पाण्डुकवन: Difference between revisions
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<p> सुमेरु पर्वत के चार वनों में एक वन । यह सौमनस वन से छत्तीस हजार योजन ऊपर स्थित है । यह सघन वृक्ष समूहों से युक्त है । इसमें चार उत्तुंग चैत्यालय, पाण्डुकशिला और सिंहासनों की रचना है । मध्य में चालीस योजन ऊँची स्वर्ग के अधोभाग में स्थित एवं स्थिर उत्तम चूलिका है । जब जिनेन्द्र का इस पर अभिषेक होता है तो अभिषेक-जल से यह क्षीरसागर सा लगता है । वीरवर्द्धमान चरित्र 8.115-117, 9.25, देखें [[ | <p> सुमेरु पर्वत के चार वनों में एक वन । यह सौमनस वन से छत्तीस हजार योजन ऊपर स्थित है । यह सघन वृक्ष समूहों से युक्त है । इसमें चार उत्तुंग चैत्यालय, पाण्डुकशिला और सिंहासनों की रचना है । मध्य में चालीस योजन ऊँची स्वर्ग के अधोभाग में स्थित एवं स्थिर उत्तम चूलिका है । जब जिनेन्द्र का इस पर अभिषेक होता है तो अभिषेक-जल से यह क्षीरसागर सा लगता है । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 8.115-117, 9.25, </span>देखें [[ पाण्डुक#1 | पाण्डुक - 1]]</p> | ||
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Revision as of 21:43, 5 July 2020
सुमेरु पर्वत के चार वनों में एक वन । यह सौमनस वन से छत्तीस हजार योजन ऊपर स्थित है । यह सघन वृक्ष समूहों से युक्त है । इसमें चार उत्तुंग चैत्यालय, पाण्डुकशिला और सिंहासनों की रचना है । मध्य में चालीस योजन ऊँची स्वर्ग के अधोभाग में स्थित एवं स्थिर उत्तम चूलिका है । जब जिनेन्द्र का इस पर अभिषेक होता है तो अभिषेक-जल से यह क्षीरसागर सा लगता है । वीरवर्द्धमान चरित्र 8.115-117, 9.25, देखें पाण्डुक - 1