सम्यक्चारित्र: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
| == सिद्धांतकोष से == | ||
देखें [[ चारित्र ]]। | |||
[[सम्यक् | | <noinclude> | ||
[[ सम्यक् व मिथ्या नय | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[Category:स]] | [[ सम्यक्त्व | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | |||
[[Category: स]] | |||
== पुराणकोष से == | |||
<p> सम्यग्दर्शन सहित शुभ क्रियाओं में प्रवृत्ति । इससे समताभाव प्रकट होता है । इसमें पंच महाव्रत, पंच समिति और तीन गुणियों का पालन होने से यह तेरह प्रकार का होता है । ऐसा चारित्र समस्त कर्मों का काटने वाला होता है । इसमें मुनियों के लिए परपीडा से रहित तथा श्रद्धा आदि गुणों से सहित दान दिया जाता है तथा विनय, नियम, शील, ज्ञान, दया, दम और मोक्ष के लिए ध्यान किया जाता है । यह सम्यक्दर्शन और सम्यग्ज्ञान के अभाव में कार्यकारी नहीं होता । सम्यक्दर्शन और सम्यग्ज्ञान इसके बिना भी हो जाते हैं किन्तु इसके लिए उन दोनों की अपेक्षा होती है । ऐसा चारित्र निर्ग्रन्थ महाव्रती मुनि धारण करते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 24. 119-122, 74.543, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 105.121-222, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10.157, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 23.63 </span></p> | |||
<noinclude> | |||
[[ सम्यक् व मिथ्या नय | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ सम्यक्त्व | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: पुराण-कोष]] | |||
[[Category: स]] |
Revision as of 21:48, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से == देखें चारित्र ।
पुराणकोष से
सम्यग्दर्शन सहित शुभ क्रियाओं में प्रवृत्ति । इससे समताभाव प्रकट होता है । इसमें पंच महाव्रत, पंच समिति और तीन गुणियों का पालन होने से यह तेरह प्रकार का होता है । ऐसा चारित्र समस्त कर्मों का काटने वाला होता है । इसमें मुनियों के लिए परपीडा से रहित तथा श्रद्धा आदि गुणों से सहित दान दिया जाता है तथा विनय, नियम, शील, ज्ञान, दया, दम और मोक्ष के लिए ध्यान किया जाता है । यह सम्यक्दर्शन और सम्यग्ज्ञान के अभाव में कार्यकारी नहीं होता । सम्यक्दर्शन और सम्यग्ज्ञान इसके बिना भी हो जाते हैं किन्तु इसके लिए उन दोनों की अपेक्षा होती है । ऐसा चारित्र निर्ग्रन्थ महाव्रती मुनि धारण करते हैं । महापुराण 24. 119-122, 74.543, पद्मपुराण 105.121-222, हरिवंशपुराण 10.157, पांडवपुराण 23.63