स्वयंप्रभा: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> स्वर्ग में ललितांगदेव (ऋषभदेव के नवमें भव) की अति प्रिय देवी थी (5/286)। यह ललितांगदेव के स्वर्ग से च्युत होने पर अति दुखी हुई (6/50)। अंत में पंचपरमेष्ठी के स्मरण पूर्वक स्वर्ग से च्युत हुई (6/56-57)। यह श्रेयांस राजा का पूर्व का पाँचवाँ भव है-देखें [[ श्रेयांस ]] ।</span> | |||
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Latest revision as of 15:25, 28 November 2023
सिद्धांतकोष से
महापुराण/सर्ग/श्लोक
स्वर्ग में ललितांगदेव (ऋषभदेव के नवमें भव) की अति प्रिय देवी थी (5/286)। यह ललितांगदेव के स्वर्ग से च्युत होने पर अति दुखी हुई (6/50)। अंत में पंचपरमेष्ठी के स्मरण पूर्वक स्वर्ग से च्युत हुई (6/56-57)। यह श्रेयांस राजा का पूर्व का पाँचवाँ भव है-देखें श्रेयांस ।
पुराणकोष से
(1) स्वयंभूरमण द्वीप के स्वयंप्रभ व्यंतर देव की देवी । यह कृष्ण की पटरानी पदमावती के तीसरे पूर्वभव का जीव थी । महापुराण 71. 451-452, हरिवंशपुराण - 60.116
(2) मंदोदरी की छोटी बहिन । रावण ने इसे सहस्ररश्मि को देना चाहा था किंतु उसने इसे स्वीकार न करके दीक्षा ले ली थी । पद्मपुराण - 10.161
(3) कृष्ण की रानी जांबवती के पूर्व का जीव । यह कुबेर की स्त्री थी । हरिवंशपुराण - 60.50
(4) विजया पर्वत की दक्षिण श्रेणी के रथनूपुर चक्रवाल नगर के राजा सुकेतु की रानी । इसकी पुत्री सत्यभामा का विवाह कृष्ण से हुआ था । महापुराण 71. 313, हरिवंशपुराण - 36.56,हरिवंशपुराण - 36.61, 60. 22, पांडवपुराण 11. 60
(5) समवशरण के आम्रवन की एक वापी । हरिवंशपुराण - 57.35
(6) समुद्रविजय के छोटे भाई स्तिमित सागर को रानी । हरिवंशपुराण - 19.3
(7) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी के राजा विद्याधर ज्वलनजटी और रानी वायुवेगा की पुत्री । यह अर्ककीर्ति की बहिन थी । पिता ने इसका विवाह पोदनपुर के राजकुमार प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ से किया था । महापुराण 62.44, 74.131-155, पांडवपुराण 4.11-13, 53-54 वीरवर्द्धमान चरित्र 3.71-75, 94.95
(8) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में भोगपुर नगर के राजा वायुरथ विद्याधर की रानी । प्रभावती की यह जननी थी । महापुराण 46.147-148
(9) वृषभदेव के नौवें पूर्वभव का जीव-ऐशान स्वर्ग के ललितांग देव की महादेवी । यह पति की पृथक्त्व पल्य के बराबर आयु शेष रह जाने पर उत्पन्न हुई थी । पति का वियोग होने पर इसे दु:खी देखकर अंत:परिषद के सदस्य दृढ़धर्म देव ने इसका शोक दूर कर इसे सन्मार्ग पर लगाया था । यह छ: माह तक जिनपूजा में उद्यत रही । पश्चात् सौमनस वन के पूर्वदिशा के जिन मंदिर में चैत्यवृक्ष के नीचे समाधिमरणपूर्वक देह त्याग कर पुंडरीकिणी नगरी के राजा वज्रदंत की श्रीमती नाम की पुत्री हुई । महापुराण 5.253-254, 283-286, 6. 50-60 देखें श्रीमती - 13