जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश: Difference between revisions
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भाग १<br>(अ-औ)<br>क्षु.जिनेन्द्र वर्णी<br>भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन<br>पाँचवाँ संस्कर : १९९६<br>मूल्य : एक सौ बीस रूपये<br>भारतीय ज्ञानपीठ<br>(स्थापना : फाल्गुन कृष्ण ९, वीर नि. सं. २४७० : विक्रम सं. २००० : १८ फरवरी १९४४)<br>स्व. पुण्यश्लोका माता मूर्तिदेवी की पवित्र स्मृति में<br>स्व. साहू शान्तिप्रसाद जैन द्वारा संस्थापित<br>एवं<br>उनकी धर्मपत्नी स्वर्गीय श्रीमती रमा जैन द्वारा सम्पोषित<br>मूर्तिदेवी जैन ग्रन्थमाला<br>इस ग्रन्थमाला के अन्तर्गत प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, हिन्दी, कन्नड़, तमिल आदि प्राचीन भाषाओं में उपलब्ध<br>आगमिक, दार्शनिक, पौराणिक, साहित्यिक, ऐतिहासिक आदि विविध-विषयक जैन-साहित्य का अनुसन्धानपूर्ण<br>सम्पादन तथा उसका मूल और यथासम्भव अनुवाद आदि के साथ प्रकाशन हो रहा है। जैन-भण्डारों की सूचियाँ, शिलालेख-संग्रह, कला एवं स्थापत्य, विशिष्ट विद्वानों के अध्ययन-ग्रन्थ और लोकहितकारी जैन साहित्य-ग्रन्थ भी इसी ग्रन्थमाला मे प्रकाशित हो रहे हैं।<br>ग्रन्थमाला सम्पादक : प्रथम संस्करण<br>डॉ. हीरालाल जैन, एम.ए., डी.लिट्.<br>डॉ. आ.ने.उपाध्ये, एम.ए., डी.लिट्<br>प्रकाशक<br>भारतीय ज्ञानपीठ<br>१८, इन्स्टीट्यूशनल एरिया, लोदी रोड, नयी दिल्ली-११०००३<br>मुद्रक : विकास ऑफसेट नवीन शाहदरा, दिल्ली-११००३२<br>सर्वाधिकार सुरक्षित<br>जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश<br>(क्षु. जिनेन्द्र वर्णी)<br>व्यापिनीं सर्वलोकेषु सर्वतत्त्वप्रकाशिनीम्।<br>अनेकान्तनयोपेतां पक्षपातविनाशिनीम् ।। १ ।।<br>अज्ञानतमसंहर्त्रीं मोह-शोकनिवारिणीम्।<br>देह्यद्वैतप्रभां मह्यं विमलाभां सरस्वति! ।। २ ।।<br>[अं]<br>[[Category:ज]] | भाग १<br>(अ-औ)<br>क्षु.जिनेन्द्र वर्णी<br>भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन<br>पाँचवाँ संस्कर : १९९६<br>मूल्य : एक सौ बीस रूपये<br>भारतीय ज्ञानपीठ<br>(स्थापना : फाल्गुन कृष्ण ९, वीर नि. सं. २४७० : विक्रम सं. २००० : १८ फरवरी १९४४)<br>स्व. पुण्यश्लोका माता मूर्तिदेवी की पवित्र स्मृति में<br>स्व. साहू शान्तिप्रसाद जैन द्वारा संस्थापित<br>एवं<br>उनकी धर्मपत्नी स्वर्गीय श्रीमती रमा जैन द्वारा सम्पोषित<br>मूर्तिदेवी जैन ग्रन्थमाला<br>इस ग्रन्थमाला के अन्तर्गत प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, हिन्दी, कन्नड़, तमिल आदि प्राचीन भाषाओं में उपलब्ध<br>आगमिक, दार्शनिक, पौराणिक, साहित्यिक, ऐतिहासिक आदि विविध-विषयक जैन-साहित्य का अनुसन्धानपूर्ण<br>सम्पादन तथा उसका मूल और यथासम्भव अनुवाद आदि के साथ प्रकाशन हो रहा है। जैन-भण्डारों की सूचियाँ, शिलालेख-संग्रह, कला एवं स्थापत्य, विशिष्ट विद्वानों के अध्ययन-ग्रन्थ और लोकहितकारी जैन साहित्य-ग्रन्थ भी इसी ग्रन्थमाला मे प्रकाशित हो रहे हैं।<br>ग्रन्थमाला सम्पादक : प्रथम संस्करण<br>डॉ. हीरालाल जैन, एम.ए., डी.लिट्.<br>डॉ. आ.ने.उपाध्ये, एम.ए., डी.लिट्<br>प्रकाशक<br>भारतीय ज्ञानपीठ<br>१८, इन्स्टीट्यूशनल एरिया, लोदी रोड, नयी दिल्ली-११०००३<br>मुद्रक : विकास ऑफसेट नवीन शाहदरा, दिल्ली-११००३२<br>सर्वाधिकार सुरक्षित<br>जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश<br>(क्षु. जिनेन्द्र वर्णी)<br>व्यापिनीं सर्वलोकेषु सर्वतत्त्वप्रकाशिनीम्।<br>अनेकान्तनयोपेतां पक्षपातविनाशिनीम् ।। १ ।।<br>अज्ञानतमसंहर्त्रीं मोह-शोकनिवारिणीम्।<br>देह्यद्वैतप्रभां मह्यं विमलाभां सरस्वति! ।। २ ।।<br>[अं]<br>[[Category:ज]] |
Revision as of 08:13, 1 May 2009
भाग १
(अ-औ)
क्षु.जिनेन्द्र वर्णी
भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
पाँचवाँ संस्कर : १९९६
मूल्य : एक सौ बीस रूपये
भारतीय ज्ञानपीठ
(स्थापना : फाल्गुन कृष्ण ९, वीर नि. सं. २४७० : विक्रम सं. २००० : १८ फरवरी १९४४)
स्व. पुण्यश्लोका माता मूर्तिदेवी की पवित्र स्मृति में
स्व. साहू शान्तिप्रसाद जैन द्वारा संस्थापित
एवं
उनकी धर्मपत्नी स्वर्गीय श्रीमती रमा जैन द्वारा सम्पोषित
मूर्तिदेवी जैन ग्रन्थमाला
इस ग्रन्थमाला के अन्तर्गत प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, हिन्दी, कन्नड़, तमिल आदि प्राचीन भाषाओं में उपलब्ध
आगमिक, दार्शनिक, पौराणिक, साहित्यिक, ऐतिहासिक आदि विविध-विषयक जैन-साहित्य का अनुसन्धानपूर्ण
सम्पादन तथा उसका मूल और यथासम्भव अनुवाद आदि के साथ प्रकाशन हो रहा है। जैन-भण्डारों की सूचियाँ, शिलालेख-संग्रह, कला एवं स्थापत्य, विशिष्ट विद्वानों के अध्ययन-ग्रन्थ और लोकहितकारी जैन साहित्य-ग्रन्थ भी इसी ग्रन्थमाला मे प्रकाशित हो रहे हैं।
ग्रन्थमाला सम्पादक : प्रथम संस्करण
डॉ. हीरालाल जैन, एम.ए., डी.लिट्.
डॉ. आ.ने.उपाध्ये, एम.ए., डी.लिट्
प्रकाशक
भारतीय ज्ञानपीठ
१८, इन्स्टीट्यूशनल एरिया, लोदी रोड, नयी दिल्ली-११०००३
मुद्रक : विकास ऑफसेट नवीन शाहदरा, दिल्ली-११००३२
सर्वाधिकार सुरक्षित
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
(क्षु. जिनेन्द्र वर्णी)
व्यापिनीं सर्वलोकेषु सर्वतत्त्वप्रकाशिनीम्।
अनेकान्तनयोपेतां पक्षपातविनाशिनीम् ।। १ ।।
अज्ञानतमसंहर्त्रीं मोह-शोकनिवारिणीम्।
देह्यद्वैतप्रभां मह्यं विमलाभां सरस्वति! ।। २ ।।
[अं]