अनंतवीर्य: Difference between revisions
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१. भूतकालीन चौबीसवें तीर्थंकर। - (विशेष परिचय <b>देखे </b>[[तीर्थंकर]] ५) २. भाविकालीन चौबीसवें तीर्थंकर। - (विशेष परिचय दे. तीर्थंकर/५)। ३. म. पु./सर्ग/श्लो. "आप पूर्व के नवमें भवमें सागरदत्त के उग्रसेन नामक पुत्र थे" (८/२२३-२२४) फिर व्याघ्र हुए (८/२२६) फिर सातवें भवमें उत्तरकुरु में मनुष्य हुए (८/९०) वहाँ से फिर छठे भवमें ऐशान स्वर्ग में चित्रांगद नामक देव हुए (९/१८७) फिर पाँचवें भवमें विभीषण राजा के पुत्र वरदत्त हुए (१०/१४९) फिर चौथे भवमें अच्युत स्वर्ग में देव हुए (१०/१७२) फिर तीसरे भवमें जय नामक राजकुमार हुए (११/१०) फिर पूर्व के दूसरे भवमें स्वर्ग में अहमिन्द्र हुए (११/१६०) वर्तमान भवमें ऋषभनाथ भगवान् के पुत्र तथा भरत के छोटे भाई हुए (१६/३) भरतने इन्हें नमस्कार करने को कहा। स्वाभिमानी इन्हों ने नमस्कार करने की बजाय भगवान् के समीप दीक्षा धारण कर ली तथा सर्वप्रथम मोक्ष प्राप्त किया (२४/१८१) अपर नाम महासेन था। (युगपत् सर्वभव ४७/३७१)। ४. (म. पु. ६२/श्लोक) वत्सकावती देश प्रभाकरी नगरी के राजा स्तमितसागर का पुत्र था (४१४) राज्य पाकर नृत्य देखने में आसक्त होनेसे नारद की विनय करना भूल गया (४२२-४३०) क्रुद्ध नारद ने शत्रु दमितारि को युद्धार्थ प्रस्तुत किया (४४३) इसने नर्तकी का वेश बना उसकी लड़की का हरण कर लिया (४६१-४७३) उसके ही चक्रसे उसको मार दिया (४८३-४८४) आगे क्रमसे अर्धचक्री पद प्राप्त किया (५१२) तथा नारायण होने से नरक में गया (६३/२५) यह शान्तिनाथ भगवान् के चक्रायुध नामक प्रथम गणधर का पूर्व का नवम भव है - दे. चक्रायुध। ५. अपरनाम अनन्तरथ - दे. अनंतरथ।<br>[[Category:अ]] | १. भूतकालीन चौबीसवें तीर्थंकर। - (विशेष परिचय <b>देखे </b>[[तीर्थंकर]] ५) २. भाविकालीन चौबीसवें तीर्थंकर। - (विशेष परिचय दे. तीर्थंकर/५)। ३. म. पु./सर्ग/श्लो. "आप पूर्व के नवमें भवमें सागरदत्त के उग्रसेन नामक पुत्र थे" (८/२२३-२२४) फिर व्याघ्र हुए (८/२२६) फिर सातवें भवमें उत्तरकुरु में मनुष्य हुए (८/९०) वहाँ से फिर छठे भवमें ऐशान स्वर्ग में चित्रांगद नामक देव हुए (९/१८७) फिर पाँचवें भवमें विभीषण राजा के पुत्र वरदत्त हुए (१०/१४९) फिर चौथे भवमें अच्युत स्वर्ग में देव हुए (१०/१७२) फिर तीसरे भवमें जय नामक राजकुमार हुए (११/१०) फिर पूर्व के दूसरे भवमें स्वर्ग में अहमिन्द्र हुए (११/१६०) वर्तमान भवमें ऋषभनाथ भगवान् के पुत्र तथा भरत के छोटे भाई हुए (१६/३) भरतने इन्हें नमस्कार करने को कहा। स्वाभिमानी इन्हों ने नमस्कार करने की बजाय भगवान् के समीप दीक्षा धारण कर ली तथा सर्वप्रथम मोक्ष प्राप्त किया (२४/१८१) अपर नाम महासेन था। (युगपत् सर्वभव ४७/३७१)। ४. (म. पु. ६२/श्लोक) वत्सकावती देश प्रभाकरी नगरी के राजा स्तमितसागर का पुत्र था (४१४) राज्य पाकर नृत्य देखने में आसक्त होनेसे नारद की विनय करना भूल गया (४२२-४३०) क्रुद्ध नारद ने शत्रु दमितारि को युद्धार्थ प्रस्तुत किया (४४३) इसने नर्तकी का वेश बना उसकी लड़की का हरण कर लिया (४६१-४७३) उसके ही चक्रसे उसको मार दिया (४८३-४८४) आगे क्रमसे अर्धचक्री पद प्राप्त किया (५१२) तथा नारायण होने से नरक में गया (६३/२५) यह शान्तिनाथ भगवान् के चक्रायुध नामक प्रथम गणधर का पूर्व का नवम भव है - दे. चक्रायुध। ५. अपरनाम अनन्तरथ - दे. अनंतरथ।<br> | ||
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Revision as of 13:30, 1 May 2009
१. भूतकालीन चौबीसवें तीर्थंकर। - (विशेष परिचय देखे तीर्थंकर ५) २. भाविकालीन चौबीसवें तीर्थंकर। - (विशेष परिचय दे. तीर्थंकर/५)। ३. म. पु./सर्ग/श्लो. "आप पूर्व के नवमें भवमें सागरदत्त के उग्रसेन नामक पुत्र थे" (८/२२३-२२४) फिर व्याघ्र हुए (८/२२६) फिर सातवें भवमें उत्तरकुरु में मनुष्य हुए (८/९०) वहाँ से फिर छठे भवमें ऐशान स्वर्ग में चित्रांगद नामक देव हुए (९/१८७) फिर पाँचवें भवमें विभीषण राजा के पुत्र वरदत्त हुए (१०/१४९) फिर चौथे भवमें अच्युत स्वर्ग में देव हुए (१०/१७२) फिर तीसरे भवमें जय नामक राजकुमार हुए (११/१०) फिर पूर्व के दूसरे भवमें स्वर्ग में अहमिन्द्र हुए (११/१६०) वर्तमान भवमें ऋषभनाथ भगवान् के पुत्र तथा भरत के छोटे भाई हुए (१६/३) भरतने इन्हें नमस्कार करने को कहा। स्वाभिमानी इन्हों ने नमस्कार करने की बजाय भगवान् के समीप दीक्षा धारण कर ली तथा सर्वप्रथम मोक्ष प्राप्त किया (२४/१८१) अपर नाम महासेन था। (युगपत् सर्वभव ४७/३७१)। ४. (म. पु. ६२/श्लोक) वत्सकावती देश प्रभाकरी नगरी के राजा स्तमितसागर का पुत्र था (४१४) राज्य पाकर नृत्य देखने में आसक्त होनेसे नारद की विनय करना भूल गया (४२२-४३०) क्रुद्ध नारद ने शत्रु दमितारि को युद्धार्थ प्रस्तुत किया (४४३) इसने नर्तकी का वेश बना उसकी लड़की का हरण कर लिया (४६१-४७३) उसके ही चक्रसे उसको मार दिया (४८३-४८४) आगे क्रमसे अर्धचक्री पद प्राप्त किया (५१२) तथा नारायण होने से नरक में गया (६३/२५) यह शान्तिनाथ भगवान् के चक्रायुध नामक प्रथम गणधर का पूर्व का नवम भव है - दे. चक्रायुध। ५. अपरनाम अनन्तरथ - दे. अनंतरथ।