|
|
Line 1: |
Line 1: |
| <p id="1"> (1) आकाशगामी विमान । यह विमान स्वामी की इच्छानुसार गमनशील होता है । यह विमान रावण के मौसेरे भाई वैश्रवण के पास था । रावण ने वैश्रवण को जीतकर इसे प्राप्त कर लिया था । इसी में बैठकर रावण ने सीता का हरण किया था और राम से युद्ध करने के लिए इसी विमान पर आरूढ़ होकर लंका से उसने निर्गमन किया था । रावण-वध के पश्चात् राम-लक्ष्मण और सीता आदि इसी यान से अयोध्या आये थे । महापुराण 68.193-194, पद्मपुराण 7. 126-128, 8.253-258, 416, 12.370, 44.90, 57.64-65, 82.1</p> | | #REDIRECT [[पुष्पक]] |
| <p id="2">(2) आनत-प्राणत स्वर्गों का तृतीय पटल एवं इन्द्रक विमान । हरिवंशपुराण 6.51</p>
| |
| <p id="3">(3) राजपुर का एक वन । यह तीर्थंकर पुष्पदन्त की दीक्षाभूमि था । महापुराण 55.46-47, 75.469</p>
| |
|
| |
| | |
| <noinclude>
| |
| [[ पुष्कलावती | पूर्व पृष्ठ ]] | |
| | |
| [[ पुष्परण्डक | अगला पृष्ठ ]]
| |
| | |
| </noinclude>
| |
| [[Category: पुराण-कोष]]
| |
| [[Category: प]]
| |