गांगेय: Difference between revisions
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<p> यह कुरु वंशी राजा | <p> यह कुरु वंशी राजा शान्तनु के पुत्र पाराशर तथा रत्नपुर नगर के राजा जहनु की पुत्री गंगा का पुत्र था । इसने आजीवन ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा लेकर पिता के लिए इष्ट धीवर कन्या गुणवती प्राप्त की थी । <span class="GRef"> पांडवपुराण 7.76-114,16.14-19 </span>कौरव-पाण्डव युद्ध में अभिमन्यु ने इसका महाध्वज तोड़ डाला था । इसने भी अभिमन्यु का ध्वज छिन्न किया था । युद्ध में शिखण्डों द्वारा हृदय विद्ध किये जाने पर पृथिवी पर पड़े हुए इन्होंने अपना जीवन गया हुआ समझकर संन्यास धारण कर लिया था । इसी समय इसने कौरव और पाण्डवों से मैत्रीभाव धारण करने तथा उत्तम क्षमा आदि दस धर्मों के पालन करने का उपदेश दिया था । धर्मध्यान में रत होकर अनुप्रेक्षाओं का चिन्तन करते हुए इसने चतुर्विध आहार और देह के ममत्व का त्याग किया था । सल्लेखनापूर्वक शरीर छोड़कर यह पाँचवें ब्रह्म स्वर्ग में देव हुआ । <span class="GRef"> पांडवपुराण 19.178-180, 248-271 </span></p> | ||
Revision as of 21:40, 5 July 2020
यह कुरु वंशी राजा शान्तनु के पुत्र पाराशर तथा रत्नपुर नगर के राजा जहनु की पुत्री गंगा का पुत्र था । इसने आजीवन ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा लेकर पिता के लिए इष्ट धीवर कन्या गुणवती प्राप्त की थी । पांडवपुराण 7.76-114,16.14-19 कौरव-पाण्डव युद्ध में अभिमन्यु ने इसका महाध्वज तोड़ डाला था । इसने भी अभिमन्यु का ध्वज छिन्न किया था । युद्ध में शिखण्डों द्वारा हृदय विद्ध किये जाने पर पृथिवी पर पड़े हुए इन्होंने अपना जीवन गया हुआ समझकर संन्यास धारण कर लिया था । इसी समय इसने कौरव और पाण्डवों से मैत्रीभाव धारण करने तथा उत्तम क्षमा आदि दस धर्मों के पालन करने का उपदेश दिया था । धर्मध्यान में रत होकर अनुप्रेक्षाओं का चिन्तन करते हुए इसने चतुर्विध आहार और देह के ममत्व का त्याग किया था । सल्लेखनापूर्वक शरीर छोड़कर यह पाँचवें ब्रह्म स्वर्ग में देव हुआ । पांडवपुराण 19.178-180, 248-271