दर्शनपाहुड गाथा 34: Difference between revisions
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अब कहते हैं कि जो उत्तम गोत्र सहित मनुष्यत्व को पाकर सम्यक्त्व की प्राप्ति से मोक्ष पाते हैं, यह सम्यक्त्व का माहात्म्य है -<br> | अब कहते हैं कि जो उत्तम गोत्र सहित मनुष्यत्व को पाकर सम्यक्त्व की प्राप्ति से मोक्ष पाते हैं, यह सम्यक्त्व का माहात्म्य है -<br> | ||
<p | <p class="PrakritGatha"> | ||
लद्धूण१ य मणुयत्तं सहियं तह उत्तमेण गोत्तेण ।<br> | |||
लद्धूण य सम्मत्तं अक्खयसोक्खं२ च मोक्खं च ।।३४।।<br> | लद्धूण य सम्मत्तं अक्खयसोक्खं२ च मोक्खं च ।।३४।।<br> | ||
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<p class="SanskritGatha"> | |||
लब्ध्वा च मनुजत्वं सहितं तथा उत्तमेन गोत्रेण ।<br> | लब्ध्वा च मनुजत्वं सहितं तथा उत्तमेन गोत्रेण ।<br> | ||
लब्ध्वा च सम्यक्त्वं अक्षयसुखं च मोक्षं च ।।३४।।<br> | लब्ध्वा च सम्यक्त्वं अक्षयसुखं च मोक्षं च ।।३४।।<br> | ||
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<p class="HindiGatha"> | |||
प्राप्तकर नरदेह उत्तम कुल सहित यह आतमा ।<br> | प्राप्तकर नरदेह उत्तम कुल सहित यह आतमा ।<br> | ||
सम्यक्त्व लह मुक्ति लहे अर अखय आनन्द परिणमे ।।३४।।<br> | सम्यक्त्व लह मुक्ति लहे अर अखय आनन्द परिणमे ।।३४।।<br> | ||
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<p><b> अर्थ - </b> उत्तमगोत्र सहित मनुष्यपना प्रत्यक्ष प्राप्त करके और वहाँ सम्यक्त्व प्राप्त करके अविनाशी सुखरूप केवलज्ञान प्राप्त करते हैं तथा उस सुखसहित मोक्ष प्राप्त करते हैं । </p> | <p><b> अर्थ - </b> उत्तमगोत्र सहित मनुष्यपना प्रत्यक्ष प्राप्त करके और वहाँ सम्यक्त्व प्राप्त करके अविनाशी सुखरूप केवलज्ञान प्राप्त करते हैं तथा उस सुखसहित मोक्ष प्राप्त करते हैं । </p> | ||
<p><b> भावार्थ -</b> यह सब सम्यक्त्व का माहात्म्य है ।।३४।।<br> | <p><b> भावार्थ -</b> यह सब सम्यक्त्व का माहात्म्य है ।।३४।।<br> |
Latest revision as of 05:07, 8 December 2008
अब कहते हैं कि जो उत्तम गोत्र सहित मनुष्यत्व को पाकर सम्यक्त्व की प्राप्ति से मोक्ष पाते हैं, यह सम्यक्त्व का माहात्म्य है -
लद्धूण१ य मणुयत्तं सहियं तह उत्तमेण गोत्तेण ।
लद्धूण य सम्मत्तं अक्खयसोक्खं२ च मोक्खं च ।।३४।।
लब्ध्वा च मनुजत्वं सहितं तथा उत्तमेन गोत्रेण ।
लब्ध्वा च सम्यक्त्वं अक्षयसुखं च मोक्षं च ।।३४।।
प्राप्तकर नरदेह उत्तम कुल सहित यह आतमा ।
सम्यक्त्व लह मुक्ति लहे अर अखय आनन्द परिणमे ।।३४।।
अर्थ - उत्तमगोत्र सहित मनुष्यपना प्रत्यक्ष प्राप्त करके और वहाँ सम्यक्त्व प्राप्त करके अविनाशी सुखरूप केवलज्ञान प्राप्त करते हैं तथा उस सुखसहित मोक्ष प्राप्त करते हैं ।
भावार्थ - यह सब सम्यक्त्व का माहात्म्य है ।।३४।।