अशरणानुप्रेक्षा: Difference between revisions
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Revision as of 21:38, 5 July 2020
मुक्तिमार्ग के पथिक की दूसरी अनुप्रेक्षा । आयु-कर्म के समाप्त होने पर मृत्यु के मुख में जाने वाले प्राणी की रक्षा करने में देव, इन्द्र, चक्रवर्ती और विद्याधर आदि समर्थ नहीं हैं और मणि, मंत्र, तंत्र तथा औषधियाँ आदि भी व्यर्थ है । यथार्थ में अर्हन्त, सिद्ध, साधु, केवली भाषित धर्म, तप, दान, जिनपूजा, जप, रत्नत्रय आदि ही शरण है । ऐसा चिन्तन करना अशरणानुप्रेक्षा है । महापुराण 11.105, पद्मपुराण 14.237-239, पांडवपुराण 25-81-86, वीरवर्द्धमान चरित्र 11.14-22