वृषभ गिरि: Difference between revisions
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<p>ति.प./४/२६८-२६९ <span class="PrakritGatha">सेसा वि पञ्च खंडा णामेणं होंति म्लेच्छखंड त्ति । उत्तरतियखंडेसुं मज्झिमखंडस्स बहुमज्झे ।२६८। चक्कीण माणमलणो णाणाचक्कहरणामसंछण्णो । मूलोवरिममज्झेसं् रयणमओ होदि वसहगिरि ।२६९।</span> = <span class="HindiText">(भरत क्षेत्र के आर्य खण्ड को छोड़कर) शेष पाँचों ही खण्ड म्लेच्छखण्ड नाम से प्रसिद्ध हैं । उत्तर भारत के तीन खण्डों में से मध्यखण्ड के बहुमध्य भाग में चक्रवर्तियों के मान का मर्दन करने वाला, नाना चक्रवर्तियों के नामों से व्याप्त और मूल में ऊपर एवं मध्य में रत्नों से निर्मित ऐसा वृषभ गिरि है ।२६८-२६९ । (त्रि.सा./७१०) । इसी प्रकार ऐरावत क्षेत्र में जानना | <p>ति.प./४/२६८-२६९ <span class="PrakritGatha">सेसा वि पञ्च खंडा णामेणं होंति म्लेच्छखंड त्ति । उत्तरतियखंडेसुं मज्झिमखंडस्स बहुमज्झे ।२६८। चक्कीण माणमलणो णाणाचक्कहरणामसंछण्णो । मूलोवरिममज्झेसं् रयणमओ होदि वसहगिरि ।२६९।</span> = <span class="HindiText">(भरत क्षेत्र के आर्य खण्ड को छोड़कर) शेष पाँचों ही खण्ड म्लेच्छखण्ड नाम से प्रसिद्ध हैं । उत्तर भारत के तीन खण्डों में से मध्यखण्ड के बहुमध्य भाग में चक्रवर्तियों के मान का मर्दन करने वाला, नाना चक्रवर्तियों के नामों से व्याप्त और मूल में ऊपर एवं मध्य में रत्नों से निर्मित ऐसा वृषभ गिरि है ।२६८-२६९ । (त्रि.सा./७१०) । इसी प्रकार ऐरावत क्षेत्र में जानना ।– देखें - [[ लोक#3.3 | लोक / ३ / ३ ]]। </span></p> | ||
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Revision as of 16:25, 6 October 2014
ति.प./४/२६८-२६९ सेसा वि पञ्च खंडा णामेणं होंति म्लेच्छखंड त्ति । उत्तरतियखंडेसुं मज्झिमखंडस्स बहुमज्झे ।२६८। चक्कीण माणमलणो णाणाचक्कहरणामसंछण्णो । मूलोवरिममज्झेसं् रयणमओ होदि वसहगिरि ।२६९। = (भरत क्षेत्र के आर्य खण्ड को छोड़कर) शेष पाँचों ही खण्ड म्लेच्छखण्ड नाम से प्रसिद्ध हैं । उत्तर भारत के तीन खण्डों में से मध्यखण्ड के बहुमध्य भाग में चक्रवर्तियों के मान का मर्दन करने वाला, नाना चक्रवर्तियों के नामों से व्याप्त और मूल में ऊपर एवं मध्य में रत्नों से निर्मित ऐसा वृषभ गिरि है ।२६८-२६९ । (त्रि.सा./७१०) । इसी प्रकार ऐरावत क्षेत्र में जानना ।– देखें - लोक / ३ / ३ ।