परिणमन: Difference between revisions
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प्र.सा./त.प्र./ | प्र.सा./त.प्र./42 <span class="SanskritText">उदयगतेषु पुद्गलकर्मांशेषु सत्सु संचेयमानो मोह-रागद्वेषपरिणतत्वात् ज्ञेयार्थं परिणमनलक्षणया क्रियया युज्यमानः क्रियाफलभूतं बन्धमनुभवति, न तु ज्ञानादिति। </span>= <span class="HindiText">उदयगत पुद्गल कर्मांशों के अस्तित्व में चेतित होने पर - जानने पर - अनुभव करने पर मोह राग द्वेष में परिणत होने से ज्ञेयार्थ परिणमन स्वरूप क्रिया के साथ युक्त होता हुआ आत्मा क्रिया फलरूप बन्ध का अनुभव करता है। किन्तु ज्ञान से नहीं (इस प्रकार प्रथम ही अर्थ परिणमन क्रिया के फलभूत बन्ध का समर्थन किया गया है।)</span><br /> | ||
स.सा./ता.वृ./ | स.सा./ता.वृ./95/152/10 <span class="SanskritText">धर्मास्तिकायोऽयमित्यादि विकल्पः यदा ज्ञेयतत्त्वविचारकाले करोति जीवः तदा शुद्धात्मस्वरूपं विस्मरति तस्मिन्विकल्पे कृते सति धर्मोऽहमिति विकल्पः उपचारेण घटत इति भावार्थः। </span>= <span class="HindiText">‘यह धर्मास्तिकाय है’ ऐसा विकल्प जब जीव, ज्ञेय-तत्त्व के विचार काल में करता है, उस समय वह शुद्धात्मा का स्वरूप भूल जाता है (क्योंकि उपयोग में एक समय एक ही विकल्प रह सकता है।); इसलिए उस विकल्प के किये जाने पर ‘मैं धर्मास्तिकाय हूँ’ ऐसा उपचार से घटित होता है। यह भावार्थ है। <br /> | ||
प्र.सा./पं. जयचंद/ | प्र.सा./पं. जयचंद/42 ज्ञेय पदार्थरूप से परिणमन करना अर्थात् ‘यह हरा है, यह पीला है’ इत्यादि विकल्प रूप से ज्ञेयरूप पदार्थों में परिणमन करना यह कर्म का भोगना है, ज्ञान का नहीं। ...ज्ञेय पदार्थों में रुकना - उनके सम्मुख वृत्ति होना, वह ज्ञान का स्वरूप नहीं है। <br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong>अखिल द्रव्य परिणमन करता है, द्रव्यांश नहीं।- </strong> देखें | <li><span class="HindiText"><strong>अखिल द्रव्य परिणमन करता है, द्रव्यांश नहीं।- </strong>देखें [[ उत्पाद#3 | उत्पाद - 3]]। <br /> | ||
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Revision as of 21:43, 5 July 2020
- ज्ञेयार्थ परिणमन का लक्षण
प्र.सा./त.प्र./42 उदयगतेषु पुद्गलकर्मांशेषु सत्सु संचेयमानो मोह-रागद्वेषपरिणतत्वात् ज्ञेयार्थं परिणमनलक्षणया क्रियया युज्यमानः क्रियाफलभूतं बन्धमनुभवति, न तु ज्ञानादिति। = उदयगत पुद्गल कर्मांशों के अस्तित्व में चेतित होने पर - जानने पर - अनुभव करने पर मोह राग द्वेष में परिणत होने से ज्ञेयार्थ परिणमन स्वरूप क्रिया के साथ युक्त होता हुआ आत्मा क्रिया फलरूप बन्ध का अनुभव करता है। किन्तु ज्ञान से नहीं (इस प्रकार प्रथम ही अर्थ परिणमन क्रिया के फलभूत बन्ध का समर्थन किया गया है।)
स.सा./ता.वृ./95/152/10 धर्मास्तिकायोऽयमित्यादि विकल्पः यदा ज्ञेयतत्त्वविचारकाले करोति जीवः तदा शुद्धात्मस्वरूपं विस्मरति तस्मिन्विकल्पे कृते सति धर्मोऽहमिति विकल्पः उपचारेण घटत इति भावार्थः। = ‘यह धर्मास्तिकाय है’ ऐसा विकल्प जब जीव, ज्ञेय-तत्त्व के विचार काल में करता है, उस समय वह शुद्धात्मा का स्वरूप भूल जाता है (क्योंकि उपयोग में एक समय एक ही विकल्प रह सकता है।); इसलिए उस विकल्प के किये जाने पर ‘मैं धर्मास्तिकाय हूँ’ ऐसा उपचार से घटित होता है। यह भावार्थ है।
प्र.सा./पं. जयचंद/42 ज्ञेय पदार्थरूप से परिणमन करना अर्थात् ‘यह हरा है, यह पीला है’ इत्यादि विकल्प रूप से ज्ञेयरूप पदार्थों में परिणमन करना यह कर्म का भोगना है, ज्ञान का नहीं। ...ज्ञेय पदार्थों में रुकना - उनके सम्मुख वृत्ति होना, वह ज्ञान का स्वरूप नहीं है।
- अन्य सम्बन्धित विषय
- परिणमन सामान्य का लक्षण।- देखें विपरिणमन ।
- एक द्रव्य दूसरे द्रव्यरूप परिणमन नहीं कर सकता।- देखें द्रव्य - 5।
- गुण भी द्रव्यवत् परिणमन करता है।- देखें गुण - 2।
- अखिल द्रव्य परिणमन करता है, द्रव्यांश नहीं।- देखें उत्पाद - 3।
- एक द्रव्य दूसरे को परिणमन नहीं करा सकता।- देखें कर्ता व कारण - III।
- शुद्ध द्रव्य को अपरिणामी कहने की विवक्षा।- देखें द्रव्य - 2।