अन्योन्याश्रय हेत्वाभास: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: श्लोकवार्तिक पुस्तक संख्या ४/न्या.४५९/५५५/६/ भाषाकार "परस्परमें धाराव...) |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
[[श्लोकवार्तिक]] पुस्तक संख्या ४/न्या.४५९/५५५/६/ भाषाकार "परस्परमें धारावाही रूपसे एक-दूसरेकी अपेक्षा लागू रहना अन्योन्याश्रय है" (जिसे खटकेके तालेकी चाबी तो आलमारीमें रह गयी और बाहरसे ताला बन्द हो गया। तब चाबी निकले तो ताला खुले और ताला खुले तो चाबी निकले, ऐसी परस्परकी अपेक्षा लागू होती है।)<br>[[Category:अ]] | [[श्लोकवार्तिक]] पुस्तक संख्या ४/न्या.४५९/५५५/६/ भाषाकार "परस्परमें धारावाही रूपसे एक-दूसरेकी अपेक्षा लागू रहना अन्योन्याश्रय है" (जिसे खटकेके तालेकी चाबी तो आलमारीमें रह गयी और बाहरसे ताला बन्द हो गया। तब चाबी निकले तो ताला खुले और ताला खुले तो चाबी निकले, ऐसी परस्परकी अपेक्षा लागू होती है।)<br> | ||
[[Category:अ]] | |||
[[Category:श्लोकवार्तिक]] |
Revision as of 00:32, 8 May 2009
श्लोकवार्तिक पुस्तक संख्या ४/न्या.४५९/५५५/६/ भाषाकार "परस्परमें धारावाही रूपसे एक-दूसरेकी अपेक्षा लागू रहना अन्योन्याश्रय है" (जिसे खटकेके तालेकी चाबी तो आलमारीमें रह गयी और बाहरसे ताला बन्द हो गया। तब चाबी निकले तो ताला खुले और ताला खुले तो चाबी निकले, ऐसी परस्परकी अपेक्षा लागू होती है।)