सप्रतिपक्षी प्रकृतियाँ: Difference between revisions
From जैनकोष
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="GRef"> (पंचसंग्रह / प्राकृत/238-240) </span><span class="PrakritText">परघादुस्सासाणं आयावुज्जोवमाउ चत्तारि। तित्थयराहारदुयं एक्कारस होंति सेसाओ।238। सादियरं वेयाविहस्साइचउक्क पंच जाईओ। संठाणं संघयणं छच्छक्क चउक्क आणुपुव्वीय।239। गइ चउ दोय सरीरं गोयं च य दोण्णि अंगबंगा य।239। दह जुयलाण तसाइं गयणगइदुअं विसट्ठिपरिवत्ता।240।</span | <span class="GRef"> (पंचसंग्रह / प्राकृत/238-240) </span><span class="PrakritText">परघादुस्सासाणं आयावुज्जोवमाउ चत्तारि। तित्थयराहारदुयं एक्कारस होंति सेसाओ।238। सादियरं वेयाविहस्साइचउक्क पंच जाईओ। संठाणं संघयणं छच्छक्क चउक्क आणुपुव्वीय।239। गइ चउ दोय सरीरं गोयं च य दोण्णि अंगबंगा य।239। दह जुयलाण तसाइं गयणगइदुअं विसट्ठिपरिवत्ता।240।</span> | ||
<span class="HindiText">1. निष्प्रतिपक्ष प्रकृतियाँ — परघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, चारों आयु, तीर्थंकर और आहारक द्विक ये ग्यारह अध्रुव निष्प्रतिपक्ष प्रकृतियाँ हैं।238। </span>। | |||
<span class="HindiText"><strong>2. सप्रतिपक्ष प्रकृतियाँ </strong>— साता वेदनीय, असाता वेदनीय, तीनों वेद, हास्यादि चार (हास्य, रति, अरति और शोक), एकेंद्रियादि 5 जातियाँ, छह संस्थान, छह संहनन, 4 आनुपूर्वी, 4 गति, औदारिक और वैक्रियिक ये दो शरीर तथा इन दोनों के दो अंगोपांग, दो गोत्र, त्रसादि दश युगल (त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सुस्वर, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति ये 20) और दो विहायोगति, ये बासठ सप्रतिपक्ष अध्रुवबंधी प्रकृतियाँ हैं।239-240।</span> <br> | |||
<span class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ प्रकृतिबंध#2.8 | प्रकृतिबंध - 2.8]]।</span> | <span class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ प्रकृतिबंध#2.8 | प्रकृतिबंध - 2.8]]।</span> |
Latest revision as of 16:48, 19 February 2024
(पंचसंग्रह / प्राकृत/238-240) परघादुस्सासाणं आयावुज्जोवमाउ चत्तारि। तित्थयराहारदुयं एक्कारस होंति सेसाओ।238। सादियरं वेयाविहस्साइचउक्क पंच जाईओ। संठाणं संघयणं छच्छक्क चउक्क आणुपुव्वीय।239। गइ चउ दोय सरीरं गोयं च य दोण्णि अंगबंगा य।239। दह जुयलाण तसाइं गयणगइदुअं विसट्ठिपरिवत्ता।240।
1. निष्प्रतिपक्ष प्रकृतियाँ — परघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, चारों आयु, तीर्थंकर और आहारक द्विक ये ग्यारह अध्रुव निष्प्रतिपक्ष प्रकृतियाँ हैं।238। ।
2. सप्रतिपक्ष प्रकृतियाँ — साता वेदनीय, असाता वेदनीय, तीनों वेद, हास्यादि चार (हास्य, रति, अरति और शोक), एकेंद्रियादि 5 जातियाँ, छह संस्थान, छह संहनन, 4 आनुपूर्वी, 4 गति, औदारिक और वैक्रियिक ये दो शरीर तथा इन दोनों के दो अंगोपांग, दो गोत्र, त्रसादि दश युगल (त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सुस्वर, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति ये 20) और दो विहायोगति, ये बासठ सप्रतिपक्ष अध्रुवबंधी प्रकृतियाँ हैं।239-240।
अधिक जानकारी के लिये देखें प्रकृतिबंध - 2.8।