अभ्युदय: Difference between revisions
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र.क.श्रा/पू./१३५ पूजार्थाज्ञैश्वर्यैर्बलपरिजनकाभोगभूयिष्ठैः। अतिशयितभुवनमद्धुतमभ्युदयं फलति सद्धर्मः ।।१३५।।<br>= सल्लेखनादिसे उपार्जन किया हुआ समीचीन धर्मप्रतिष्ठा धन आज्ञा और ऐश्वर्यसे तथा सेना नौकर-चाकर और काम भोगोंकी बहुलतासे लोकातिशयी अद्भुत अभ्युदयको फलता है।< | र.क.श्रा/पू./१३५ पूजार्थाज्ञैश्वर्यैर्बलपरिजनकाभोगभूयिष्ठैः। अतिशयितभुवनमद्धुतमभ्युदयं फलति सद्धर्मः ।।१३५।।<br> | ||
<p class="HindiSentence">= सल्लेखनादिसे उपार्जन किया हुआ समीचीन धर्मप्रतिष्ठा धन आज्ञा और ऐश्वर्यसे तथा सेना नौकर-चाकर और काम भोगोंकी बहुलतासे लोकातिशयी अद्भुत अभ्युदयको फलता है।</p> | |||
(लौकिक सुख)<br> | |||
[[धवला]] पुस्तक संख्या १/१,१,१/५६/६ तत्राभ्युदयसुखं नाम सातादिप्रशस्तकर्म-तीव्रानुभागो दयजनितेन्द्रप्रतीन्द्र-सामानिकत्रायस्त्रिंशदादिवे-चक्रवर्तिबलदेवनारायणार्धमण्डलीक-मण्डलीक-महामण्डलीक-राजाधिराज-महाराजाधिराज-परमेश्वरादि-दिव्यमानुषसुखम्। <br> | |||
<p class="HindiSentence">= साता वेदनीय प्रशस्त कर्म प्रकृतियोंके तीव्र अनुभागके उदयसे उत्पन्न हुआ जो-इन्द्र, प्रतीन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिंश आदि देव सम्बन्धी दिव्य सुख; और चक्रवर्त्ती, बलदेव, नारायण, अर्धमण्डलीक, मण्डलीक, महामण्डलीक, राजाधिराज, महाराजाधिराज, परमेश्वर (तीर्थंकर) आदि सम्बन्धी मानुष सुखको अभ्युदय सुख कहते हैं।</p> | |||
([[धवला]] पुस्तक संख्या १/१,१,१/गा.४५/५८)।<br> | |||
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Revision as of 01:19, 8 May 2009
र.क.श्रा/पू./१३५ पूजार्थाज्ञैश्वर्यैर्बलपरिजनकाभोगभूयिष्ठैः। अतिशयितभुवनमद्धुतमभ्युदयं फलति सद्धर्मः ।।१३५।।
= सल्लेखनादिसे उपार्जन किया हुआ समीचीन धर्मप्रतिष्ठा धन आज्ञा और ऐश्वर्यसे तथा सेना नौकर-चाकर और काम भोगोंकी बहुलतासे लोकातिशयी अद्भुत अभ्युदयको फलता है।
(लौकिक सुख)
धवला पुस्तक संख्या १/१,१,१/५६/६ तत्राभ्युदयसुखं नाम सातादिप्रशस्तकर्म-तीव्रानुभागो दयजनितेन्द्रप्रतीन्द्र-सामानिकत्रायस्त्रिंशदादिवे-चक्रवर्तिबलदेवनारायणार्धमण्डलीक-मण्डलीक-महामण्डलीक-राजाधिराज-महाराजाधिराज-परमेश्वरादि-दिव्यमानुषसुखम्।
= साता वेदनीय प्रशस्त कर्म प्रकृतियोंके तीव्र अनुभागके उदयसे उत्पन्न हुआ जो-इन्द्र, प्रतीन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिंश आदि देव सम्बन्धी दिव्य सुख; और चक्रवर्त्ती, बलदेव, नारायण, अर्धमण्डलीक, मण्डलीक, महामण्डलीक, राजाधिराज, महाराजाधिराज, परमेश्वर (तीर्थंकर) आदि सम्बन्धी मानुष सुखको अभ्युदय सुख कहते हैं।
(धवला पुस्तक संख्या १/१,१,१/गा.४५/५८)।