भगीरथ: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
| == सिद्धांतकोष से == | ||
म.पु./48/श्लोक-भगलिदेश के राजसिंह विक्रम का दोहता था। सगर चक्रवर्ती ने इसको राज्य दिया था (127)। सगर चक्रवर्ती के मोक्ष के समय इन्होंने दीक्षा धारण कर गंगा के तट पर योग धारण किया। तब देवों ने इनके चरणों का प्रक्षालन किया, वह जल गंगा नदी में मिल गया, इसी से गंगा नदी तीर्थ कहलाने लगी। वहीं से आप मोक्ष पधारे (138-141)। प.पु./5 श्लोक नं. के अनुसार सगर चक्रवर्ती का पुत्र था। (254,281) भगवान् के मुख से अपने पूर्व भव सुनकर मुनियों में मुखिया बन योग्य पद प्राप्त किया (294)। | |||
<noinclude> | |||
[[ | [[ भगवान् | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[Category:भ]] | [[ भट्ट (प्रभाकर) मत | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | |||
[[Category: भ]] | |||
== पुराणकोष से == | |||
<p id="1">(1) एक विद्याधर । निमितज्ञ ने राजा जरासन्ध की पुत्री केतुमती को पिशाच-बाधा दूर करने वाले को राजगृह के राजा का घात करने वाले का पिता बताया था । दैवयोग से वसुदेव ने केतुमती के पिशाच का निग्रह कर केतुमती को स्वस्थ किया । निमितज्ञ के कथनानुसार इस घटना को देखने वाले राजपुरुष वसुदेव को अपने राजा का हन्ता जानकर उसे मारने वधस्थान ले गये किन्तु इस विद्याधर ने वध होने के पहले ही वसुदेव को उनसे छीन लिया तथा उसे लेकर वह आकाश में चला गया था । अन्त में वसुदेव को इसने विजयार्ध पर्वत के गन्धसमृद्ध नगर में ले जाकर उसको अपनी दुहिता प्रभावती विवाह दी था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 30.45-55 </span></p> | |||
<p id="2">(2) भगलि देश के राजा सिंहविक्रम की पुत्री विदर्भा और चक्रवर्ती सगर का पुत्र । नागेन्द्र की क्रोधाग्नि से इसके अन्य भाई तो भस्म हो गये थे किन्तु भीम और यह वहाँ न रहने से दोनों बच गये थे । सगर इसे राज्य देकर दृढ़धर्मा केवली से दीक्षित हो गया था । इसने भी वरदत्त को राज्य देकर कैलास पर्वत पर महामुनि शिवगुप्त से दीक्षा ले ली थी और गंगातट पर प्रतिमा योग धारण कर लिया था । अन्त में देह त्यागकर इसने निर्वाण प्राप्त किया । इन्द्र ने क्षीरसागर के जल से इसका अभिषेक किया था । अभिषेक का जल गंगा में जाकर मिल जाने से गंगा नदी तीर्थ मानी जाने लगी । <span class="GRef"> महापुराण 48.127-128, 138-141, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 5.252-253 </span></p> | |||
<noinclude> | |||
[[ भगवान् | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ भट्ट (प्रभाकर) मत | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: पुराण-कोष]] | |||
[[Category: भ]] |
Revision as of 21:44, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से == म.पु./48/श्लोक-भगलिदेश के राजसिंह विक्रम का दोहता था। सगर चक्रवर्ती ने इसको राज्य दिया था (127)। सगर चक्रवर्ती के मोक्ष के समय इन्होंने दीक्षा धारण कर गंगा के तट पर योग धारण किया। तब देवों ने इनके चरणों का प्रक्षालन किया, वह जल गंगा नदी में मिल गया, इसी से गंगा नदी तीर्थ कहलाने लगी। वहीं से आप मोक्ष पधारे (138-141)। प.पु./5 श्लोक नं. के अनुसार सगर चक्रवर्ती का पुत्र था। (254,281) भगवान् के मुख से अपने पूर्व भव सुनकर मुनियों में मुखिया बन योग्य पद प्राप्त किया (294)।
पुराणकोष से
(1) एक विद्याधर । निमितज्ञ ने राजा जरासन्ध की पुत्री केतुमती को पिशाच-बाधा दूर करने वाले को राजगृह के राजा का घात करने वाले का पिता बताया था । दैवयोग से वसुदेव ने केतुमती के पिशाच का निग्रह कर केतुमती को स्वस्थ किया । निमितज्ञ के कथनानुसार इस घटना को देखने वाले राजपुरुष वसुदेव को अपने राजा का हन्ता जानकर उसे मारने वधस्थान ले गये किन्तु इस विद्याधर ने वध होने के पहले ही वसुदेव को उनसे छीन लिया तथा उसे लेकर वह आकाश में चला गया था । अन्त में वसुदेव को इसने विजयार्ध पर्वत के गन्धसमृद्ध नगर में ले जाकर उसको अपनी दुहिता प्रभावती विवाह दी था । हरिवंशपुराण 30.45-55
(2) भगलि देश के राजा सिंहविक्रम की पुत्री विदर्भा और चक्रवर्ती सगर का पुत्र । नागेन्द्र की क्रोधाग्नि से इसके अन्य भाई तो भस्म हो गये थे किन्तु भीम और यह वहाँ न रहने से दोनों बच गये थे । सगर इसे राज्य देकर दृढ़धर्मा केवली से दीक्षित हो गया था । इसने भी वरदत्त को राज्य देकर कैलास पर्वत पर महामुनि शिवगुप्त से दीक्षा ले ली थी और गंगातट पर प्रतिमा योग धारण कर लिया था । अन्त में देह त्यागकर इसने निर्वाण प्राप्त किया । इन्द्र ने क्षीरसागर के जल से इसका अभिषेक किया था । अभिषेक का जल गंगा में जाकर मिल जाने से गंगा नदी तीर्थ मानी जाने लगी । महापुराण 48.127-128, 138-141, पद्मपुराण 5.252-253