अन्नप्राशन: Difference between revisions
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<p> गर्भान्वय की त्रेपन क्रियाओं में दसवीं किया । इससे जन्म से सात आठ मास बाद गर्भाधान आदि के समान पूजा-आदि कर शिशु को विधिपूर्वक अन्नाहार कराया जाता है । महापुराण 38. 55-63, 70-76,95, इस क्रिया के लिए ‘‘दिव्यामृतभागी भव’’ ‘‘विजयामृतभागी भव’’ और ‘‘अक्षीणामृतभागी भव’’ ये मंत्र व्यवहृत होते हैं । महापुराण 40.141-142, वृषभदेव ने अपने पुत्र भरत को इसी विवि से प्रथम अन्नाहार कराया था । महापुराण 15.164 देखें [[ | <p> गर्भान्वय की त्रेपन क्रियाओं में दसवीं किया । इससे जन्म से सात आठ मास बाद गर्भाधान आदि के समान पूजा-आदि कर शिशु को विधिपूर्वक अन्नाहार कराया जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 38. 55-63, 70-76,95, </span>इस क्रिया के लिए ‘‘दिव्यामृतभागी भव’’ ‘‘विजयामृतभागी भव’’ और ‘‘अक्षीणामृतभागी भव’’ ये मंत्र व्यवहृत होते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 40.141-142, </span>वृषभदेव ने अपने पुत्र भरत को इसी विवि से प्रथम अन्नाहार कराया था । <span class="GRef"> महापुराण 15.164 </span>देखें [[ गर्भान्वय क्रिया ]]</p> | ||
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Revision as of 21:37, 5 July 2020
गर्भान्वय की त्रेपन क्रियाओं में दसवीं किया । इससे जन्म से सात आठ मास बाद गर्भाधान आदि के समान पूजा-आदि कर शिशु को विधिपूर्वक अन्नाहार कराया जाता है । महापुराण 38. 55-63, 70-76,95, इस क्रिया के लिए ‘‘दिव्यामृतभागी भव’’ ‘‘विजयामृतभागी भव’’ और ‘‘अक्षीणामृतभागी भव’’ ये मंत्र व्यवहृत होते हैं । महापुराण 40.141-142, वृषभदेव ने अपने पुत्र भरत को इसी विवि से प्रथम अन्नाहार कराया था । महापुराण 15.164 देखें गर्भान्वय क्रिया