कुन्ती: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> शौर्यपुर नगर के राजा अन्धकवृष्टि/अन्धकवृष्णि और उसकी रानी सुभद्रा की पुत्री । वसुदेव आदि इसके दस भाई तथा माद्री इसकी बहिन थी । राजा | <p> शौर्यपुर नगर के राजा अन्धकवृष्टि/अन्धकवृष्णि और उसकी रानी सुभद्रा की पुत्री । वसुदेव आदि इसके दस भाई तथा माद्री इसकी बहिन थी । राजा पाण्डु ने अदृश्य रूप से कन्या अवस्था में इसके साथ सहवास किया था । कन्या अवस्था में इसके कर्ण तथा विवाहित होने पर युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन पुत्र हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण 70.95-97, 109-110, 115-116, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.15, 45.37, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 7.131-136, 257-259, 265, 141, 142, 167, 170 </span>कौरवों ने इसे लाक्षागृह में जला देना चाहा था किन्तु यह पुत्रों सहित सुरंग से लाक्षागृह के बाहर निकल गयी थी । वनवास के समय इसके पुत्रों ने इसे विदुर के यहाँ छोड़ दिया था । अन्त में दीक्षा धारण कर और सन्यासपूर्वक प्राण त्यागकर यह सोलहवें स्वर्ग में सामानिक देव हुई । यहाँ से च्युत होकर यह मोक्ष प्राप्त करेगी । <span class="GRef"> महापुराण 72.264-266, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 12.165-166, 16.140, 25.141-144 </span>पूर्वभव में यह भद्रिलपुर नगर के धनदत्त सेठ की स्त्री नन्दयशा की प्रियदर्शना नाम की पुत्री थी । इनके नौ भाई थे और एक बहिन थी । माता-पिता तथा भाई-बहिन के साथ इसने विधिपूर्वक सन्यास धारण किया । मरकर आनत स्वर्ग में उत्पन्न हुई और वहाँ से च्युत होकर इस पर्याय को प्राप्त हुई । <span class="GRef"> महापुराण 70.182-198, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.112-124 </span></p> | ||
Line 5: | Line 5: | ||
[[ कुन्तली | पूर्व पृष्ठ ]] | [[ कुन्तली | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ | [[ कुन्थु | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: क]] | [[Category: क]] |
Revision as of 21:39, 5 July 2020
शौर्यपुर नगर के राजा अन्धकवृष्टि/अन्धकवृष्णि और उसकी रानी सुभद्रा की पुत्री । वसुदेव आदि इसके दस भाई तथा माद्री इसकी बहिन थी । राजा पाण्डु ने अदृश्य रूप से कन्या अवस्था में इसके साथ सहवास किया था । कन्या अवस्था में इसके कर्ण तथा विवाहित होने पर युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन पुत्र हुए थे । महापुराण 70.95-97, 109-110, 115-116, हरिवंशपुराण 18.15, 45.37, पांडवपुराण 7.131-136, 257-259, 265, 141, 142, 167, 170 कौरवों ने इसे लाक्षागृह में जला देना चाहा था किन्तु यह पुत्रों सहित सुरंग से लाक्षागृह के बाहर निकल गयी थी । वनवास के समय इसके पुत्रों ने इसे विदुर के यहाँ छोड़ दिया था । अन्त में दीक्षा धारण कर और सन्यासपूर्वक प्राण त्यागकर यह सोलहवें स्वर्ग में सामानिक देव हुई । यहाँ से च्युत होकर यह मोक्ष प्राप्त करेगी । महापुराण 72.264-266, पांडवपुराण 12.165-166, 16.140, 25.141-144 पूर्वभव में यह भद्रिलपुर नगर के धनदत्त सेठ की स्त्री नन्दयशा की प्रियदर्शना नाम की पुत्री थी । इनके नौ भाई थे और एक बहिन थी । माता-पिता तथा भाई-बहिन के साथ इसने विधिपूर्वक सन्यास धारण किया । मरकर आनत स्वर्ग में उत्पन्न हुई और वहाँ से च्युत होकर इस पर्याय को प्राप्त हुई । महापुराण 70.182-198, हरिवंशपुराण 18.112-124