जय: Difference between revisions
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<li class="HindiText"> (वृ.कथा कोश/कथा नं. | <li class="HindiText"> (वृ.कथा कोश/कथा नं.6/पृ.) सिंहलद्वीप के राज गगनादित्य का पुत्र था (17) पिता की मृत्यु के पश्चात् उसने एक मित्र उज्जयिनी नगरी के राजा के पास में रहने लगा। वहां एक दिन भोजन करते समय अपने भाई के मुख से सुना कि यह भोजन ‘विषान्न’ है। ‘विषान्न’ कहने से उसका तात्पर्य पौष्टिक था, पर वह इसका अर्थ विषमिश्रित लगा बैठा और इसीलिए केवल विष खाने की कल्पना के कारण मर गया।17-18।</li> | ||
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<p id="1">(1) भगवान् वृषभदेव के एक गणधर । <span class="GRef"> महापुराण 43.65 </span></p> | |||
<p id="2">(2) ग्यारह अंग और दश पूर्व के ज्ञाता ग्यारह मुनियों मे चौथे मुनि । में महावीर के मोक्ष जाने के एक सौ बासठ वर्ष पश्चात् एक सौ तिरासी वर्ष के मध्य में हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण 2. 143, 76. 522, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1. 62, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1. 45-47 </span></p> | |||
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<p id="5">(5) राजा धृतराष्ट्र और गान्धारी का चौसठवाँ पुत्र । <span class="GRef"> महापुराण 8.200 </span></p> | |||
<p id="6">(6) विजयार्ध की उत्तरश्रेणी का इकतालीसवाँ नगर । <span class="GRef"> महापुराण 19. 84 </span></p> | |||
<p id="7">(7) नन्दनपुर का राजा । इसने विमलवाहन तीर्थंकर को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । <span class="GRef"> महापुराण 59-42-43 </span></p> | |||
<p id="8">(8) कृष्ण का एक योद्धा एवं भाई । <span class="GRef"> महापुराण 71. 73, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 50. 115 </span></p> | |||
<p id="9">(9) सोमप्रभ राजा का पुत्र जयकुमार । अकम्पन की पुत्री सुलोचना ने इसे पति के रूप में वरण किया था । <span class="GRef"> पांडवपुराण 3. 55-67 </span></p> | |||
<p id="10">(10) विद्याधर नमि का कान्तिमान् पुत्र । इसका संक्षिप्त नाम जय था । इसके दस से अधिक भाई थे और दो बहिनें थी । <span class="GRef"> महापुराण 43. 50, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 22.108 </span></p> | |||
<p id="11">(11) आगामी इक्कीसवें तीर्थंकर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 561 </span></p> | |||
<p id="12">(12) तीर्थंकर अनन्तनाथ के प्रथम गणधर । ये सात ऋद्धियों से युक्त तथा शास्त्रों के पारगामी थे । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.348 </span></p> | |||
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Revision as of 21:41, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
न्याय सम्बन्धी वाद में जय-पराजय व्यवस्था–देखें न्याय - 2।
- भाविकालीन 21वें तीर्थंकर–देखें तीर्थंकर - 5;
- (वृ.कथा कोश/कथा नं.6/पृ.) सिंहलद्वीप के राज गगनादित्य का पुत्र था (17) पिता की मृत्यु के पश्चात् उसने एक मित्र उज्जयिनी नगरी के राजा के पास में रहने लगा। वहां एक दिन भोजन करते समय अपने भाई के मुख से सुना कि यह भोजन ‘विषान्न’ है। ‘विषान्न’ कहने से उसका तात्पर्य पौष्टिक था, पर वह इसका अर्थ विषमिश्रित लगा बैठा और इसीलिए केवल विष खाने की कल्पना के कारण मर गया।17-18।
पुराणकोष से
(1) भगवान् वृषभदेव के एक गणधर । महापुराण 43.65
(2) ग्यारह अंग और दश पूर्व के ज्ञाता ग्यारह मुनियों मे चौथे मुनि । में महावीर के मोक्ष जाने के एक सौ बासठ वर्ष पश्चात् एक सौ तिरासी वर्ष के मध्य में हुए थे । महापुराण 2. 143, 76. 522, हरिवंशपुराण 1. 62, वीरवर्द्धमान चरित्र 1. 45-47
(3) शलाका-पुरुष एवं ग्यारहवां चक्रवर्त्ती । हरिवंशपुराण 60. 287, वीरवर्द्धमान चरित्र 18. 101, 110
(4) एक नृप । यह राम के पक्ष का अत्यन्त बलवान योद्धा था । पद्मपुराण 60. 58-59
(5) राजा धृतराष्ट्र और गान्धारी का चौसठवाँ पुत्र । महापुराण 8.200
(6) विजयार्ध की उत्तरश्रेणी का इकतालीसवाँ नगर । महापुराण 19. 84
(7) नन्दनपुर का राजा । इसने विमलवाहन तीर्थंकर को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । महापुराण 59-42-43
(8) कृष्ण का एक योद्धा एवं भाई । महापुराण 71. 73, हरिवंशपुराण 50. 115
(9) सोमप्रभ राजा का पुत्र जयकुमार । अकम्पन की पुत्री सुलोचना ने इसे पति के रूप में वरण किया था । पांडवपुराण 3. 55-67
(10) विद्याधर नमि का कान्तिमान् पुत्र । इसका संक्षिप्त नाम जय था । इसके दस से अधिक भाई थे और दो बहिनें थी । महापुराण 43. 50, हरिवंशपुराण 22.108
(11) आगामी इक्कीसवें तीर्थंकर । हरिवंशपुराण 60. 561
(12) तीर्थंकर अनन्तनाथ के प्रथम गणधर । ये सात ऋद्धियों से युक्त तथा शास्त्रों के पारगामी थे । हरिवंशपुराण 60.348