वध: Difference between revisions
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स.सि./7/25/366/2 <span class="SanskritText">दण्डकशावेत्रादिभिरभिघातः प्राणिनां वधः, न प्राणव्यपरोपणम्; ततः प्रागेवास्य विनिवृत्तत्वात् । </span>= </p> | |||
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<li class="HindiText">आयु, इन्द्रिय और | <li class="HindiText">आयु, इन्द्रिय और श्वासोच्छ्वास का जुदा कर देना वध है । (रा.वा./6/11/5/519/28); (प.प्र./टी./2/127) । </li> | ||
<li><span class="HindiText"> डंडा, चाबुक और बेंत आदि से प्राणियों को मारना वध है । यहा̐ वध का अर्थ प्राणों का वियोग करना नहीं लिया गया है, क्योंकि अतिचार के पहले ही हिंसा का त्याग कर दिया जाता है । (रा.वा./ | <li><span class="HindiText"> डंडा, चाबुक और बेंत आदि से प्राणियों को मारना वध है । यहा̐ वध का अर्थ प्राणों का वियोग करना नहीं लिया गया है, क्योंकि अतिचार के पहले ही हिंसा का त्याग कर दिया जाता है । (रा.वा./7/25/2553/18) । </span><br /> | ||
प.प्र./टी./ | प.प्र./टी./2/127/243/9 <span class="SanskritText">निश्चयेन मिथ्यात्वविषयकषायपरिणामरूपवधं स्वकीय... ।</span> = <span class="HindiText">निश्चयकर मिथ्यात्व विषय कषाय परिणामरूप निजघात... । </span></li> | ||
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<p id="1">(1) असातावेदनीय कर्म के दुःख शोक आदि आस्रवों में एक आस्रव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58.93 </span></p> | |||
<p id="2">(2) अहिंसाणुव्रत का दूसरा अतीचार-दण्ड आदि से मारना-पीटना । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58.164-165 </span></p> | |||
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Revision as of 21:46, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
स.सि./6/11/329/2 = आयुरिन्द्रियबलप्राणवियोगकारणं वधः ।
स.सि./7/25/366/2 दण्डकशावेत्रादिभिरभिघातः प्राणिनां वधः, न प्राणव्यपरोपणम्; ततः प्रागेवास्य विनिवृत्तत्वात् । =
- आयु, इन्द्रिय और श्वासोच्छ्वास का जुदा कर देना वध है । (रा.वा./6/11/5/519/28); (प.प्र./टी./2/127) ।
- डंडा, चाबुक और बेंत आदि से प्राणियों को मारना वध है । यहा̐ वध का अर्थ प्राणों का वियोग करना नहीं लिया गया है, क्योंकि अतिचार के पहले ही हिंसा का त्याग कर दिया जाता है । (रा.वा./7/25/2553/18) ।
प.प्र./टी./2/127/243/9 निश्चयेन मिथ्यात्वविषयकषायपरिणामरूपवधं स्वकीय... । = निश्चयकर मिथ्यात्व विषय कषाय परिणामरूप निजघात... ।
पुराणकोष से
(1) असातावेदनीय कर्म के दुःख शोक आदि आस्रवों में एक आस्रव । हरिवंशपुराण 58.93
(2) अहिंसाणुव्रत का दूसरा अतीचार-दण्ड आदि से मारना-पीटना । हरिवंशपुराण 58.164-165