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१. ([[धवला]] पुस्तक संख्या ५/प्र.२७) Base (of Logarithm)<br>१. आधार सामान्यका लक्षण<br>[[सर्वार्थसिद्धि]] अध्याय संख्या ५/१२/२७७/६ धर्मादीनां पुनरधिकरणमाकाशमित्युच्यते व्यवहारनयवशात्। एव भूतनयापेक्षया तु सर्वाणि स्वप्रतिष्ठान्येव।<br>= धर्मादिक द्रव्योंका आकाश अधिकरण है वह व्यवहार नयकी अपेक्षा कहा जाता है। एवंभूत नयकी अपेक्षा तो सब द्रव्य स्वप्रतिष्ठ ही हैं।<br>२. आधार सामान्य के भेद व लक्षण<br>[[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड]] / [[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका ]] टीका गाथा संख्या ५८३ में उद्धृत “औपश्लेषिको वैषयिकोऽभिव्यापक इत्यपिः आधारस्त्रिविधः प्रोक्तः घटाकाशतिलेषु च।” <br>= आधार तीन प्रकार है - औपश्लेषिक, वैषयिक, और अभिव्यापक। १. तहाँ चटाई विषै कुमार सोवे है ऐसा कहिए तहाँ औपश्लेषिक आधार जानना। २. बहुरि आकाश विषै घटादिक द्रव्य तिष्ठै हैं ऐसा कहिए तहाँ वैषयिक आधार जानना। ३. बहुरि तिल विषै तैल है ऐसा कहिए तहाँ अभिव्यापक आधार जानना।<br>• आधार आधेय भाव - | १. ([[धवला]] पुस्तक संख्या ५/प्र.२७) Base (of Logarithm)<br>१. आधार सामान्यका लक्षण<br>[[सर्वार्थसिद्धि]] अध्याय संख्या ५/१२/२७७/६ धर्मादीनां पुनरधिकरणमाकाशमित्युच्यते व्यवहारनयवशात्। एव भूतनयापेक्षया तु सर्वाणि स्वप्रतिष्ठान्येव।<br>= धर्मादिक द्रव्योंका आकाश अधिकरण है वह व्यवहार नयकी अपेक्षा कहा जाता है। एवंभूत नयकी अपेक्षा तो सब द्रव्य स्वप्रतिष्ठ ही हैं।<br>२. आधार सामान्य के भेद व लक्षण<br>[[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड]] / [[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका ]] टीका गाथा संख्या ५८३ में उद्धृत “औपश्लेषिको वैषयिकोऽभिव्यापक इत्यपिः आधारस्त्रिविधः प्रोक्तः घटाकाशतिलेषु च।” <br>= आधार तीन प्रकार है - औपश्लेषिक, वैषयिक, और अभिव्यापक। १. तहाँ चटाई विषै कुमार सोवे है ऐसा कहिए तहाँ औपश्लेषिक आधार जानना। २. बहुरि आकाश विषै घटादिक द्रव्य तिष्ठै हैं ऐसा कहिए तहाँ वैषयिक आधार जानना। ३. बहुरि तिल विषै तैल है ऐसा कहिए तहाँ अभिव्यापक आधार जानना।<br>• आधार आधेय भाव - <b>देखे </b>[[संबंध]] ।<br>[[Category:आ]] <br>[[Category:धवला]] <br>[[Category:सर्वार्थसिद्धि]] <br>[[Category:गोम्मट्टसार जीवकाण्ड]] <br> |
Revision as of 08:25, 2 September 2008
१. (धवला पुस्तक संख्या ५/प्र.२७) Base (of Logarithm)
१. आधार सामान्यका लक्षण
सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या ५/१२/२७७/६ धर्मादीनां पुनरधिकरणमाकाशमित्युच्यते व्यवहारनयवशात्। एव भूतनयापेक्षया तु सर्वाणि स्वप्रतिष्ठान्येव।
= धर्मादिक द्रव्योंका आकाश अधिकरण है वह व्यवहार नयकी अपेक्षा कहा जाता है। एवंभूत नयकी अपेक्षा तो सब द्रव्य स्वप्रतिष्ठ ही हैं।
२. आधार सामान्य के भेद व लक्षण
गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा संख्या ५८३ में उद्धृत “औपश्लेषिको वैषयिकोऽभिव्यापक इत्यपिः आधारस्त्रिविधः प्रोक्तः घटाकाशतिलेषु च।”
= आधार तीन प्रकार है - औपश्लेषिक, वैषयिक, और अभिव्यापक। १. तहाँ चटाई विषै कुमार सोवे है ऐसा कहिए तहाँ औपश्लेषिक आधार जानना। २. बहुरि आकाश विषै घटादिक द्रव्य तिष्ठै हैं ऐसा कहिए तहाँ वैषयिक आधार जानना। ३. बहुरि तिल विषै तैल है ऐसा कहिए तहाँ अभिव्यापक आधार जानना।
• आधार आधेय भाव - देखे संबंध ।