विद्युच्चोर: Difference between revisions
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<p> सुरम्य देश के प्रसिद्ध पोदनपुर के राजा विद्युद्राज और रानी विमलमती का पुत्र । इसका मूल नाम यद्यपि विद्युत्प्रभ था परन्तु यह इस नाम से प्रसिद्ध हुआ । यह तन्त्र-मन्त्र आदि के द्वारा किवाड़ खोलना, अदृश्य होकर रहना आदि जानता था । जम्बूस्वामी क पिता सेठ अर्हद्दास के घर यह धन चुराने आया था । वहाँ इसे जम्बूस्वामी की मां उदास दिखाई दी थी । उदासी का कारण पूछने पर जिनदासी ने इसे प्रात: जम्बूस्वामी का दीक्षा लेना बताया था उन्हें दीक्षा से रोकने वाले को मनचाहा धन दिये जाने की उसने घोषणा की थी । यह सुनकर इसे बोध जागा । इसने अपने को बहुत धिक्कारा । इसने सोचा था कि ये जम्बूस्वामी है जो भोग सामग्री रहते हुए भी विरक्त होना चाहते हैं और मैं यहाँ धन चुराने के लिए आया हूँ । इन विचारों के साथ यह जम्बूस्वामी के पास गया । यहाँ इसने अनेक कहानियां सुनाकर जम्बूस्वामी को ससार की विरक्ति से रोकने का यत्न किया किन्तु जम्बूस्वामी कहानियों के माध्यम से ही इसे निरुत्तर करते रहे । यह जम्बूस्वामी को विरक्ति से न रोक सका, किन्तु यह स्वयं ही विरक्त हो गया । <span class="GRef"> महापुराण 46.289, 294-342, 76.53-108 </span></p> | |||
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Revision as of 21:47, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से == देखें विद्युत्प्रभ - 6।
पुराणकोष से
सुरम्य देश के प्रसिद्ध पोदनपुर के राजा विद्युद्राज और रानी विमलमती का पुत्र । इसका मूल नाम यद्यपि विद्युत्प्रभ था परन्तु यह इस नाम से प्रसिद्ध हुआ । यह तन्त्र-मन्त्र आदि के द्वारा किवाड़ खोलना, अदृश्य होकर रहना आदि जानता था । जम्बूस्वामी क पिता सेठ अर्हद्दास के घर यह धन चुराने आया था । वहाँ इसे जम्बूस्वामी की मां उदास दिखाई दी थी । उदासी का कारण पूछने पर जिनदासी ने इसे प्रात: जम्बूस्वामी का दीक्षा लेना बताया था उन्हें दीक्षा से रोकने वाले को मनचाहा धन दिये जाने की उसने घोषणा की थी । यह सुनकर इसे बोध जागा । इसने अपने को बहुत धिक्कारा । इसने सोचा था कि ये जम्बूस्वामी है जो भोग सामग्री रहते हुए भी विरक्त होना चाहते हैं और मैं यहाँ धन चुराने के लिए आया हूँ । इन विचारों के साथ यह जम्बूस्वामी के पास गया । यहाँ इसने अनेक कहानियां सुनाकर जम्बूस्वामी को ससार की विरक्ति से रोकने का यत्न किया किन्तु जम्बूस्वामी कहानियों के माध्यम से ही इसे निरुत्तर करते रहे । यह जम्बूस्वामी को विरक्ति से न रोक सका, किन्तु यह स्वयं ही विरक्त हो गया । महापुराण 46.289, 294-342, 76.53-108