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<p id="1"> (1) एक मासोपदासी मुनि । नागपुर के राजा सुप्रतिष्ठ ने इन्हें आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । <span class="GRef"> महापुराण 70.51-52, 54, 71. 430, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.44-45 </span></p> | |||
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<p id="4">(4) भरतक्षेत्र के पृथिवीपुर नगर का राजा । इसकी रानी का नाम जया था । यह सगर चक्रवर्ती के पूर्वभव के जीव जयकीर्तन का पिता एवं दीक्षागुरु था । <span class="GRef"> महापुराण 48.58-59, 67, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 5.138-139, 20. 127 </span></p> | |||
<p id="5">(5) बलभद्र अपराजित का दीक्षागुरु । <span class="GRef"> महापुराण 63.26, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण </span></p> | |||
<p id="6">(6) एक केवली । ये राजा वज्रदन्त के पिता थे । कैवल्य अवस्था में इन्हें प्रणाम करते ही वज्रदन्त को अवधिज्ञान प्राप्त हो गया था । गुणधर मुनि इनके शिष्य थे । <span class="GRef"> महापुराण 6.85, 103, 110, 8.84 </span></p> | |||
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Revision as of 21:46, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- भूतकालीन उन्नीसवें तीर्थंकर–देखें तीर्थंकर - 5।
- नव ग्रैवेयक का चतुर्थ पटल व इन्द्रक–देखें स्वर्ग - 5.3।
- मानुषोत्तर पर्वतस्थ सौगन्धिक कूट का स्वामी भवनवासी सुपर्णकुमार देव।–देखें लोक - 5.10।
पुराणकोष से
(1) एक मासोपदासी मुनि । नागपुर के राजा सुप्रतिष्ठ ने इन्हें आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । महापुराण 70.51-52, 54, 71. 430, हरिवंशपुराण 34.44-45
(2) मध्यम ग्रैवेयक का एक इन्द्रक विमान । हरिवंशपुराण 6.52
(3) मानुषोत्तर पर्वत के सौगन्धिक कूट का एक देव । यह सुपर्णकुमार देवों का स्वामी था । हरिवंशपुराण 5.602
(4) भरतक्षेत्र के पृथिवीपुर नगर का राजा । इसकी रानी का नाम जया था । यह सगर चक्रवर्ती के पूर्वभव के जीव जयकीर्तन का पिता एवं दीक्षागुरु था । महापुराण 48.58-59, 67, पद्मपुराण 5.138-139, 20. 127
(5) बलभद्र अपराजित का दीक्षागुरु । महापुराण 63.26, पांडवपुराण
(6) एक केवली । ये राजा वज्रदन्त के पिता थे । कैवल्य अवस्था में इन्हें प्रणाम करते ही वज्रदन्त को अवधिज्ञान प्राप्त हो गया था । गुणधर मुनि इनके शिष्य थे । महापुराण 6.85, 103, 110, 8.84