व्यवहारत्व गुण: Difference between revisions
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<p>भ. आ./मू./ | <p>भ. आ./मू./448/673 <span class="PrakritGatha">पञ्चविहं ववहारं जो जाणइ तच्चादो सवित्थारं । बहुसो य दिट्ठकयपट्ठवणो ववहारवं होइ ।448। </span>= <span class="HindiText">पाँच प्रकार के प्रायश्चित्तों को जो उनके स्वरूपसहित सविस्तार जानते हैं । जिन्होंने अन्य आचार्यों को प्रायश्चित्त देते हुए देखा है और स्वयं भी जिन्होंने दिया है, ऐसे आचार्य को व्यवहारवान् आचार्य कहते हैं । </span></p> | ||
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Revision as of 21:47, 5 July 2020
भ. आ./मू./448/673 पञ्चविहं ववहारं जो जाणइ तच्चादो सवित्थारं । बहुसो य दिट्ठकयपट्ठवणो ववहारवं होइ ।448। = पाँच प्रकार के प्रायश्चित्तों को जो उनके स्वरूपसहित सविस्तार जानते हैं । जिन्होंने अन्य आचार्यों को प्रायश्चित्त देते हुए देखा है और स्वयं भी जिन्होंने दिया है, ऐसे आचार्य को व्यवहारवान् आचार्य कहते हैं ।