्ध है।‒ देखें - नय / V / ९ / २ ।
- व्यवहारनय सिद्धान्तविरुद्ध तथा नयाभास है।
- व्यवहारनय का विषय सदा गौण होता है।
- शुद्ध दृष्टि में व्यवहार को स्थान नहीं।
- व्यवहारनय का विषय निष्फल है।
- व्यवहारनय का आश्रय मिथ्यात्व है।
- तत्त्व निर्णय करने में लोकव्यवहार को विच्छेद होने का भय नहीं किया जाता।‒ देखें - निक्षेप / ३ / ३ तथा ‒ देखें - नय / III / ६ / १० ;IV/३/१०।
- व्यवहारनय की कथंचित् प्रधानता
- व्यवहारनय सर्वथा निषिद्ध नहीं है (व्यवहार दृष्टि से यह सत्यार्थ है)।
- निचली भूमिका में व्यवहार प्रयोजनीय है।
- मन्दबुद्धियों के लिए व्यवहार उपकारी है।
- व्यवहारनय निश्चयनय का साधक है।‒ देखें - नय / V / ९ / २ ।
- व्यवहारपूर्वक ही निश्चय तत्त्व का ज्ञान होना सम्भव है।
- व्यवहार के बिना निश्चय का प्रतिपादन शक्य नहीं।
- तीर्थप्रवृत्ति की रक्षार्थ व्यवहारनय प्रयोजनीय है।‒ देखें - नय / V / ८ / ४ ।
- व्यवहार व निश्चय की हेयोपादेयता का समन्वय
- परमार्थ से निश्चय व व्यवहार दोनों हेय हैं।‒ देखें - नय / I / ३ ।
- निश्चय व्यवहार के विषयों का समन्वय
- निश्चय व्यवहार निषेध्यनिषेधक भाव का समन्वय।‒ देखें - नय / V / ९ / २ ।
- नयों में परस्पर मुख्य गौण व्यवस्था।‒ देखें - स्याद्वाद / ३ ।
- दोनों में साध्य साधनभाव का प्रयोजन दोनों की परस्पर सापेक्षता।
- दोनों की सापेक्षता का कारण व प्रयोजन।
- दोनों की सापेक्षता के उदाहरण।
- इसलिए दोनों ही नय उपादेय हैं।
- ज्ञान व क्रियानय का समन्वय।‒ देखें - चेतना / ३ / ८ ।
- निश्चयनय निर्देश