अरति प्रकृति: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या ८/९/३८५/१३ यदुदयाद्देशादिप्वौत्सुक्यं...) |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
[[सर्वार्थसिद्धि]] अध्याय संख्या ८/९/३८५/१३ यदुदयाद्देशादिप्वौत्सुक्यं सा रतिः। अरतिस्तद्विपरीता।<br>= जिसके उदयसे देश आदिमें उत्सुकता होती है, वह रति है। अरति इससे विपरीत है।< | [[सर्वार्थसिद्धि]] अध्याय संख्या ८/९/३८५/१३ यदुदयाद्देशादिप्वौत्सुक्यं सा रतिः। अरतिस्तद्विपरीता।<br> | ||
<p class="HindiSentence">= जिसके उदयसे देश आदिमें उत्सुकता होती है, वह रति है। अरति इससे विपरीत है।</p> | |||
([[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या ८/९/४/५७४/१७) ([[धवला]] पुस्तक संख्या १२/४,२,८,१०/२८५/६)<br> | |||
[[Category:अ]] | |||
[[Category:सर्वार्थसिद्धि]] | |||
[[Category:राजवार्तिक]] | |||
[[Category:धवला]] |
Revision as of 01:31, 8 May 2009
सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या ८/९/३८५/१३ यदुदयाद्देशादिप्वौत्सुक्यं सा रतिः। अरतिस्तद्विपरीता।
= जिसके उदयसे देश आदिमें उत्सुकता होती है, वह रति है। अरति इससे विपरीत है।
( राजवार्तिक अध्याय संख्या ८/९/४/५७४/१७) (धवला पुस्तक संख्या १२/४,२,८,१०/२८५/६)