मेघरथ: Difference between revisions
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<p class="HindiText">म. पु. /६३/श्लोक नं.- पुष्कलावती देश में पुण्डरीकिणी नगरी के राजा घनरथ का पुत्र था । (१४२-१४३)। इनके पुण्य के प्रताप से एक विद्याधर का विमान इनके ऊपर आकर अटक गया । क्रुद्ध होकर विद्याधर ने शिला सहित इन दोनों पिता-पुत्र को उठाना चाहा तो उन्होंने पाँव के अँगूठे से शिला को दबा दिया । विद्याधर ने क्षमा माँगी और चला गया । (२३६-२३९, २४८)। इन्द्र सभा में इनके सम्यक्त्व की प्रशंसा सुनकर दो देवियाँ परीक्षा के लिए आयीं, परन्तु ये विचलित न हुए । (२८४-२८७)। पिता ने घनरथ तीर्थंकर का उपदेश सुन दीक्षा ले ली । और तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया । (३०५-३११, ३३२)। अन्त में सन्यासमरण कर अहमिन्द्र पद प्राप्त किया । (३३६-३३७)। यह शान्तिनाथ भगवान् का पूर्व का दूसरा भव है ।− | <p class="HindiText">म. पु. /६३/श्लोक नं.- पुष्कलावती देश में पुण्डरीकिणी नगरी के राजा घनरथ का पुत्र था । (१४२-१४३)। इनके पुण्य के प्रताप से एक विद्याधर का विमान इनके ऊपर आकर अटक गया । क्रुद्ध होकर विद्याधर ने शिला सहित इन दोनों पिता-पुत्र को उठाना चाहा तो उन्होंने पाँव के अँगूठे से शिला को दबा दिया । विद्याधर ने क्षमा माँगी और चला गया । (२३६-२३९, २४८)। इन्द्र सभा में इनके सम्यक्त्व की प्रशंसा सुनकर दो देवियाँ परीक्षा के लिए आयीं, परन्तु ये विचलित न हुए । (२८४-२८७)। पिता ने घनरथ तीर्थंकर का उपदेश सुन दीक्षा ले ली । और तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया । (३०५-३११, ३३२)। अन्त में सन्यासमरण कर अहमिन्द्र पद प्राप्त किया । (३३६-३३७)। यह शान्तिनाथ भगवान् का पूर्व का दूसरा भव है ।− देखें - [[ शान्तिनाथ | शान्तिनाथ । ]]</p> | ||
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Revision as of 15:25, 6 October 2014
म. पु. /६३/श्लोक नं.- पुष्कलावती देश में पुण्डरीकिणी नगरी के राजा घनरथ का पुत्र था । (१४२-१४३)। इनके पुण्य के प्रताप से एक विद्याधर का विमान इनके ऊपर आकर अटक गया । क्रुद्ध होकर विद्याधर ने शिला सहित इन दोनों पिता-पुत्र को उठाना चाहा तो उन्होंने पाँव के अँगूठे से शिला को दबा दिया । विद्याधर ने क्षमा माँगी और चला गया । (२३६-२३९, २४८)। इन्द्र सभा में इनके सम्यक्त्व की प्रशंसा सुनकर दो देवियाँ परीक्षा के लिए आयीं, परन्तु ये विचलित न हुए । (२८४-२८७)। पिता ने घनरथ तीर्थंकर का उपदेश सुन दीक्षा ले ली । और तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया । (३०५-३११, ३३२)। अन्त में सन्यासमरण कर अहमिन्द्र पद प्राप्त किया । (३३६-३३७)। यह शान्तिनाथ भगवान् का पूर्व का दूसरा भव है ।− देखें - शान्तिनाथ ।