मनुष्य व्यवहार: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
प्र.सां./पं. जयचन्द्र/94 ‘मैं मनुष्य हूँ, शरीरादि की समस्त क्रियाओं को मैं करता हूँ, त्री, पुत्र धनादिक के ग्रहण-त्याग का मैं स्वामी हूँ’ इत्यादि मानना सो मनुष्य व्यवहार है। | |||
[[मनुष्य | | <noinclude> | ||
[[ मनुष्य | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[Category:म]] | [[ मनुष्यक्षेत्र | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | |||
[[Category: म]] |
Revision as of 21:45, 5 July 2020
प्र.सां./पं. जयचन्द्र/94 ‘मैं मनुष्य हूँ, शरीरादि की समस्त क्रियाओं को मैं करता हूँ, त्री, पुत्र धनादिक के ग्रहण-त्याग का मैं स्वामी हूँ’ इत्यादि मानना सो मनुष्य व्यवहार है।