विनयंधर: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p class="HindiText"><ol> | <p class="HindiText"><ol> | ||
<li> पुन्नाट संघ की गुर्वावली के [अनुसार लोहाचार्य नं. २ के शिष्य तथा गुप्ति श्रुति के गुरु थे। समय–वी.नि.५३० (ई. सं. ३), ( | <li> पुन्नाट संघ की गुर्वावली के [अनुसार लोहाचार्य नं. २ के शिष्य तथा गुप्ति श्रुति के गुरु थे। समय–वी.नि.५३० (ई. सं. ३), ( देखें - [[ इतिहास#7.8 | इतिहास / ७ / ८ ]])। </li> | ||
<li> वृ. कथा कोष/कथा नं. १३/पृ.–कुम्भिपुर का राजा था।७१। सिद्धार्थ नामक श्रेष्ठि पुत्र द्वारा दिये गये भगवान् के गन्धोधक जल से उसकी शारीरिक व्याधियाँ शान्त हो गयीं। तब उसने श्रावकव्रत धरण कर लिये। (७२-७३)। </li> | <li> वृ. कथा कोष/कथा नं. १३/पृ.–कुम्भिपुर का राजा था।७१। सिद्धार्थ नामक श्रेष्ठि पुत्र द्वारा दिये गये भगवान् के गन्धोधक जल से उसकी शारीरिक व्याधियाँ शान्त हो गयीं। तब उसने श्रावकव्रत धरण कर लिये। (७२-७३)। </li> | ||
</ol></p> | </ol></p> |
Revision as of 16:25, 6 October 2014
- पुन्नाट संघ की गुर्वावली के [अनुसार लोहाचार्य नं. २ के शिष्य तथा गुप्ति श्रुति के गुरु थे। समय–वी.नि.५३० (ई. सं. ३), ( देखें - इतिहास / ७ / ८ )।
- वृ. कथा कोष/कथा नं. १३/पृ.–कुम्भिपुर का राजा था।७१। सिद्धार्थ नामक श्रेष्ठि पुत्र द्वारा दिये गये भगवान् के गन्धोधक जल से उसकी शारीरिक व्याधियाँ शान्त हो गयीं। तब उसने श्रावकव्रत धरण कर लिये। (७२-७३)।