व्यंजन शुद्धि: Difference between revisions
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<p>भ. आ./वि./ | <p>भ. आ./वि./113/261/10 <span class="SanskritText">तत्र व्यंजनशुद्धिर्नाम यथा गणधरादिभिर्द्वात्रिंशद्दोषवर्जितानि सूत्राणि कृतानि तेषां तथैव पाठः । शब्दश्रुतस्यापि व्यजते ज्ञायते अनेनेति ग्रहे ज्ञानशब्देन गृहीतत्वात् तन्मूलं ही श्रुतज्ञानं ।</span> = <span class="HindiText">गणधारादि आचार्यों ने बत्तीस दोषों से रहित सूत्रों का निर्माण किया है, उनको दोष रहित पढ़ना व्यंजन शुद्धि है । शब्द के द्वारा ही हम वस्तु को जान लेते हैं । ज्ञानोत्पत्ति के लिए शब्द कारण है । समस्त श्रुतज्ञान शब्द की भित्ति पर खड़ा हुआ है । अतः शब्दों को ‘ज्ञायतेऽनेन’ इस विग्रह से ज्ञान कह सकते हैं ।–(विशेष देखें [[ उभय शुद्धि ]]) । </span></p> | ||
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Revision as of 21:47, 5 July 2020
भ. आ./वि./113/261/10 तत्र व्यंजनशुद्धिर्नाम यथा गणधरादिभिर्द्वात्रिंशद्दोषवर्जितानि सूत्राणि कृतानि तेषां तथैव पाठः । शब्दश्रुतस्यापि व्यजते ज्ञायते अनेनेति ग्रहे ज्ञानशब्देन गृहीतत्वात् तन्मूलं ही श्रुतज्ञानं । = गणधारादि आचार्यों ने बत्तीस दोषों से रहित सूत्रों का निर्माण किया है, उनको दोष रहित पढ़ना व्यंजन शुद्धि है । शब्द के द्वारा ही हम वस्तु को जान लेते हैं । ज्ञानोत्पत्ति के लिए शब्द कारण है । समस्त श्रुतज्ञान शब्द की भित्ति पर खड़ा हुआ है । अतः शब्दों को ‘ज्ञायतेऽनेन’ इस विग्रह से ज्ञान कह सकते हैं ।–(विशेष देखें उभय शुद्धि ) ।