सदासुखदास: Difference between revisions
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<span class="HindiText">जयपुर निवासी एक विरक्त पण्डित थे। दिगम्बर आम्नाय में थे। पिता का नाम दुलीचन्द था। काशलीवाल गोत्रीय थे। वंश का नाम 'डेडाराज' था। इनका जन्म वि. | <span class="HindiText">जयपुर निवासी एक विरक्त पण्डित थे। दिगम्बर आम्नाय में थे। पिता का नाम दुलीचन्द था। काशलीवाल गोत्रीय थे। वंश का नाम 'डेडाराज' था। इनका जन्म वि.1852 में हुआ था। राजकीय स्वतन्त्र संस्था (कापड़द्वारे) में कार्य करते थे। कुटुम्ब बीसपन्थी था, पर ये स्वयं तेरापंथी थे। इनके गुरु का नाम पं.मुन्नालाल था। इनके पं.पन्नालाल संघी, नाथूलाल जी दोशी, पं.पारसदास जी निगोत्या सहपाठी थे। इनको विराग की इतनी रुचि थी कि इन्होंने राजकीय संस्था से 8) मासिक की बजाय 6) मासिक लेना स्वीकार किया था। ताकि 2 घण्टे शास्त्र स्वाध्याय के लिए मिल जाये। कृति‒भगवती आराधना की भाषा वचनिका, नाटक समयसार टीका, तत्त्वार्थ सूत्र की लघु टी., रत्नकरण्ड श्रावकाचार की टीका, अकलंक स्तोत्र, मृत्यु महोत्सव, नित्य नियम पूजा संस्कृत टीका तथा आरावासी पं.परमेष्ठीदास कृत अर्थप्रकाशिका का शोधन तथा उसमें 4000 श्लोकों की वृद्धि की। समय‒जन्म वि.1852, समाधि वि.1923 (ई.1795-1866)। (ती./4/294)।</span> | ||
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जयपुर निवासी एक विरक्त पण्डित थे। दिगम्बर आम्नाय में थे। पिता का नाम दुलीचन्द था। काशलीवाल गोत्रीय थे। वंश का नाम 'डेडाराज' था। इनका जन्म वि.1852 में हुआ था। राजकीय स्वतन्त्र संस्था (कापड़द्वारे) में कार्य करते थे। कुटुम्ब बीसपन्थी था, पर ये स्वयं तेरापंथी थे। इनके गुरु का नाम पं.मुन्नालाल था। इनके पं.पन्नालाल संघी, नाथूलाल जी दोशी, पं.पारसदास जी निगोत्या सहपाठी थे। इनको विराग की इतनी रुचि थी कि इन्होंने राजकीय संस्था से 8) मासिक की बजाय 6) मासिक लेना स्वीकार किया था। ताकि 2 घण्टे शास्त्र स्वाध्याय के लिए मिल जाये। कृति‒भगवती आराधना की भाषा वचनिका, नाटक समयसार टीका, तत्त्वार्थ सूत्र की लघु टी., रत्नकरण्ड श्रावकाचार की टीका, अकलंक स्तोत्र, मृत्यु महोत्सव, नित्य नियम पूजा संस्कृत टीका तथा आरावासी पं.परमेष्ठीदास कृत अर्थप्रकाशिका का शोधन तथा उसमें 4000 श्लोकों की वृद्धि की। समय‒जन्म वि.1852, समाधि वि.1923 (ई.1795-1866)। (ती./4/294)।