आगाल: Difference between revisions
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स.सा./मी.प्र.८८/१२३/९ द्वितीयस्थितिद्रव्यस्यापकर्षणवशात्प्रथमस्थितावामगमागालः। | स.सा./मी.प्र.८८/१२३/९ द्वितीयस्थितिद्रव्यस्यापकर्षणवशात्प्रथमस्थितावामगमागालः। | ||
= द्वितीय स्थितिके निषेकनिकौ अपकर्षण करि प्रथम स्थितिके निषेकनि विषै प्राप्त करना ताका नाम आगाल है। | |||
२. प्रत्यागालका लक्षण | |||
[[लब्धिसार]] / [[लब्धिसार जीवतत्त्व प्रदीपिका | जीवतत्त्व प्रदीपिका ]] / मूल या टीका गाथा संख्या ८८/१२३/९ प्रथमस्थितिद्रव्यस्योत्कर्षवशाद् द्वितीयस्थितौ गमनं प्रत्यागाल इत्युच्यते। | |||
= प्रथम स्थितिके निषैकनिके द्रव्य कौं उत्कर्षण करि द्वितीय स्थितिके निषैकनि विषैं प्राप्त करना ताका नाम प्रत्यागाल है। | |||
जैन सन्देश १३,१,५५ में श्री रत्नचन्द मुख्तयार। नोट - अन्तरकरण हो जानेके पश्चात् पुरातन मिथ्यात्व कर्म तो प्रथम व द्वितीय स्थितिमे विभाजित हो जाता है, परन्तु नया बन्धा कर्म द्वितीय स्थितमें पड़ता है। उसमें-से कुछ द्रव्य अपकर्षण द्वारा प्रथम स्थितिके निषेकोंको प्राप्त होता है उसको आगाल कहते है। फिर इस प्रथम स्थिति को प्राप्त हुए द्रव्योंमें-से कुछ द्रव्य उत्कर्षण द्वारा पुनः द्वितीय स्थिति के निषेकोंको प्राप्त होता है उसको प्रत्यागाल कहते हैं। |
Revision as of 07:50, 8 May 2009
स.सा./मी.प्र.८८/१२३/९ द्वितीयस्थितिद्रव्यस्यापकर्षणवशात्प्रथमस्थितावामगमागालः। = द्वितीय स्थितिके निषेकनिकौ अपकर्षण करि प्रथम स्थितिके निषेकनि विषै प्राप्त करना ताका नाम आगाल है। २. प्रत्यागालका लक्षण लब्धिसार / जीवतत्त्व प्रदीपिका / मूल या टीका गाथा संख्या ८८/१२३/९ प्रथमस्थितिद्रव्यस्योत्कर्षवशाद् द्वितीयस्थितौ गमनं प्रत्यागाल इत्युच्यते। = प्रथम स्थितिके निषैकनिके द्रव्य कौं उत्कर्षण करि द्वितीय स्थितिके निषैकनि विषैं प्राप्त करना ताका नाम प्रत्यागाल है। जैन सन्देश १३,१,५५ में श्री रत्नचन्द मुख्तयार। नोट - अन्तरकरण हो जानेके पश्चात् पुरातन मिथ्यात्व कर्म तो प्रथम व द्वितीय स्थितिमे विभाजित हो जाता है, परन्तु नया बन्धा कर्म द्वितीय स्थितमें पड़ता है। उसमें-से कुछ द्रव्य अपकर्षण द्वारा प्रथम स्थितिके निषेकोंको प्राप्त होता है उसको आगाल कहते है। फिर इस प्रथम स्थिति को प्राप्त हुए द्रव्योंमें-से कुछ द्रव्य उत्कर्षण द्वारा पुनः द्वितीय स्थिति के निषेकोंको प्राप्त होता है उसको प्रत्यागाल कहते हैं।