नृपदत्त: Difference between revisions
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<p class="HindiText">—(ह.पु./अधि./श्लोक नं.)–पूर्व भव नं.३ में भानु सेठ का पुत्र भानुकीर्ति था। (३४/९७-९८)। दूसरे भव में चित्रचूल विद्याधर का पुत्र गरुडकान्त था। (३४/१३२-१३३)। पूर्व के भव में राजा गङ्गदेव का पुत्र गङ्ग था। (३४/१४२-१४३)। वर्तमान भव में वसुदेव का पुत्र हुआ। (३५/३)। जन्मते ही एक देव ने उठाकर इसे सुदृष्टि सेठ के | <p class="HindiText">—(ह.पु./अधि./श्लोक नं.)–पूर्व भव नं.३ में भानु सेठ का पुत्र भानुकीर्ति था। (३४/९७-९८)। दूसरे भव में चित्रचूल विद्याधर का पुत्र गरुडकान्त था। (३४/१३२-१३३)। पूर्व के भव में राजा गङ्गदेव का पुत्र गङ्ग था। (३४/१४२-१४३)। वर्तमान भव में वसुदेव का पुत्र हुआ। (३५/३)। जन्मते ही एक देव ने उठाकर इसे सुदृष्टि सेठ के यहाँ पहुँचा दिया। (३५/४-५)। वहीं पोषण हुआ। दीक्षा धारण कर घोर तप किया। (५९/११५-१२०); (६०/७)। अन्त में मोक्ष सिधारे। (६५/१६-१७)।</p> | ||
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Revision as of 23:20, 1 March 2015
—(ह.पु./अधि./श्लोक नं.)–पूर्व भव नं.३ में भानु सेठ का पुत्र भानुकीर्ति था। (३४/९७-९८)। दूसरे भव में चित्रचूल विद्याधर का पुत्र गरुडकान्त था। (३४/१३२-१३३)। पूर्व के भव में राजा गङ्गदेव का पुत्र गङ्ग था। (३४/१४२-१४३)। वर्तमान भव में वसुदेव का पुत्र हुआ। (३५/३)। जन्मते ही एक देव ने उठाकर इसे सुदृष्टि सेठ के यहाँ पहुँचा दिया। (३५/४-५)। वहीं पोषण हुआ। दीक्षा धारण कर घोर तप किया। (५९/११५-१२०); (६०/७)। अन्त में मोक्ष सिधारे। (६५/१६-१७)।