धनदत्त: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) जम्बूद्वीप में मंगला देश के भद्रिलपुरनगर का निवासी एक वैश्य । नन्दयशा इसकी पत्नी थी । इससे इसके धनपाल, देवपाल, जिनदेव, जिनपाल, अर्हदत्त, अर्हद्दास, जिनदत्त, प्रियमित्र और धर्मरूचि ये नौ पुत्र तथा प्रियदर्शना और ज्येष्ठा दो पुत्रियां हुई थी । इस नगर के राजा मेघरथ के साथ यह अपने सभी पुत्रों सहित मन्दिरस्थविर मुनि से दीक्षित हो गया था । इसकी पत्नी और दोनों पुत्रियां भी सुदर्शना आर्यिका के पास दीक्षित हो गया थी । दीक्षा के पश्चात् राजा सहित ये सभी बनारस आये । यहाँ इसे केवलज्ञान हुआ । सात वर्ष तक विहार करने के बाद आयु के अन्त में राजगृह नगर के पास इसने सिद्ध-अवस्था प्राप्त की । इसके पुत्र-पुत्रियाँ और पत्नी ने भी विधिपूर्वकसन्यास धारण किया था । इसकी पत्नी ने निदान किया था कि ये सभी पुत्र-पुत्रियाँ पर जन्म में भी उसकी सन्तान हो । बहिनों ने निदान किया था कि अग्रिम भव में भी ये उनके भाई हो । इस प्रकार निदान-पूर्वक मरकर इसकी पत्नी पुत्र-पुत्रियाँ | <p id="1"> (1) जम्बूद्वीप में मंगला देश के भद्रिलपुरनगर का निवासी एक वैश्य । नन्दयशा इसकी पत्नी थी । इससे इसके धनपाल, देवपाल, जिनदेव, जिनपाल, अर्हदत्त, अर्हद्दास, जिनदत्त, प्रियमित्र और धर्मरूचि ये नौ पुत्र तथा प्रियदर्शना और ज्येष्ठा दो पुत्रियां हुई थी । इस नगर के राजा मेघरथ के साथ यह अपने सभी पुत्रों सहित मन्दिरस्थविर मुनि से दीक्षित हो गया था । इसकी पत्नी और दोनों पुत्रियां भी सुदर्शना आर्यिका के पास दीक्षित हो गया थी । दीक्षा के पश्चात् राजा सहित ये सभी बनारस आये । यहाँ इसे केवलज्ञान हुआ । सात वर्ष तक विहार करने के बाद आयु के अन्त में राजगृह नगर के पास इसने सिद्ध-अवस्था प्राप्त की । इसके पुत्र-पुत्रियाँ और पत्नी ने भी विधिपूर्वकसन्यास धारण किया था । इसकी पत्नी ने निदान किया था कि ये सभी पुत्र-पुत्रियाँ पर जन्म में भी उसकी सन्तान हो । बहिनों ने निदान किया था कि अग्रिम भव में भी ये उनके भाई हो । इस प्रकार निदान-पूर्वक मरकर इसकी पत्नी पुत्र-पुत्रियाँ <span class="GRef"> महापुराण </span>कार के अनुसार आनन स्वर्ग के शातंकर विमान में और <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span>कार के अनुसार अच्युत स्वर्ग में उत्पन्न हुए । निदान के फलस्वरूप इसकी पत्नी अन्धकवृष्णि की रानी सुभद्रा हुई, दोनों बहिनें कुन्ती तथा माद्री और धनपाल आदि समुद्रविजय आदि नौ पुत्र हुए । <span class="GRef"> महापुराण </span> 70.182-198, <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span> 18.111-124</p> | ||
<p id="2">(2) राजा क्ज्रजंघ के राजसेठ धनमित्र का पिता । इसकी पत्नी का नाम धनदत्ता था । महापुराण 8.218</p> | <p id="2">(2) राजा क्ज्रजंघ के राजसेठ धनमित्र का पिता । इसकी पत्नी का नाम धनदत्ता था । <span class="GRef"> महापुराण </span> 8.218</p> | ||
<p id="3">(3) सिन्धु देश की वैशाली-नगरी के राजा चेटक और उसकी रानी-सुभद्रा का ज्येष्ठ पुत्र । यह धनभद्र, उपेन्द्र, सुदत्त, सिंहभद्र, सूकुम्भोज, अकम्पन, पतंगक, प्रभंजन और प्रभास का अग्रज तथा प्रियकारिणी, मृगावती, सुप्रभा, प्रभावती, चेलिनी, | <p id="3">(3) सिन्धु देश की वैशाली-नगरी के राजा चेटक और उसकी रानी-सुभद्रा का ज्येष्ठ पुत्र । यह धनभद्र, उपेन्द्र, सुदत्त, सिंहभद्र, सूकुम्भोज, अकम्पन, पतंगक, प्रभंजन और प्रभास का अग्रज तथा प्रियकारिणी, मृगावती, सुप्रभा, प्रभावती, चेलिनी, ज्येष्ठा और चन्देना का सहोदर था । <span class="GRef"> महापुराण </span> 75.3-7</p> | ||
<p id="4">(4) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में एकक्षेत्र नामक नगर के निवासी वणिक् नयदत्त तथा उसकी स्त्री सुनन्दा का पुत्र, यह राम का जीव था और लक्ष्मण के जीव वसुदत्त का भाई था । गुणवती नामा कन्या की प्राप्ति में इसका भाई मारा गया था फिर भी गुणवती इसे प्राप्त न हो सकी थी । अत: भाई के कुमरण और गुणवती की प्राप्ति नहीं होने से वह दु:खी होकर अनेक देशों में भ्रमण करता रहा, अन्त में एक मुनि के धर्मोपदेश से प्रभावित होकर इसने अणुव्रत धारण किये और आयु के अन्त में मरकर सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ । पद्मपुराण 106. 10-22, 30-36</p> | <p id="4">(4) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में एकक्षेत्र नामक नगर के निवासी वणिक् नयदत्त तथा उसकी स्त्री सुनन्दा का पुत्र, यह राम का जीव था और लक्ष्मण के जीव वसुदत्त का भाई था । गुणवती नामा कन्या की प्राप्ति में इसका भाई मारा गया था फिर भी गुणवती इसे प्राप्त न हो सकी थी । अत: भाई के कुमरण और गुणवती की प्राप्ति नहीं होने से वह दु:खी होकर अनेक देशों में भ्रमण करता रहा, अन्त में एक मुनि के धर्मोपदेश से प्रभावित होकर इसने अणुव्रत धारण किये और आयु के अन्त में मरकर सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 106. 10-22, 30-36 </span></p> | ||
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Revision as of 21:42, 5 July 2020
(1) जम्बूद्वीप में मंगला देश के भद्रिलपुरनगर का निवासी एक वैश्य । नन्दयशा इसकी पत्नी थी । इससे इसके धनपाल, देवपाल, जिनदेव, जिनपाल, अर्हदत्त, अर्हद्दास, जिनदत्त, प्रियमित्र और धर्मरूचि ये नौ पुत्र तथा प्रियदर्शना और ज्येष्ठा दो पुत्रियां हुई थी । इस नगर के राजा मेघरथ के साथ यह अपने सभी पुत्रों सहित मन्दिरस्थविर मुनि से दीक्षित हो गया था । इसकी पत्नी और दोनों पुत्रियां भी सुदर्शना आर्यिका के पास दीक्षित हो गया थी । दीक्षा के पश्चात् राजा सहित ये सभी बनारस आये । यहाँ इसे केवलज्ञान हुआ । सात वर्ष तक विहार करने के बाद आयु के अन्त में राजगृह नगर के पास इसने सिद्ध-अवस्था प्राप्त की । इसके पुत्र-पुत्रियाँ और पत्नी ने भी विधिपूर्वकसन्यास धारण किया था । इसकी पत्नी ने निदान किया था कि ये सभी पुत्र-पुत्रियाँ पर जन्म में भी उसकी सन्तान हो । बहिनों ने निदान किया था कि अग्रिम भव में भी ये उनके भाई हो । इस प्रकार निदान-पूर्वक मरकर इसकी पत्नी पुत्र-पुत्रियाँ महापुराण कार के अनुसार आनन स्वर्ग के शातंकर विमान में और हरिवंशपुराण कार के अनुसार अच्युत स्वर्ग में उत्पन्न हुए । निदान के फलस्वरूप इसकी पत्नी अन्धकवृष्णि की रानी सुभद्रा हुई, दोनों बहिनें कुन्ती तथा माद्री और धनपाल आदि समुद्रविजय आदि नौ पुत्र हुए । महापुराण 70.182-198, हरिवंशपुराण 18.111-124
(2) राजा क्ज्रजंघ के राजसेठ धनमित्र का पिता । इसकी पत्नी का नाम धनदत्ता था । महापुराण 8.218
(3) सिन्धु देश की वैशाली-नगरी के राजा चेटक और उसकी रानी-सुभद्रा का ज्येष्ठ पुत्र । यह धनभद्र, उपेन्द्र, सुदत्त, सिंहभद्र, सूकुम्भोज, अकम्पन, पतंगक, प्रभंजन और प्रभास का अग्रज तथा प्रियकारिणी, मृगावती, सुप्रभा, प्रभावती, चेलिनी, ज्येष्ठा और चन्देना का सहोदर था । महापुराण 75.3-7
(4) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में एकक्षेत्र नामक नगर के निवासी वणिक् नयदत्त तथा उसकी स्त्री सुनन्दा का पुत्र, यह राम का जीव था और लक्ष्मण के जीव वसुदत्त का भाई था । गुणवती नामा कन्या की प्राप्ति में इसका भाई मारा गया था फिर भी गुणवती इसे प्राप्त न हो सकी थी । अत: भाई के कुमरण और गुणवती की प्राप्ति नहीं होने से वह दु:खी होकर अनेक देशों में भ्रमण करता रहा, अन्त में एक मुनि के धर्मोपदेश से प्रभावित होकर इसने अणुव्रत धारण किये और आयु के अन्त में मरकर सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ । पद्मपुराण 106. 10-22, 30-36